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Tuesday, March 12, 2013

एक युगंकर बन जाने दो ...


अनुभूति से
शब्द तक की
यायावरी यात्रा में
यंत्रणा-व्यूह में ही
उलझ जाने वालों ...
पंक्तियों के मध्य बचे
खालीपन में भी
याचित यातना को
ठूंस-ठूंस कर भरने वालों ...
कभी किसी शाम
अपनी यातना-यंत्रणा को
समय के सटर-पटर से
बलात छीनो , ले जाओ
अपने ही श्मशान घाट पर ...
कलेजे पर पत्थर डालो
मंत्रोच्चार करो , मुखाग्नि दो
अपनी नदी में डुबकी लगाकर
जितना हो सके शुद्ध हो ...
ओ! मेज़ के कोरों पर
सिर रखकर रोने वालों
फिर समय से संवाद करके
उसी की गोद में सोने वालों ...
कबतक यूँ ही
समय से
संपीडक संवाद करोगे ?
अपने साँसों के अंतराल को
व्यर्थ सुग-सुग से भरोगे ?
छोड़ो भी ये सब और
अपने विचार-पत्थरों को
जैसे-तैसे तैर जाने दो
चिंतन-कगारों को आपस में
कैसे भी टकराने दो
और हर एक आवेग को
उफनकर उलझ जाने दो ...
ये यायावरी यात्रा है तो
दिशा-भ्रम होगा ही
इसलिए दिशा को भी
यूँ ही भटक जाने दो ...
यदि कहीं
मील के पत्थर मिले तो
आकुल-व्याकुल भावों को
जरा सा अटक जाने दो ...
ये अनुभूति की जो
कई-कई योजन की दूरियाँ है
ये बामन मन
लांघ जाना चाहता है
मत रोको!
उसे लांघ जाने दो और
अपनी यायावरी यात्रा को
जितना हो सके
एक युगंकर बन जाने दो .

36 comments:

  1. बहुत सुन्दर और प्रभावशाली रचना.

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  2. यायावर तो अनुभूतियों के दिशा भ्रम में जीते हैं ...वे नहीं जानते कि किधर जाना है और क्यों जाना है ? बस वे चलते रहते हैं और सिर्फ चलते रहते हैं ... कितना बड़ा सच कह दिया आपने ?

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  3. मानव जीवन यात्रा यायावरी ही है
    बेहतरीन

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (13-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  5. यंत्रणा-व्यूह में ही
    उलझ जाने वालों ...
    अपनी यातना-यंत्रणा को
    मंत्रोच्चार करो , मुखाग्नि दो
    आकुल-व्याकुल भावों को
    मील के पत्थर मिले तो
    एक युगंकर बन जाने दो ....
    बहुत खूब !!
    उम्दा अभिव्यक्ति !!

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  6. रुको मत ...यायावर बढे चलो .....
    सार्थक सन्देश ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....

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  7. सुन्दर और प्रभावशाली रचना

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  8. जबरदस्त हौसला बांधती पंक्तियाँ । चरैवति चरैवति ...।

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  9. सकारात्मक भाव...... प्रेरणादायी पंक्तियाँ

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  10. मेज की कोरों पर रोने वाले अगर आत्म संधान करें तो इतना तो तय है जीवन-बैल जुआ लेकर आगे बढ़ जाएगा और छूट जाएगा युगंधर. कैक्टस पर चलते चलते यायावरी यात्रा को सार्थक करने और सच्चे युगंकर के निर्माण के लिए. आपकी कविताओं को पढ़ने का एक अनूठा आनंद है.

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  11. हम लाँघ नहीं पाते हैं, बस पतवार लिये अपनी छोटी डोंगी में बैठे हैं।

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  12. संश्लिष्ट भावों का अनूठाचित्रण!

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  13. सादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
    साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )

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  14. अपने दुःख दर्द ... यंत्रणा संवाद से खुद ही उभरना होता है ...
    खुद ही होम करके दुबारा उतरना रण में ... यही जीवन है ...

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  15. जो जारी रहती है यात्रा उसी को कहते हैं..बहुत प्रभावशाली रचना..

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  16. कसी हुई उत्कृष्ट प्रस्तुति-
    शुभकामनायें आदरेया-

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  17. युगंकर शब्द का बढ़िया प्रयोग .शुभंकर को बहुत पीछे छोड़ गया है भाव सांद्रता को बांधे रचना आखिर तक चली आई है .

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  18. एक बार पढ़ ली है। दोबारा पढ़ कर टिप्‍पणी करुंगा। यूं ही टीका नहीं करना चाहता।

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    1. सदा-सदा करने अमर
      जीवन-साहित्‍य की डगर
      है आपका यह प्रयास,
      आत्‍मप्रेरित और आत्‍मप्रवर।

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  19. अपनी नदी में डुबकी लगाकर
    जितना हो सके शुद्ध हो ..


    ये अनुभूति की जो
    कई-कई योजन की दूरियाँ है
    ये बामन मन
    लांघ जाना चाहता है
    मत रोको!
    उसे लांघ जाने दो और
    अपनी यायावरी यात्रा को
    जितना हो सके
    एक युगंकर बन जाने दो .

    बेहतरीन सन्देश

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  20. कविता के भाव प्रवाह का त्वरण पाकर शायद मेरी पिछली टिप्पणी यायावरी यात्रा पर निकल गयी :)(या फिर स्पैम में गयी ). अब इस टिप्पणी का चुनाव देखते हैं-स्थावर होने का या यायावर बनने का :)

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  21. ओ! मेज़ के कोरों पर
    सिर रखकर रोने वालों
    फिर समय से संवाद करके
    उसी की गोद में सोने वालों ...
    कबतक यूँ ही
    समय से
    संपीडक संवाद करोगे ?

    खुबसूरत बुलावा या कहूँ आवेगों का आव्हान .

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  22. बढ़िया आवाहन ..

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  23. बामन मन की काबिल-ए-गौर यायावरी। सफर के अनुभवों से संपृक्त रचना। स्वागत है।

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  24. मील के पत्थर मिले तो
    आकुल-व्याकुल भावों को
    जरा सा अटक जाने दो ...

    Kamal ke ke sabdbandh, kamal ki kawita Dhanyawad From How they do that

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  25. अत्यंत प्रभावशाली..........तेजमय शब्दों से ओत-प्रोत.......बहुत ही सुन्दर लगी।

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  26. बहुत ही प्रभावशाली रचना,आभार.

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  27. .बहुत ही सुन्दर

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