दिल को तो बड़ा ही सुकून मिलता है
जब अपना इल्जाम गैर के सर चढ़ता है
दर्द के नासूर का भी इतना ही है इशारा
गर चोट न हो तो कहीं उनका नहीं गुजारा
हरतरफ शातिराना शिकायतों की सरगोशियाँ है
मुआफ़िक़त ज़ख़्मों की जुनूनी दस्तबोसियाँ है
मवाद मजे से मशग़ूल है महज बहने में
इल्लती दस्तूर को क़तरा-क़तरा से कहने में
लबे-खामोश से कुछ पूछने से क्या फ़ायदा ?
नामुनासिब मजबूरियों का भी अपना है क़ायदा
बिरानी साँसों में भी अब न वैसी खनखनी है
जैसे ये दुनिया बस ग़म के वास्ते ही बनी है
शौक़ से ख़ुशी दर्दो-आह में गुजरी जाती है
सारी उम्र यूँ ही गुनाह में गुजरी जाती है
दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां है
भरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां है
जहां पर हर आगाज ही इसकदर तक बुरा हो
तो कोई दिलनवाज़ ही बचाये अंजाम जो बुरा हो .
जब अपना इल्जाम गैर के सर चढ़ता है
दर्द के नासूर का भी इतना ही है इशारा
गर चोट न हो तो कहीं उनका नहीं गुजारा
हरतरफ शातिराना शिकायतों की सरगोशियाँ है
मुआफ़िक़त ज़ख़्मों की जुनूनी दस्तबोसियाँ है
मवाद मजे से मशग़ूल है महज बहने में
इल्लती दस्तूर को क़तरा-क़तरा से कहने में
लबे-खामोश से कुछ पूछने से क्या फ़ायदा ?
नामुनासिब मजबूरियों का भी अपना है क़ायदा
बिरानी साँसों में भी अब न वैसी खनखनी है
जैसे ये दुनिया बस ग़म के वास्ते ही बनी है
शौक़ से ख़ुशी दर्दो-आह में गुजरी जाती है
सारी उम्र यूँ ही गुनाह में गुजरी जाती है
दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां है
भरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां है
जहां पर हर आगाज ही इसकदर तक बुरा हो
तो कोई दिलनवाज़ ही बचाये अंजाम जो बुरा हो .
भई वाह। हर पंक्ति कहर ढा रही है।
ReplyDeleteबिरानी साँसों में भी अब न वैसी खनखनी है
ReplyDeleteजैसे ये दुनिया बस ग़म के वास्ते ही बनी है
....वाह...सभी अशआर बहुत उम्दा...लाज़वाब...
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10-07-2014 को चर्चा मंच पर उम्मीदें और असलियत { चर्चा - 1670 } में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteदर्द की कहानियाँ और ठोकरें ही हैं जमाने में...आज तो उर्दू की गंगा बहायी है आपने, अमृता जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteहर शेर बहुत गहरे एहसास लिए हुए...
दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां है
भरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां है
बधाई.
शौक़ से ख़ुशी दर्दो-आह में गुजरी जाती है
ReplyDeleteसारी उम्र यूँ ही गुनाह में गुजरी जाती है
दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां है
भरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां है
अहा! शब्दाें में गज़ब की सच्चाई है
लाजवाब प्रस्तुति
शौक़ से ख़ुशी दर्दो-आह में गुजरी जाती है
ReplyDeleteसारी उम्र यूँ ही गुनाह में गुजरी जाती है
wow!
बेहतरीन!!!!!........आमीन.
ReplyDeleteदर्द ठोकरे आह सच्चाइयां , अब सहारा है तो बस दिलनवाज का !
ReplyDeleteखूब उतारी शब्दों ने !
ReplyDeleteलबे-खामोश से कुछ पूछने से क्या फ़ायदा ?
नामुनासिब मजबूरियों का भी अपना है क़ायदा
खूब कही..... बेजोड़ पंक्तियाँ
बहुत बढिया..लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteवक़्त की आहट के साथ-साथ कलम की ताकत को भांप रहा हूँ..... पूरा यकीन है कि आगे जो भी पढ़ने को मिलेगा, उम्दा मिलेगा, बेमिशाल मिलेगा.....
ReplyDeleteधन्यवाद अमृता जी, ब्लॉग कि दुनिया में मैंने अभी अभी कदम रखा है। अगर कुछ भूल हो जाए तो कृपया मेरी भूल सुधारने में मेरी मदद करने का कष्ट करेंगे । मेरी कविताओं पर टिप्पणी जरूर करें। धन्यवाद
ReplyDeleteबिरानी साँसों में भी अब न वैसी खनखनी है
ReplyDeleteजैसे ये दुनिया बस ग़म के वास्ते ही बनी है
बहुत खूब ! जो गम न हो तो ख़ुशी भी न हो.
दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां है
ReplyDeleteभरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां है ..
क्या बात है आपका ये शायराना अदाज़ भी लाजवाब है ... खालिस उर्दू के कठिन शब्दों के बीच हर शेर का अंदाजे बयान कमाल है ...
शायरी पर फ़ारसी शैली का प्रभाव मुखर है - प्रेम और शृंगार रस में भी वीभत्स का समावेश होता है .यहाँ 'नासूर' और 'मवाद बहना' उसी की याद दिलाते हैं
ReplyDelete(ऊपरवाली टिप्पणी करते-करते हाथ से छूट गई).. . हिन्दी में ,जुगुप्सा जगाने वाले प्रयोग जो कोमल रसों में वर्जित थे अब देखने को मिल जाते है .आपकी उर्दू शायरी है ,उसी के स्वभावानुकूल शब्द और भाव-योजना प्रभावपूर्ण है.बधाई !
ReplyDeleteबहुत कुछ कहती है यह रचना. सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteबधाई मेरी
नई पोस्ट पर भी पधारेँ।
दर्द का काफिला है और दिल की नादानियां हैं
ReplyDeleteभरोसा है , ठोकरें है और उनकी कहानियां हैं
यही...यही...यही... जो आपने कहा है इससे उम्दा दिलनवाज़ी और कहाँ मिलेगी.
behad lajawaab...shubhkamnaayein
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