Social:

Friday, June 17, 2011

दिवा-फिल्म

माना कि
खुदा मेहरबान है
तो.................है...
ये भी माना कि
आपसे मिली है मुझे
चार दिनों की चाँदनी...
पर अब
मेरी लाठी मेरा सूरज
और मेरा चाबुक देख
ऊँट करवट बदलेगा.....
बाली सा वरदान है
जगत जनार्दन से
गजब गठबंधन है
बहुमत है बहुबल भी है....
चाहे तो ग्रह-नक्षत्र
इधर से उधर हो जाए
ग्रहण लगने की कोई
गुँजाइश ही नहीं है......
अनहोनी के अंदेशा से ही
मदमस्त हाथी बन
रात गए रौंद सकता हूँ
आपके अरमानों को.......
मेरे इस
हास्यास्पद,लज्जास्पद लीला से
भले ही आपकी
आँखे या छाती
फटे तो आपकी बला से.......
बेलगाम घोड़ा हूँ तो क्या
आपका नकेल कसता रहूँगा...
हमारा लोकतंत्र फले-फूले
सो जंगल-नीति अपनाना है
मिश्री-मलाई से चुपड़ कर
आपको बहलाना-फुसलाना है... 
एक बार फिर
ये चाँदनी हमें ही दें आप
ऐसा दिवा-फिल्म दिखलाना है...
हम भी क्या करे
ये साम,दाम,दंड, भेद
का ही तो ज़माना है.
 

50 comments:

  1. सच है.. अच्छी कविता

    ये साम, दाम ,दंड भेद का ही जमाना है।.

    ReplyDelete
  2. सही कहा आपने ये साम, दाम, दंड, भेद का ही तो जमाना है |

    ReplyDelete
  3. सच-मुच साम-दाम
    दंड-भेद का ज़माना है ||

    डरना सीखो--भूत-पिशाच से नहीं,
    बल्कि नर-पिशाच से |
    डरना सीखो--महाविनाश से नहीं,
    बल्कि नरक-आँच से ||

    डरना सीखो--सिर-बिठाने से नहीं,
    बल्कि नंगे-नाच से |
    डरना सीखो--राज-काज से नहीं,
    बल्कि अन्धी-जाँच से |

    डरना सीखो--तर्क-शास्त्र से नहीं,
    बल्कि तीन-पाँच से |
    डरना सीखो--"दमन-राज" से नहीं,
    बल्कि आत्म-साँच से ||

    ReplyDelete
  4. हाँ यह अवसर वाद का ज़माना है
    जिस सीधी से ऊपर चढो
    उसी को फेंक जाना है...
    जी हाँ यह अहसान फरामोशों और नमक हरामों का जमाना
    है जो बालि से मजबूत और सहस्रबाहु से भी भयंकर है ..
    आपकी कविता तो कविता लिखाने लगती है -बहुत इन्फेक्शस है! :)

    ReplyDelete
  5. बहुत सटीक टिप्पणी आज के हालात पर..बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  6. अमृता तन्मय जी बहुत सुन्दर कविता बेबाक करार व्यंग्य काश उनके दिल में चुभे और हमारी जनता भी आने वाले समय में अपनी लाठी और चाबुक दिखा दे तो आनंद आ जाये

    बधाई हो

    शुक्ल भ्रमर ५

    ReplyDelete
  7. दिवा फिल्म ही है इस दौर का लोकतांत्रिक व्यवहार .बहुत ही सटीक तेजधार चाक़ू सा काटती रचना अंतस को गहरे बहत गेहरे .आभार आपका .पर्यावरण के अनुकूल अक्षर शब्द बन खड़े हो गएँ हैं कविता में साजिश का पर्दा फाश करने समझने समझाने को .आम औ ख़ास को .

    ReplyDelete
  8. एक बार फिर
    ये चाँदनी हमें ही दें आप
    ऐसा दिवा-फिल्म दिखलाना है...
    हम भी क्या करे
    ये साम,दाम,दंड, भेद
    का ही तो ज़माना है.


    बढ़िया कटाक्ष है ...

    ReplyDelete
  9. ख़ुदा मेहरबान तो बंदा पहलवान...देर-सवेर सेर को सवा सेर मिल ही जाता है...ये विधि का विधान है...कोई डरने की बात नहीं...आप ऐसे ही लिखती रहिये...

    ReplyDelete
  10. इसे आप फौरन कापीराइट करा लीजिए वर्ना फिल्म वाले इसके टाइटल बना लेंगे :)

    ReplyDelete
  11. सच्ची अच्छी और समसामयिक पंक्तियाँ ....बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  12. साम, दाम, दंड, भेद के इस जमाने में साम, दाम, दंड, भेद ही अपनाना पड़्ता है

    ReplyDelete
  13. माना कि ये साम,दाम दंड,भेद का ज़माना है पर कभी कभी ये भी कम नहीं आते.

    सादर

    ReplyDelete
  14. यथार्थ की सत्य प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  15. नब्ज़ पहचानी आपने. हालात पर सटीक टीप की है.

    ReplyDelete
  16. सम सामयिक राजनीति और राजनीतिज्ञों पर गुरुतर व्यंग . आभार.

