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Wednesday, July 9, 2014

कोई दिलनवाज़ ही बचाये ....

दिल को तो बड़ा ही सुकून मिलता है
जब अपना इल्जाम गैर के सर चढ़ता है

दर्द के नासूर का भी इतना ही है इशारा
गर चोट न हो तो कहीं उनका नहीं गुजारा

हरतरफ शातिराना शिकायतों की सरगोशियाँ है
मुआफ़िक़त ज़ख़्मों की जुनूनी दस्तबोसियाँ है

मवाद मजे से मशग़ूल है महज बहने में
इल्लती दस्तूर को क़तरा-क़तरा से कहने में

लबे-खामोश से कुछ पूछने से क्या फ़ायदा ?
नामुनासिब मजबूरियों का भी अपना है क़ायदा

बिरानी साँसों में भी अब न वैसी खनखनी है
जैसे ये दुनिया बस ग़म के वास्ते ही बनी है

शौक़ से ख़ुशी दर्दो-आह में गुजरी जाती है
सारी उम्र यूँ ही गुनाह में गुजरी जाती है

दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां है
भरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां है

जहां पर हर आगाज ही इसकदर तक बुरा हो
तो कोई दिलनवाज़ ही बचाये अंजाम जो बुरा हो .

24 comments:

  1. भई वाह। हर पंक्ति कहर ढा रही है।

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  2. बिरानी साँसों में भी अब न वैसी खनखनी है
    जैसे ये दुनिया बस ग़म के वास्ते ही बनी है
    ....वाह...सभी अशआर बहुत उम्दा...लाज़वाब...

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10-07-2014 को चर्चा मंच पर उम्मीदें और असलियत { चर्चा - 1670 } में दिया गया है
    आभार

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. दर्द की कहानियाँ और ठोकरें ही हैं जमाने में...आज तो उर्दू की गंगा बहायी है आपने, अमृता जी

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  7. बहुत खूब...
    हर शेर बहुत गहरे एहसास लिए हुए...

    दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां है
    भरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां है

    बधाई.

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  8. शौक़ से ख़ुशी दर्दो-आह में गुजरी जाती है
    सारी उम्र यूँ ही गुनाह में गुजरी जाती है

    दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां है
    भरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां है
    अहा! शब्‍दाें में गज़ब की सच्‍चाई है
    लाजवाब प्रस्‍तुति

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  9. शौक़ से ख़ुशी दर्दो-आह में गुजरी जाती है
    सारी उम्र यूँ ही गुनाह में गुजरी जाती है
    wow!

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  10. दर्द ठोकरे आह सच्चाइयां , अब सहारा है तो बस दिलनवाज का !
    खूब उतारी शब्दों ने !

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  11. लबे-खामोश से कुछ पूछने से क्या फ़ायदा ?
    नामुनासिब मजबूरियों का भी अपना है क़ायदा

    खूब कही..... बेजोड़ पंक्तियाँ

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  12. बहुत बढिया..लाजवाब प्रस्तुति

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  13. वक़्त की आहट के साथ-साथ कलम की ताकत को भांप रहा हूँ..... पूरा यकीन है कि आगे जो भी पढ़ने को मिलेगा, उम्दा मिलेगा, बेमिशाल मिलेगा.....

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  14. धन्यवाद अमृता जी, ब्लॉग कि दुनिया में मैंने अभी अभी कदम रखा है। अगर कुछ भूल हो जाए तो कृपया मेरी भूल सुधारने में मेरी मदद करने का कष्ट करेंगे । मेरी कविताओं पर टिप्पणी जरूर करें। धन्यवाद

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  15. बिरानी साँसों में भी अब न वैसी खनखनी है
    जैसे ये दुनिया बस ग़म के वास्ते ही बनी है
    बहुत खूब ! जो गम न हो तो ख़ुशी भी न हो.

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  16. दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां है
    भरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां है ..
    क्या बात है आपका ये शायराना अदाज़ भी लाजवाब है ... खालिस उर्दू के कठिन शब्दों के बीच हर शेर का अंदाजे बयान कमाल है ...

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  17. शायरी पर फ़ारसी शैली का प्रभाव मुखर है - प्रेम और शृंगार रस में भी वीभत्स का समावेश होता है .यहाँ 'नासूर' और 'मवाद बहना' उसी की याद दिलाते हैं

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  18. (ऊपरवाली टिप्पणी करते-करते हाथ से छूट गई).. . हिन्दी में ,जुगुप्सा जगाने वाले प्रयोग जो कोमल रसों में वर्जित थे अब देखने को मिल जाते है .आपकी उर्दू शायरी है ,उसी के स्वभावानुकूल शब्द और भाव-योजना प्रभावपूर्ण है.बधाई !

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  19. बहुत कुछ कहती है यह रचना. सुन्दर.

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  20. बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
    बधाई मेरी

    नई पोस्ट
    पर भी पधारेँ।

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  21. दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां हैं
    भरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां हैं
    यही...यही...यही... जो आपने कहा है इससे उम्दा दिलनवाज़ी और कहाँ मिलेगी.

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  22. behad lajawaab...shubhkamnaayein

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