लिखो , लिखो , खूब लिखो
खुरदरे , संकरे किनारे से भी धकेले हुए
पीछे के पन्नों पर बनाए गये
कँटीले बाड़ों में बिलबिलाते
उन वंचितों के लिए
लिखो , लिखो , खूब लिखो
लिख भर देने से ही
झख मारते हुए इतिहास बदल जाता है
इसी झांसे में आकर
इतिहास का भूगोल भी बदल जाता है
और कितनी ही कुवांरी क्रांतियाँ
गर्भ बढाए हुए अजन्मे परिवर्तन का
नामाकरण संस्कार करवाती है
फिर अचानक से यूँ ही
भरे दिन में गर्भपात करा लेती है
ऐसी वंचनाओं का आदि इतिहास
इस आदि इतिहास का अमर इतिहास
उन्हीं वंचितों को कोसता रह जाता है
लिखो , लिखो , खूब लिखो
शेषनाग सा फन फैलाए हुए
अपने सम्पूर्ण सामर्थ्य से चूसते हुए
उन शोषणों के खिलाफ
और नैसर्गिक निरीहता में भी
अर्थवत्ता को सुलगाते हुए
उन शोषितों के लिए
लिखो ,लिखो , खूब लिखो
उनके दर्द से कलपते देह को
और काल के कोड़ों से
फव्वारे की तरह फूटते खून को
उनके ही खंडहर के दीवारों से टकराती हुई
चमगादड़-सी डरी हुई उनकी आत्मा को
उनके ही भुरभुरे भग्नावशेषों को
और उनके जीजिविषा के अवशेषों को
लिखो , लिखो , खूब लिखो
उन अपढ़ ,निरक्षरों के लिए
जिनके लिए आज भी
काला अक्षर मरी हुई भैंस ही है
जिसके थनदुही में लगे हुए हैं
अक्षरों के थानेदार और हवलदार
लिखो ,लिखो , खूब लिखो
विवश विचारों की आँधियाँ उठाओ
कुचक्रों के चक्रवातों में उन्हें फँसाओ
और अपने काले- उजले अक्षरों को
घसीट-घसीट कर ही सही
अपंग- अपाहिज सा इतिहास बनाओ .
कलम का गतिमान रहना बिलकुल जरूरी है. सुन्दर काव्य.
ReplyDeleteलिखो , लिखो , खूब लिखो
उन अपढ़ ,निरक्षरों के लिए
जिनके लिए आज भी
काला अक्षर मरी हुई भैंस ही है
जिसके थनदुही में लगे हुए हैं
अक्षरों के थानेदार और हवलदार
इन पक्तियों को वाकई साकार होते देखा है. करीब दस पहले की बात है.
गहन भाव लिये सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर सशक्त अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत रोषपूर्ण रचना .... मात्र लिखने से कुछ बदलने वाला नहीं ... विचारणीय रचना ।
ReplyDeleteयक्ष प्रश्न है, क्या लिखना है और किसके लिये लिखना है।
ReplyDeleteलिखो ,लिखो , खूब लिखो
ReplyDeleteविवश विचारों की आँधियाँ उठाओ ....
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ReplyDeleteअद्भुत ...लिखते चलें बस ...
ReplyDeleteलिखो ,लिखो , खूब लिखो
ReplyDeleteविवश विचारों की आँधियाँ उठाओ
कुचक्रों के चक्रवातों में उन्हें फँसाओ
और अपने काले- उजले अक्षरों को
घसीट-घसीट कर ही सही
अपंग- अपाहिज सा इतिहास बनाओ .
....बहुत गहन अभिव्यक्ति..लेकिन क्या आज के हालातों का केवल लेखन से कोई बदलाव हो पायेगा?
