ये किनारा भी , मैं तुम्हें दे दूँ
वो किनारा भी , मैं तुम्हें दे दूँ
ये गझिन गारा भी , मैं तुम्हें दे दूँ
और ये धवल धारा भी , मैं तुम्हें दे दूँ
मेट कर अपनी बनावट , मैं ढह जाऊँ
तेरे अपरिमित ज्वार को , मैं सह जाऊँ
ये तनु तरलता भी , मैं तुम्हें दे दूँ
ये मृदु मधुरता भी , मैं तुम्हें दे दूँ
ये चटुल चपलता भी , मैं तुम्हें दे दूँ
और ये उग्र उच्छ्रिंखलता भी , मैं तुम्हें दे दूँ
तेरी हर साँस में , ऐसे मैं बह जाऊँ
हर साँस की गाथा , हर किसी से कह जाऊँ
ये परिप्लव प्राण भी , मैं तुम्हें दे दूँ
ये निरवद्द निर्वाण भी , मैं तुम्हें दे दूँ
ये अमित अभिमान भी , मैं तुम्हें दे दूँ
और ये अमर आत्मदान भी , मैं तुम्हें दे दूँ
तनिक भी इस मैं में , न मैं रह जाऊँ
बस और बस तुम्हीं में, मैं सब गह पाऊँ .
गझिन - गाढ़ा और मोटा
गारा - मिट्टी( जैसे नदी के तल की )
तनु - सुकुमार
चटुल - चंचल
परिप्लव - तैरता हुआ , बहता हुआ
निरवद्द - दोषरहित , विशुद्ध
बहुत सुन्दर समर्पण....
ReplyDeleteपूर्णता इसी में है...
अनु
तनिक भी इस मैं में , न मैं रह जाऊँ
ReplyDeleteबस और बस तुम्हीं में, मैं सब गह पाऊँ .
...सम्पूर्ण समर्पण की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
समर्पण की चरम सीमा... अति सुन्दर शब्द चयन ने चार चाँद लगा दिए हैं... आभार
ReplyDeleteये गझिन गारा भी , मैं तुम्हें दे दूँ
ReplyDeleteअबकी बार कुछ कठिन शब्द हैं जो समझ मे नहीं आ रहे हैं ....आपका कवि बिना समझे रह नहीं सकते ...कृपया कठिन शब्दों के अर्थ दे दें ....शायद और पाठक भी यही कहें ....
ऐसे रचना तो लाजवाब है ही ...उत्कृष्ट समर्पण भाव के साथ .... .....
आपकी कविता बिना समझे नहीं रह सकते ......ऊपर गलत छप गया है ...क्षमा कीजिएगा ....
Deleteअनुपमा जी , मुझे ही शब्दों का अर्थ देना चाहिए था . कविता के भाव में डूबते-उतराते भान ही नहीं रहा . अच्छा लगा आपका इसतरह से कहना . हार्दिक आभार .
Deleteबहुत ही अलबेली कविता .बिलकुल अलग शैली में लिखी गयी |
ReplyDeleteमेट कर अपनी बनावट , मैं ढह जाऊँ
ReplyDeleteतेरे अपरिमित ज्वार को , मैं सह जाऊँ
गजब का समर्पण और निष्ठां ..
तनिक भी इस मैं में , न मैं रह जाऊँ
ReplyDeleteबस और बस तुम्हीं में, मैं सब गह पाऊँ ....
नदी का समुन्द्र में समावेश हो जाना ... इसीको कहते हैं ....
तेरी हर साँस में , ऐसे मैं बह जाऊँ
ReplyDeleteहर साँस की गाथा , हर किसी से कह जाऊँ
समर्पण ही प्रेम है..
बहुत सुंदर।।।
सब चाहूँ और सब दे दूँ
ReplyDeleteprem ,chah aur samrpan ki adbhut rachna..
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteवाकई लाजबाव !
वाह!
ReplyDeleteये अमित अभिमान भी , मैं तुम्हें दे दूँ
ReplyDeleteऔर ये अमर आत्मदान भी , मैं तुम्हें दे दूँ
वाह ...बहुत सुन्दर समर्पण
नैसर्गिक प्रेम की अभिव्यक्ति, बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteसुन्दर भाव और शब्द....बहुत अच्छी कविता.
ReplyDeleteutam-**
ReplyDeleteफ़ज़ा की आँख भर आई हवा का रंग उड़ा
ReplyDeleteसुकूत-ए-शाम ने चुपके से तेरा नाम लिया
हर एक ख़ुशी ने तेरे गम की आबरू रखी
हर एक ख़ुशी से तेरे गम ने इंतकाम लिया
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पूर्ण समर्पण की चाह ... खुद को मिटा कर ही पूरी होती है .... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteप्रेम में प्रेम पूर्वक समर्पण भाव बिखेरती उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
waah
ReplyDeleteयह सर्वस्व देकर ही तो सम्पूर्ण परिपूर्णता ,संतृप्ति को प्राप्त कर लेना होता है न!
ReplyDeleteगहन प्रेम ,आध्यात्म से भावापूरित अभिव्यक्ति!
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ReplyDeleteसमर्पण और प्यार का बहुत बढिया,उम्दा सृजन,,,, बधाई अमृता जी,,
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा
क्या लिखें? समझ ही नहीं आ रहा.... :) सभी कुछ तो लिख गया... अब बचा क्या ? :)
ReplyDeleteसमर्पण हो तो ऐसा...
~सादर!!!
सारी कविता मूलतः समर्पण भाव को ले कर चली है. ये पंक्तियाँ कुछ और भी कह जाती हैं
ReplyDeleteतेरी हर साँस में, ऐसे मैं बह जाऊँ
हर साँस की गाथा, हर किसी से कह जाऊँ
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ReplyDeleteमेट कर अपनी बनावट , मैं ढह जाऊँ
ReplyDeleteतेरे अपरिमित ज्वार को , मैं सह जाऊँ.....
अच्छा बन पडा है ...
एक लय में बंधी ये कविता बहुत सुन्दर बन पड़ी है.......शानदार ।
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteSACHE PREM KI BHAWNA THEEK KAHI AAPNE, YEH EK PREMI KE LIYE YAA APNE BACHE KE LIYE HO SAKTI HAI.
Take care
समर्पण की सुन्दर चाह..बहुत सुन्दर..
ReplyDeletesundar kavita..dhanyawad
ReplyDeleteBeautiful :)
ReplyDeletehttp://www.iredeem.blogspot.in/
तनिक भी इस मैं में , न मैं रह जाऊँ
ReplyDeleteबस और बस तुम्हीं में, मैं सब गह पाऊँ .
सुंदर गीत. अदभुत भाव.
समर्पण की पराकाष्ठा जैसे प्रेम का सागर उमड़ आया हो ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
तनिक भी इस मैं में , न मैं रह जाऊँ
ReplyDeleteबस और बस तुम्हीं में, मैं सब गह पाऊँ .
सुंदर....
ati sunder.....
ReplyDeleteshandaar prastuti...aapkee bahurangi rachnaaon ka ek shandar rang...sadar badhayee
ReplyDeleteकाबिल-ए-तारीफ समर्पण। स्वागत है।
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