क्या कहूँ ?
इस मुख से कहते हुए
बड़ी ही लज्जा सी आती है
कि कैसे
आज की कविता अपना चीरहरण
खुद ही करवाती है
और अपनी सफाई देते हुए
बात-बात में
गीता या सीता को
बड़ी बेशर्मी से ले आती है ...
और तो और
आल्वेज हॉट राम-कृष्ण का
कलरफुल कॉकटेल बनाकर
सबको उकसाती है , लुभाती है ...
ऐ ! आलोचना के बाबुओं
आप अपने को बचाए रखिये
बामुश्किल से चलती परम्परा को
किसी भी कीमत पर निभाये रखिये
यदि आपको कोई
ऑफर पर ऑफर दे भी तो
अपनी नजरें फिराए रखिये
और आपके कम्बल के भीतर
भला झाँकता कौन है ?
ये जो आज की नशीली कविता
कुछ ज्यादा ही बहकने लगे तो
उसी गीता या सीता को
हाजिर-नाजिर करके
जोर-जबरदस्ती से ही सही
अपना नीबूं-अचार चटाते रहिये .
आज की कविता अपना चीरहरण
ReplyDeleteखुद ही करवाती है .... ?
जोर-जबरदस्ती से ही सही
अपना नीबूं-अचार चटाते रहिये .... चीरहरण नहीं होगा ?
behatareen andaj me ek behatareen prastuti*******इस मुख से कहते हुए
ReplyDeleteबड़ी ही लज्जा सी आती है
कि कैसे
आज की कविता अपना चीरहरण
खुद ही करवाती है
और अपनी सफाई देते हुए
बात-बात में
गीता या सीता को
बड़ी बेशर्मी से ले आती है ...जोर-जबरदस्ती से ही सही
अपना नीबूं-अचार चटाते रहिये .
क्या कहूँ......
ReplyDelete:
:
:
:
अनु
शब्द स्वयं ही सक्षम हैं जब, मन को असफल क्यों माने।
ReplyDeleteक्या कहूँ ?
ReplyDeleteइस मुख से कहते हुए
बड़ी ही लज्जा सी आती है
कि कैसे
आज की कविता अपना चीरहरण
खुद ही करवाती है,,,,
बहुत सुंदर रचना ....
recent post: बात न करो,
ये जो आज की नशीली कविता
ReplyDeleteकुछ ज्यादा ही बहकने लगे तो
उसी गीता या सीता को
हाजिर-नाजिर करके
जोर-जबरदस्ती से ही सही
अपना नीबूं-अचार चटाते रहिये .
क्या करियेगा आजकल यही तो बिक जा रहा है
आज यह किस पर तंज़ है ?
ReplyDeleteबिलकुल सच्ची बात कही है.
ReplyDeleteमज़ा आ गया व्यंग की इस सरिता में ...
ReplyDeleteबहुत खूब ..
आज की कविता अपना चीरहरण
ReplyDeleteखुद ही करवाती है
और अपनी सफाई देते हुए
बात-बात में
गीता या सीता को
बड़ी बेशर्मी से ले आती है ...
आज कुछ नया अंदाज दिखा और बहुत पसंद भी आया ये रूप.
बधाई अमृता जी.
आज की कविता अपना चीरहरण
ReplyDeleteखुद ही करवाती है
और अपनी सफाई देते हुए
बात-बात में
गीता या सीता को
बड़ी बेशर्मी से ले आती है ...
धारदार कटाक्ष ....अमृता जी ....लाजवाब रचना ...
जबरदस्त!!
ReplyDeleteसमझ में आ रहा है .
ReplyDeleteकभी-कभी कविता इन भावों में यूँ भी बहती है ...
ReplyDeleteगहन भाव ... लिये उत्कृष्ट लेखन
इस बार आपकी कविता बिलकुल अलग रंग में यथार्थ का हंटर बरसाती हुई |भाषा भी सहज और ग्राह्य |अच्छा लगा |
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteकविता का चीरहरण....किसे कहें ये कई बार समझ नहीं आता..कुछ पंसद नही आती तो लगता है कि कविता नहीं कही..फिर निराला याद आते हैं मुक्तछंत को प्रतिष्ठित करने वाले...कभी लगता है ये तो गद्ध ही बन गया है..लेकिन फिर सरलता से कही बात कविता भी लगती है..ये तो मन है जो बहता है तो कविता कह देता है..कभी किसी की आलोचना कर देता है।
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ReplyDeleteबेबाक, किन्तु सटीक ....
ReplyDeleteहिन्दी भाषी भाषा, उप-भाषा, और विदेशी भाषा के साहित्य (गध्य अथवा पद्य ) को केवल पठनीयता और विचारों की तार्किक अन्वेश्ना के चलते ही पढने की रोचकता पाते है रही नीबू अचार वाली देशजता तो वो हिदुस्तानियों की पहचान बन चुकी है हमारी चाहत पर बनावट लाख पोती जाए ..... चना चिरोरी और निम्बू अचार लिखा हुआ पढ़ भर लेने से
मुंह पानी से भर जाता है ।
आदरणीया अमृता जी आपकी प्रामाणिक रचना उत्तम शब्द चयन की कला अभिभूत करती हैं ....
मेरा साधुवाद स्वीकार्य हो .... प्रदीप .
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ReplyDeleteये जो आज की नशीली कविता
ReplyDeleteकुछ ज्यादा ही बहकने लगे तो......
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आपके शब्दों का तो कोई जवाब नहीं होता. बस प्रहार दर प्रहार बरसता है..
आपकी कविता में शब्दों का संयोजन प्रशंसनीय होता है। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteउफफ्फ्फ्फ़......आज तो बहुत तीखे तेवर हैं......कविता के ।
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteKISI BHI KALAAKAAR KO APNI SEEMA KAA PATAA HONAA BAHUT HI ZAROORI HAI. TABHI ALOCHAKON KO BHI KUCHCHH GALAT KAHNE KAA MOKAA NAHIN MILEGAA.
Take care
sajeev kataksh!
ReplyDeleteजरा हट के, वाह .........
ReplyDeleteवाह.... बढ़िया कटाक्ष
ReplyDeleteआलाचकों के लिए पथ्य कुपथ्य :-)
ReplyDeleteआलोचना का अपना संसार है जिसमें गिरोहबाज़ी है. फिर भी हर आदमी का अपना गिरेहबान होता है. उसे इसकी याद तो करानी ही पड़ती है.
ReplyDeleteआज कल अपनी सेहत के सबसे खराब फ़ेज़ में से गुज़र रहा हूँ. कम ब्लॉग्ज़ पर जा रहा हूँ. शायद अब मेरी गतिविधि कम ही रहेगी. आपका ब्लॉग मेरी सैरगाह में रहेगा.