Aa. Amritaa Ji is desh ko chlaanaa bhi hamaare aapke hi haath main hain yeh soch kar ki itane likhte hain itne chhapte hain kahin hatash ho nahin ruk jaaiye,
ReplyDeletenaam ki Amritaa kaam ki amritaa ban halaa poshit soch ko dur karne ka tap anuvrat uthaanaa hogaa ..... Iti shubhaam
इसी झांसे में आकर
ReplyDeleteइतिहास का भूगोल भी बदल जाता है
और कितनी ही कुवांरी क्रांतियाँ
गर्भ बढाए हुए अजन्मे परिवर्तन का
नामाकरण संस्कार करवाती है
फिर अचानक से यूँ ही
भरे दिन में गर्भपात करा लेती है
दर्द और कुछ आक्रोश व्यक्त करती बेहद सशक्त अभिव्यक्ति
लिखो ,लिखो , खूब लिखो
ReplyDeleteविवश विचारों की आँधियाँ उठाओ
कुचक्रों के चक्रवातों में उन्हें फँसाओ
और अपने काले- उजले अक्षरों को
घसीट-घसीट कर ही सही
अपंग- अपाहिज सा इतिहास बनाओ .
प्रेरणा देती रचना कहूँ या आह्वान करती
अति सुन्दर सशक्त अभिव्यक्ति... सही कहा है आपने पहले वर्तमान सुन्दर बनाओ तो भविष्य भी संवर जायेगा और स्वर्णिम इतिहास अपने आप रच जायेगा...
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 18/12/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका इन्तजार है
ReplyDeleteबहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना .
शशक्त... अद्भुत...
ReplyDeleteसादर।
बहुत खुब. बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteसादर.
आक्रोश व्यक्त करती बेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,
ReplyDeleterecent post: वजूद,
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
जिनके लिए आज भी
ReplyDeleteकाला अक्षर मरी हुई भैंस ही है
जिसके थनदुही में लगे हुए हैं
अक्षरों के थानेदार और हवलदार
जबरदस्त आक्रोश ....बधाई
आपतो अंतर्जाल की कविता कामरेड बनने की राह पर हैं :) हाहाकारी कविता! कुछ अनूठे भावब-प्रयोग हैं !
ReplyDeleteवैचारिक क्रान्ति के स्वर लेखनी से ही उठते हैं ,कोई चाहे जितना तेल कानों में डाले रहे !
ReplyDeleteबेहद शशक्त रचना....
ReplyDeleteशब्द शब्द झकझोरते हुए से....
अनु
आजकल हमने लिखना कम कर दिया है।
ReplyDeleteआज आम आदमी हाशिए पर है। इस भीड़-तंत्र की धक्का-मुक्की और आपा-धापी भरे समय में आम आदमी वहां ठेल दिया गया है जहां उसके होने न होने का कोई अर्थ नहीं रह गया है। उसका सुख-दुख, भूख-प्यास, होना न होना सब बेमानी है
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ReplyDeleteकोई हालत नहीं, ये हालत है
ReplyDeleteये तो अशुभनाक सूरत है
अंजुमन में, ये मेरी खामोशी
बर्बादी नहीं है, वहशत है
----------------------------
आक्रोश व्यक्त करने का निराला अंदाज ...
ReplyDeleteलाजवाब ...
कितना आक्रोश है आपकी रचना में ...और क्यों न हो ...आप लाख सर पटक लें ...लाख पेटीशन साइन करवा लें ..सैंकड़ों मोर्चे निकाल लें ...होता वही है ... जो सत्ताधारी चाहें ....जिससे उनका निहित स्वार्थ सिद्ध हो.......बहुत सुन्दर और हमेशा सामयिक रहने वाली रचना .......
ReplyDeleteविवश विचारों की आँधियाँ उठाओ
ReplyDeleteकुचक्रों के चक्रवातों में उन्हें फँसाओ
और अपने काले- उजले अक्षरों को
घसीट-घसीट कर ही सही
अपंग- अपाहिज सा इतिहास बनाओ .
.........निशब्द.........हैट्स ऑफ ।
aaj to aap bahut rosh mein hain ..behtarin rachna ke liye hardik badhayee
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteAAPNE NE SAHI KAHAA KI LIKHO, KHOOB LIKHO BINA SANKONCH KE KI ZAYAADAA LOG TO SHAYAD PARH HI NAHIN SAKTE TO PHIR SAMAAJ MEIN PARIVARTAN KAISE AAYEGAA. KABHI TO SUBHAH AAYEGEE.
Take care
सशक्त रचना
ReplyDeleteलिखो ,लिखो , खूब लिखो
ReplyDeleteविवश विचारों की आँधियाँ उठाओ
कुचक्रों के चक्रवातों में उन्हें फँसाओ
और अपने काले- उजले अक्षरों को
घसीट-घसीट कर ही सही
अपंग- अपाहिज सा इतिहास बनाओ .
