कुछ अति साधारण से
लोकल चलताऊ शब्दों में
दो - चार नहीं
पाँच - दस अर्थों को भर कर
मेकओवर , कॉस्टमेटिक सर्जरी करवाकर
किसी बड़े फैशन डिजायनर के
लेटेस्ट मॉडल का ड्रेस पहनाकर
आज की मेनकाओं की तरह
नग्नता के ठुमके लगवाकर
अवार्ड विनिंग संगीतकार के
चोरी किये गए धुन पर
कुछ बे- ताल से ताल मिलाकर
किसी बड़े ओपन स्टेडियम में
सेलेब्रेटियों के बीच नचवाकर
कविता तो बनाई जा सकती है
मसालेदार लजीज कविता
देखने सुनने वालों के मुँह में
कोल्ड ड्रिंक्स वाली लार भर
बूंद - बूंद से प्यास मिटा सकती है
साहित्य अकादमी वाले
सभ्यता संस्कृति के नाम पर
शर्म की झीनी चदरिया ओढ़ भी ले
पर ग्लोबलाइज्ड पुरस्कारों को
महान कवियों के लाल में भी दम नहीं
कि कीर्तिमान बनाने से रोक ले
सच में ...सच
ReplyDeleteपुरूस्कार, अर्जित आय, प्रशंसक
ReplyDeleteसफलता की कसौटी नहीं हैं
पुरूस्कार फि-िक्संग से
आमदनी मार्केटिंग से
प्रशंसक विज्ञापन से पैदा हो जाते हैं
असली उपल-िब्ध तो वहीं है कि
पाठक अपने आप को सौभाग्यशाली समझे
कि मुझे यह कविता पढ़ने को मिली
आपका सोचना सही है