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Saturday, March 16, 2013

पर मिट्टी नहीं है ...


आओ !
आकाश में
उड़ती हुई आँधियों !
बादलों जोर से गरजो !
बिजलियों थोड़ा और कड़को !
मैं ललकारती हूँ तुम्हें
जितना बन पड़े
तुम उतना भड़को !
अब
मेरी मजबूती को
तुम्हें सहना होगा
यदि नहीं सह सकते तो
अपनी राह में बहना होगा ...
भले ही
मिट्टी से हुआ है
मेरा निर्माण
पर मिट्टी नहीं है
ये प्राण ...
अडिग हूँ
तुम्हें ही डिगा दूंगी
प्रज्वलित प्राण से
तुम्हें ही पिघला दूंगी ...
माना कि
तुम भी हो
विकट व्यवधान , पर
अब मुझसे चलता है
मेरे विधि का
हर एक विधान .

28 comments:

  1. निःसंदेह .. निःसंदेह ...आपकी ललकार हमे सुनाई दे रही है ... मजबूत इरादों की गर्जना करती और संशय को कूटती-काटती बेहतरीन पोस्ट ... बेशक दिव्य ..

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  2. मिट्टी के शरीर में आत्मिक रुप से इतनी जीवटता है कि वह प्रकृति को वश में कर ले, ईश्‍वर का आहवान कर ले, विराट अनुभवों से अमृत समान नवजीवन प्राप्‍त कर ले...........................ऐसा कुछ बताती आपकी कविता पंक्तियां। आपकी इन पंक्तियों से जैसे प्रेम हो गया है मेरी भावनाओं को।

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  3. प्रबल आत्म विश्वास .....माटी से माटी तक की यात्रा ....आगे बढ़ाते हुए प्रबल भाव ....कितने रूप में माटी है मन ....
    बहुत सुन्दर रचना ....अमृता जी ....बहा ले जा रही है अपने साथ ....

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  4. मानव सर्वोपरी है अगर उसमे आत्म बिश्वास जाग जाए ...आज आपके आत्मा बिश्वास को सलाम ..आपकी पंक्तियों से झलकते जज्वे को सलाम .....हमेशा की तरह एक बार बहती हुई कविता ..सादर

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  5. बढ़िया है ललकार-
    आदरेया आभार ||

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  6. बहुत आत्म विश्वास लिए हूँ
    मन में दृढ विश्वास लिए हूँ !
    पिघल न पाए मोम सरीखा
    पत्थर जैसा ह्रदय लिए हूँ !
    और कडकती तेरी बिजलियाँ मुझे न झुलसा पाएंगी !
    शक्तिवाहिनी के समीप आ, जल धारा बन जायेंगी !

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  7. भले ही
    मिट्टी से हुआ है
    मेरा निर्माण
    पर मिट्टी नहीं है
    ये प्राण ...
    अडिग हूँ
    तुम्हें ही डिगा दूंगी
    प्रज्वलित प्राण से
    तुम्हें ही पिघला दूंगी ..

    गजब की हुंकार

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  8. अब मुझसे चलता है
    मेरे विधि का
    हर एक विधान .

    बहुत खूब
    प्रेरक और आत्मविश्वास से ओत-प्रोत

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  9. मुझसे हूँ मैं , वाला भाव ...बहुत सुंदर

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  10. स्वाभिमानयुक्त आत्मविश्वास.....

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  11. शुभप्रभात :)
    आपके जज्बे को नमन !
    शुभकामनायें !!

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  12. प्राण जब तक ओजमय है मिटटी को तपाकर ,ईंट बनाकर उसी पर प्रहार कर मिटटी को उसकी हकीकत बता ही सकता है कि जब तक प्राण है हम इंसान हैं. भले ही प्राण जाने के बाद मिटटी हमें जीत ले. आत्मविश्वास से भरी सुन्दर कृति.

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  13. वास्तव में ..नारी को हुँकार भरनी होगी ....अब वह एक कमज़ोर देह नहीं ...शक्तिस्वरूपा है !!!
    बहुत सुन्दर और ओजपूर्ण

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  14. आत्मविश्वास के इरादों की गर्जना

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  15. मिट्टी से हुआ है
    मेरा निर्माण
    पर मिट्टी नहीं है
    ये प्राण ...

    आत्मविश्वास जरूरी है. सुंदर प्रस्तुति.

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  16. विधना रचती ,विधना लिखती, बढ़िया रचना .

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  17. वाह ! अमृता जी, मुझसे ही चलता है विधि का विधान..मुझे न हवा उड़ा सकती है, न आग जला सकती है, न जल भिगा सकता है..आदि आदि..

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  18. जोश और आत्मविश्वास भरे शब्द... मिट्टी से बनी हूँ मिट्टी नहीं हूँ, हाँ मिट्टी और धरती जैसी सृजनकर्ता हूँ... बहुत सुन्दर रचना

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  19. दुर्धर्ष चेतना की पुकार इन स्वरों में गूँज उठी है!

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  20. ओजमय आव्हान सुन्दर कविता ।

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  21. सशक्त नारी स्वर में प्रचंड आह्वान ।

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  22. बहुत सुन्दर, ओजस.

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  23. आत्मविश्वास ...बहुत सुंदर ..

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  24. मिट्टी से हुआ है
    मेरा निर्माण
    पर मिट्टी नहीं है
    ये प्राण ...
    अडिग हूँ
    तुम्हें ही डिगा दूंगी
    प्रज्वलित प्राण से
    तुम्हें ही पिघला दूंगी ..

    इस आत्मविश्वास की विजय हो

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