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Thursday, June 26, 2014

मुझे तो अब .....

                  अभी तो और भी है सोपान
                जिसपर अपना पाँव रखना है
                 रोको न मुझे ! मुझे तो अब
                 चाँद-सूरज को भी चखना है

                 बेठौर बादलों को फुसलाकर
                कांच का सुंदर-सा एक घर दूँ
                 ख़रमस्ती में खर-भर करके
                बिजलियों को मुट्ठी में भर लूँ

                 चकचौंहाँ तारों पर यूँ जाकर
                 तनिक देर तक सुस्ता आऊँ
                 रोशनी को नर्म रूई बनाकर
                मैं आहिस्ता-आहिस्ता उड़ाऊँ

                समय को यूँ सटका दिखाकर
                 कहूँ, उठक-बैठक करते रहो
                 हवाओं को डाँट कर कहूँ कि
                 कान पकड़ कर बस बैठे रहो

                मौसम से सब शैतानी छीनके
                 पल में नींद- चैन को उड़ा दूँ
               सावन को भी बुद्धू-सुद्धू बनाकर
                  झट से सारा पानी मैं चुरा लूँ

                  सब दिशाओं को समेट कर
                  एक छोर से मैं ऐसे टाँक दूँ
                क्षितिज को भी खींच-खींचकर
                  मैं आकाश को जैसे ढाँक दूँ

                 शायद मेरे ऐसा-वैसा करने से
                  कुछ गाँठ ही सही खुल जाए
                 और ये गीत सुरीला बन कर
                  सबके ओंठों में ही घुल जाए  

33 comments:

  1. संगीत, लय और अनुठी कल्पना का मिलन यह आपकी कविता। पाठक भी आपकी कविता पर संवार होकर एक नई दुनिया में पहुंच जाता है।

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  2. सब दिशाओं को समेट कर
    एक छोर से मैं ऐसे टाँक दूँ
    क्षितिज को भी खींच-खींचकर
    मैं आकाश को जैसे ढाँक दूँ

    शायद मेरे ऐसा-वैसा करने से
    कुछ गाँठ ही सही खुल जाए
    और ये गीत सुरीला बन कर
    सबके ओंठों में ही घुल जाए

    #Poetry of Amritaji encompasses in itself girlish fickleness, romanticism, romantic philosophy, newage aspirations and all physical and metaphysical elements... when you read one poem, heart says one more, once more!

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  3. बहुत ही सुन्दर और अनूठी कल्पना लिए ्सार्थक रचना..

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  4. अद्भुत कल्पना...सुन्दर शब्द विन्यास...आनंद आ गया...

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  5. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (27.06.2014) को "प्यार के रूप " (चर्चा अंक-1656)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  6. वाह ! इस बार तो आपकी कल्पना को ऐसे पंख लग गये हैं कि अन्तरिक्ष भी छोटा पड़ गया है ..सुंदर रचना !

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  7. आहा एक अल्हड से बच्चे की शरारत जितनी सुन्दर ये कविता | बहुत ही बढ़िया |

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  8. Amazing Amrita ji emotions and respect clearly reflect in the poem.

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  9. vaah..............bahut hi pyari kalpana hai aapki rachna me ..........

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  10. सार्थक चाहत और सराहनीय कल्पना ..... बेहतरीन प्रस्तुति...

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  11. रुनझुन-सी करती कविता।
    ‘बुद्धू-सुद्धू‘ का सुंदर प्रयोग अच्छा लगा।

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  12. एक भोले से प्यारे बच्चे जैसी कुछ शरारतें और इच्छाएं हैं, लगता है जैसे सावन भी बुद्धू-सुद्धू बनकर
    झट से सारा पानी चुरा लेने देगा और आँखें मींचकर बैठा मुस्कुराता रहेगा .... बहुत ही प्यारी कल्पना अमृता जी

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  13. चंचल मन की कुलाँचे भरी कल्पनाएँ समेटे कविता पढ़ कर चित्त प्रसन्न हो गया - लगा किशोरावस्था की उद्दाम ऊर्जा बिखरी पड़ रही है .

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  14. चंचल मन की ऊँची उड़न की खुबसूरत तस्वीर खींचा आपने अमृता जी !मेरा मन भी उड़ता रहा कविता के साथ साथ !बहुत सुन्दर !
    उम्मीदों की डोली !

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  15. बहुत ही सुन्दर

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  16. बेठौर बादलों को फुसलाकर
    कांच का सुंदर-सा एक घर दूँ
    ख़रमस्ती में खर-भर करके
    बिजलियों को मुट्ठी में भर लूँ

    सब दिशाओं को समेट कर
    एक छोर से मैं ऐसे टाँक दूँ
    क्षितिज को भी खींच-खींचकर
    मैं आकाश को जैसे ढाँक दूँ

    बहुत सुन्दर अंदाज़ हैं ज़िंदगी के एक साथ सब साज़ हैं।

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  17. सब दिशाओं को समेट कर
    एक छोर से मैं ऐसे टाँक दूँ
    क्षितिज को भी खींच-खींचकर
    मैं आकाश को जैसे ढाँक दूँ

    शायद मेरे ऐसा-वैसा करने से
    कुछ गाँठ ही सही खुल जाए
    और ये गीत सुरीला बन कर
    सबके ओंठों में ही घुल जाए

    आमीन !

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  18. मन की इच्छाओं का पार कहाँ ... पर इनका होना भी तो जरूरी है ...
    इनको खुला छोड़ने पर ही मंजिल मिलेगी ..

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  19. Waaaaah mazaa aa gaya aaj to...

    Saawan ko buddhu suddhu bana kar :)

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  20. काश यह सब हो पाता ......सुंदर एवं कोमल भाव लिए प्यारी सी मदमस्त रचना।

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  21. सुन्दर शब्द विन्यास |
    प्यारी सी रचना |

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  22. कविता के साँचे में खड़ी विराट और उदात्त कल्पना आपके मन से निस्सृत हुई है. इसे पढ़ कर मुस्कान भरी हैरानगी का भाव तो पैदा होता है.

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  23. खूबसूरत कल्पना, सुंदर शब्द. बधाई....

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  24. बहुत प्यारी कल्पना, खूबसूरत अंदाज़ ! :)

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  25. शब्दों का खूबसूरत तालमेल

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  26. भावनाओं की सरसराहट पता नहीं कहां-कहां तक पहुंची है.....इस कविता के माध्‍यम से।

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  27. बेठौर बादलों को फुसलाकर
    कांच का सुंदर-सा एक घर दूँ
    ख़रमस्ती में खर-भर करके
    बिजलियों को मुट्ठी में भर लूँ..
    बहुत ही भावपूर्ण लाइनें। आभार।

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  28. अब हवाओं को तो आप डांट ही दीजिये, ताकि जल्दी से कान पकड़ कर बैठ जाए। .....
    हमेशा आपकी कलम पर नाज रहा है.....................

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  29. khubsurat kalpna ....sunder shabd sanyojan.... bahut umda

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