जिजीविषा जब तक है लिखो ....बढ़िया रचना .....
ReplyDeleteलिख भर देने से ही
झख मारते हुए इतिहास बदल जाता है
इसी झांसे में आकर
इतिहास का भूगोल भी बदल जाता है
और कितनी ही कुवांरी क्रांतियाँ
गर्भ बढाए हुए अजन्मे परिवर्तन का
नामाकरण संस्कार करवाती है
फिर अचानक से यूँ ही
भरे दिन में गर्भपात करा लेती है
एक अद्भुत कविता सन्देश देती हुई मन को कचोटती हुई |आभार
अमृता जी, कितना गहरा असर छोड़ती है आपकी यह सत्य को बेनकाब करती रचना...आभार!
ReplyDeleteकाबिल-ए-गौर रचना। लिखने की निरर्थकता पर सार्थक रौशनी डालती हुई। अगर लिखने भर से ही इतिहास बदलते तो आज की दुनिया किताबों में वर्णित दुनिया जितनी ही खूबशूरत होती। लेकिन वास्तविक स्थिति तो इसके ठीक उलट है। शुक्रिया।
ReplyDeleteVirendra Sharma @Veerubhai1947
ReplyDeleteram ram bhai मुखपृष्ठ veerubhai1947.blogspot.i बुधवार, 19 दिसम्बर 2012 शासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में ,
राष्ट्र सारा उद्वेलित है अमृता तन्मय जी , क्या टिपण्णी करें .
ReplyDeleteकभी लिखा गया था -
बाप बेटा बेचता है ,बाप बेटा बेचता है ,
भूख से बेहाल होकर राष्ट्र सारा देखता है .
दुर्भिक्ष पर ये पंक्तियाँ लिखी गई थीं कभी आज वहशियों ने जो दिल्ली में किया है उसने भी वैसी ही छटपटाहट पैदा की है राष्ट्र में लेकिन मनमोहन जी की नींद तब खराब होती है जब ऑस्ट्रेलिया में संदिग्ध अवस्था में कोई मुसलमान पकड़ा जाता है यह है सेकुलर चरित्र इस सरकार का औए एक अदद राजकुमार का जो कलावती की दावत उड़ाने फट पहुंचता है लेकिन फिलवक्त इस कथित युवा को सांप सूंघ गया है .
सोनिया जी जिनका भारत पे राज हैं खुद परेशान हैं क्या करूँ इस मंद बुद्धि का जो गत बरसों में वहीँ का वहीँ हैं ,इससे तो प्रियंका को लांच लरना था .
बलात्कृत युवती से उनका क्या लेना देना .कल बीस तारीख है इनका गुजरात से सूपड़ा साफ़ हो जाएगा और एक अदद राजकुमार की नींद उड़ जायेगी .
एक टिपण्णी ब्लॉग पोस्ट :
Amrita Tanmay
सर्वाधिकार सुरक्षित ( कृपया बिना अनुमति के रचना न लें )
MONDAY, DECEMBER 17, 2012
लिखो , लिखो , खूब लिखो ...
ram ram bhai
ReplyDeleteमुखपृष्ठ
बुधवार, 19 दिसम्बर 2012
शासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में ,
शासन सीधा और सोनिया का जब चलता दिल्ली में
शासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में ,
सरे आम अब रैप से फटतीं ,अंतड़ियां अब दिल्ली में .
चंद मज़हबी वोट मिलें ,आग लगे चाहे भारत में ,
दागी नेता पुलिस के डंडे ,पिटते साधु दिल्ली में .
प्रस्तुतकर्ता Virendra Kumar Sharma पर 11:33 pm कोई टिप्पणी नहीं:
http://veerubhai1947.blogspot.in/
ReplyDeleteMONDAY, DECEMBER 17, 2012
लिखो , लिखो , खूब लिखो ...
हाँ क्रांतियाँ गर्भ च्युत होतीं हैं महज़ लिखने से इतिहास बदलता तो इतिहास का स्वरूप कुछ और होता .
निश्चित ही . लिख भर देने से इतिहास को बदलना ही पड़ता है ...जबरदस्त कविता .
ReplyDeleteएक बड़े प्रश्न का उत्तर भी है यह कविता !