पिचकारी को कड़ाही में तला
बाल्टी में मालपुए को घोल दिया
गुब्बारे पर दही-मसाला छिड़ककर
बड़े में सब रंग भर दिया ....
अबकी बार जमकर जो
तुमसे होली खेलना है .....
ठंडई से फर्श को धो दिया
गुलाल से मिठाई बना दिया
मेवा से झालर टांग कर
गुझिया से सारा घर सजाया ....
अबकी बार जमकर जो
तुमसे होली खेलना है ....
जानती हूँ
सबकुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है
और सही करने के चक्कर में
कॉफी में सुबह को उबाल दिया
धूप का पकौड़ा बना कर
शाम को चटनी के लिए पीसा
और गिलास में रात को भर दिया ....
मानती हूँ
सबकुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है
पर अबकी बार जमकर जो
तुमसे होली खेलना है .
आपका स्वागत है |एक अच्छी कविता की पिचकारी जिसमें भावनाओं के खुबसूरत रंग -गुलाल भरे हों उससे अपने पाठकों से होली खेलना ही चाहिए |शुक्रिया अमृता जी |
ReplyDeleteरंग ऐसा चढ़ा जो लाल ....तेरे रंग में डूबे धमाल ......
ReplyDeletewaah bahut sundar ...........sare bimb anand aa gaye padh kar , happy holi
Deleteकविता का असर तो बिलकुल भांग वाला है :) होली की अग्रिम शुभकामनायें.
ReplyDeletekhoobshurat rango se sarabor aur kuch kuch nasili prastuti,behatareen Amrita ji,sadar
ReplyDeleteमुश्किल को आसान कैसे किया .... :))
ReplyDeleteहोली की शुभकामनायें ......
होली के रंगों से सराबोर सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteआभार !!
सुन्दर रचना ..होली की बहुत बहुत शुभकामनायें ...
ReplyDeleteवाह... अमृता जी कल्पना करके बहुत आनंद आ रहा है, कितनी सारी गुझिया... बहुत सुन्दर रचना... होली की अग्रिम शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत सुंदर, अच्छी रचना
ReplyDeleteहोली का भाव हो ...भांग का माहोल हो तो उल्टा पुल्टा भी चलता है ... मगर शर्त है की होली में वो आ रहे हों ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
बहुत सुन्दर--
ReplyDeleteशुभकामनायें--
तुम हो कितनी भोली, खेलेंगे हम होली.......
ReplyDeleteयह फागुनी धमाल तो अपना रंग दिखा गया ... लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति फाग की .होली से पहले ही चढ़ रही है भांग .धूप के पकौड़े ,रात की ठंडाई ..वाह क्या मौलिक कल्पना है .एक कविता का एक अंश याद आ गया -हमारी बीबी सुबह को फ्रिज ,दोपहर को कूलर रात को टी वी है ,हमारे पास सिर्फ बीबी है .फाग मुबारक .फाग की प्रीत और रीत मुबारक .
ReplyDeleteअब न छोड़ूँ...ना ना ना ना।
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ..
आपकी पोस्ट 21 - 03- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
स्वागत होना चाहिए ...
ReplyDeleteउल्टा पुल्टा हो तभी, होली में आनंद आता है, सुंदर रचना...........
ReplyDeleteरंग जमने लगा है..... सुंदर भाव
ReplyDeleteबिरज में धूम मची ...होरी की ....
ReplyDelete:) असली होली तो यही है.
ReplyDeleteलगता है भंग कुछ ज्यादा चढ़ गयी है..वही प्रीत की भंग..
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
ReplyDeletemajedar rachna hai amrita ji waise to ye innovative khyal hai lekin aur bhaav aa gaya padhte hue ki kahi ye aapne bhaang pee kar to nahi likh daali rachna :-)
ReplyDeletebahut anokhi rachna badhai :-)
मेरी नई कविता पर आपकी उपस्थिति चाहती हूँ Os ki boond: सिलवटें ....
बहुत सुन्दर रचना | बधाई |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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एकदम मस्त तैयारी है होली की :)
ReplyDeleteवाह क्या बात है.......होली की अग्रिम शुभकामनायें।
ReplyDeleteआज तो चारों तरफ खाने पीने की ही चीजें हैं बढ़िया है खाते जाओ खेलते जाओ ...एक नयापन लिए ताजगी से भरी रचना सादर
ReplyDeletevaah! holi me pakwan ya pakwanon me holi...jee bharkar khelo....pichkari aise maaro ki moch aa jaye pakodon ko bhi...!!
ReplyDeleteभांग का असर लगता है :-)
ReplyDeleteहोली की झोंक में आपने तो उलटबाँसी लिख डाली -कबीर हो गईं क्या !
ReplyDeleteहाहा, सच्ची सबकुछ उल्टा पुल्टा हो रहा है ... अनोखी बेहतरीन रचना ..
ReplyDeleteहोली की अग्रिम शुभकामनाएं
सादर
मधुरेश
इस उलटे पुल्टे में रंग और सौंधापन है !
ReplyDeleteपर्व की बहुत शुभकामनायें !
.हा हा . मस्त. होली की शुभकामनायें .
ReplyDeleteफागुन में फगुनाये लोग .....
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