बीनी बीनी बसंत बानी
तरसे तरसे तन्वी तेवरानी
अंग अंग अजबै अंखुआनी
पोर पोर पुरेहिं पिरानी
सिरा सिरा सिगरी सिकानी
रुंआ रुंआ रुतै रूमानी
सांस सांस सौंधे सोहानी
रिझै रिझै रमनी रतिरानी
मनहिं मनहिं मयूर मंडरानी
कहैं कहैं कइसे कहानी ?
सीझै सीझै सुलगे सधुआनी
तरसे तरसे तन्वी तेवरानी
बीनी बीनी बसंत बानी
बीनी बीनी बसंत बानी
सरसे सरसे सजनी सयानी
उड़ि उड़ि उछाह उसकानी
झूमत झूमत झनके झलरानी
सरकै सरकै समूचा सावधानी
बोलत बोलत बिहंसे बौरानी
अपने अपने अति अभिमानी
चिहुंक चिहुंक चले चपलानी
हुमकत हुमकत हेराये हुलरानी
चंपई चंपई चारुचाह चुआनी
बुंदन बुंदन बास बरसानी
सरसे सरसे सजनी सयानी
बीनी बीनी बसंत बानी .
तरसे तरसे तन्वी तेवरानी
अंग अंग अजबै अंखुआनी
पोर पोर पुरेहिं पिरानी
सिरा सिरा सिगरी सिकानी
रुंआ रुंआ रुतै रूमानी
सांस सांस सौंधे सोहानी
रिझै रिझै रमनी रतिरानी
मनहिं मनहिं मयूर मंडरानी
कहैं कहैं कइसे कहानी ?
सीझै सीझै सुलगे सधुआनी
तरसे तरसे तन्वी तेवरानी
बीनी बीनी बसंत बानी
बीनी बीनी बसंत बानी
सरसे सरसे सजनी सयानी
उड़ि उड़ि उछाह उसकानी
झूमत झूमत झनके झलरानी
सरकै सरकै समूचा सावधानी
बोलत बोलत बिहंसे बौरानी
अपने अपने अति अभिमानी
चिहुंक चिहुंक चले चपलानी
हुमकत हुमकत हेराये हुलरानी
चंपई चंपई चारुचाह चुआनी
बुंदन बुंदन बास बरसानी
सरसे सरसे सजनी सयानी
बीनी बीनी बसंत बानी .
वाह..बहुत भीनी भीनी मनभावन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह..बहुत भीनी भीनी मनभावन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअद्भुत शिल्प ,कथ्य पर तो बस एक दीर्घ निःश्वास
ReplyDeleteमनभावन बसंत बानी ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बसंत का ऐसा वर्णन पहले कभी नहीं पढ़ा. भई वाह!
ReplyDeleteअद्भुत
ReplyDeleteव्कः ... बसंत की फुहारे छूट पड़ी हों जैसे ... गज़ब शब्द संचरण ने रचना को नया आयाम दे दिया है ...
ReplyDeleteइस आस को पुकार मिले, प्यार मिले।
ReplyDeleteमौसम का काम ही यही है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना. बधाई
ReplyDeleteअति सुन्दर भावपूर्ण रचना. बधाई
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