    ReplyDelete
  17. MAM SARTHAK PARSTUTI DI HAI APNE. . . BAHUT KHUB. . . .
    JAI HIND JAI BHARAT

    ReplyDelete
  18. साम, दाम ,दंड भेद का ही जमाना है।.
    बिल्कुल सही कहा आज के घटना चक्र पर सटीक व्यंग्य्।

    ReplyDelete
  19. bilkul sahi...satik varna...
    jo aaj ho raha hai us par sahi se samjha paayi hai aap....aabhar

    ReplyDelete
  20. Amrita,poori ki poori kavita ek darshnik kaviyatri ke man ki peera ko chitrit karti hai...ham sab apne bhoge huye yatharth ko kahin na kahin jeete hain aur us dard ko peete hain...par use is tarah vyakt karne ki himmat kam hi jata paate...dusri baat ,muddon ko samajhne ka maadda bhi hona chahiye na...jo aap mein koot koot kar bahra para hai...
    Aapki kavita padhne ke baad shabdon ke mohjaal mein uljhe bina rah nahi paata...main bhi chakit ho jaata hun ki aap kitna kuch asaani se kah dalti hain...aur aapki samajh samay ki nabz ko bahut acchhi tarah pakarti hai..
    Meri tareef karne ke liye shukriya...main shayad itni tareef deserve nahi karta...par sarahna himmat deti hai...likhne ki...sketch karne ki...samy ke kore panne par kuch hastakshar chhor hjaane ki...

    ReplyDelete
  21. bahut acchi rachna hai aapki mano kuch kah rahi ho
    mere blog par bhi aaye mere blog par aane ke liye ye rahi link-
    "samrat bundelkhand"

    ReplyDelete
  22. बहुत ही सटीक बात कही है आपने,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  23. bilkul sahi hai achi rachna ........

    ReplyDelete
  24. सामयिक घटनाचक्र पर मासूम सा कटाक्ष।
    बढ़िया रचना।

    ReplyDelete
  25. aap mein kisee pahadee nadee ka jaisa prawaah hai , sammohak!

    ReplyDelete
  26. Amrita,

    AAPKAA LINK JYOTI KE BLOG SE MILAA. AAP AAJ KE ZAMAANE KI STITHI PAR VYANGAATMAK TARIQE SE LIKHNAA BAHUT ACCHAA LAGAA.

    KRIPYA LIKHTI RAHIYE AUR APNA KHYAAAL RAKHIYE

    ReplyDelete
  27. करारा व्यंग. सबको प्रयास करने होंगे. सम्मिलित प्रयास से ही कामयाबी की उम्मीद जाग सकती है.

    ReplyDelete
  28. सामयिक ... आज के हालात पर तप्सरा .. करार व्यंग ..

    ReplyDelete
  29. ज़बरदस्त.....शानदार......बेहतरीन

    ReplyDelete
  30. कल 21/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
    आपके विचारों का स्वागत है .
    धन्यवाद
    नयी-पुरानी हलचल

    ReplyDelete
  31. आज के हालातों का कच्चा चिट्ठा खोलती कविता !

    ReplyDelete
  32. बहुत अच्छी कविता...
    हम तो पहली बार आपके ब्लॉग पर आये,यह प्रस्तुति अच्छी लगी !

    ReplyDelete
  33. मिश्री -मलाई से चुपड़ कर
    आपको बहलाना फुसलाना है
    एक बार फिर ये चांदनी हमें ही दें आप ।
    रिवर्बरेट करतीं हैं ये पंक्तियाँ राजनीति के बगुलों की ,
    इसीलिए तो फिर लौट आया हूँ ।
    बधाई आपको .

    ReplyDelete
  34. अमृता जी,
    बहुत ही खूब.
    गहरी पैठ.
    सटीक व्यंग.

    ReplyDelete
  35. yahi duniya hai sam dam dand ke baegaer chalti hi kahan hai
    sunder likha hai
    rachana

    ReplyDelete
  36. हालात का सही चित्रण कविता के ज़रिये.

    ReplyDelete
  37. हा हा हा हा....बहुत सही बहुत सही...आज के समय के लिए अच्छा व्यंग...

    ReplyDelete
  38. कितने दिनों बाद आया हूँ आपके ब्लॉग पे..पढता हूँ अभी आपकी बाकी की कविता जो नहीं पढ़ा था :)

    ReplyDelete
  39. सत्तामद पर सटीक प्रस्तुति ....
    जनता को अगर कुछ नहीं करना है तो यही हर बार सुनना और झेलना है

    ReplyDelete
  40. करारा व्यंग, सटीक बात...अच्छा लगा...

    ReplyDelete
  41. यथार्थ वास्तविक धरातल और परिस्थितियों को इंगित करती रचना ..

    ReplyDelete
  42. बेहद खूबसूरत बयाँ..करारी चोट और मजबूत इरादे ..वाह उम्दा लिखा है..

    ReplyDelete
  43. all relation has been commercialized... i m thankful to u for coming to my blog

    ReplyDelete
  44. अमृताजी
    नमस्कार !

    बहुत समय बाद आ पाया हूं … उपस्थित दर्ज़ करलें :) …

    सोचने को विवश करती रचना के लिए आभार !

    ReplyDelete
  45. बहुत सुन्दर लिखा है।

    ReplyDelete
  46. Kamal likha hai,maza aaya padhkar

    ReplyDelete
  47. ha mam sahi kaha hai apne,,,saa daam dand bhed ka hi jamana hai,.........jai hind jai bharat

    ReplyDelete
  48. बहुत सुन्दर लिखा है....
    विजय पर्व "विजयादशमी" पर आप सभी को ढेर सारी शुभकामनायें..

    ReplyDelete