इस ग्रीष्म की
आकुल उमस में
ऊँचें पर्वतों के
शिखरों से लेकर
समतल मैदानों में
साथ ही सूखी-बंजर
जमीनों के ऊपर भी
एक बादल
ऐसे घिर आया है
कि आँखों में
भर आया है
सारा आकाश....
जैसे
आशंका और विस्मय से
खुद को छुड़ाकर
ख़ुशी और उमंग
ह्रदय को थपथपा कर
कुछ और ही
कहना चाह रही हो...
जैसे कोई
शीतल-सा जल-कण
छोटा-छोटा मोती बन कर
बरस रहा हो..
सच में
बिन मौसम ही
एक आस-फूल खिला है
तो क्यों न ?
सबको मिलकर
उसे ऐसे खिलाना है कि
वह बस
आकाश-फूल न बनकर
हमेशा के लिए
उजास-फूल बन जाए..
इसके लिए
थोड़ा आगे बढ़कर
क्यों न हम ?
कम-से-कम
अपने-अपने कीचड़ में
अपना-अपना
एक कमल-फूल खिलाएँ
और विकसित होकर
खुद महके
औरों को भी महकाएँ .
आकुल उमस में
ऊँचें पर्वतों के
शिखरों से लेकर
समतल मैदानों में
साथ ही सूखी-बंजर
जमीनों के ऊपर भी
एक बादल
ऐसे घिर आया है
कि आँखों में
भर आया है
सारा आकाश....
जैसे
आशंका और विस्मय से
खुद को छुड़ाकर
ख़ुशी और उमंग
ह्रदय को थपथपा कर
कुछ और ही
कहना चाह रही हो...
जैसे कोई
शीतल-सा जल-कण
छोटा-छोटा मोती बन कर
बरस रहा हो..
सच में
बिन मौसम ही
एक आस-फूल खिला है
तो क्यों न ?
सबको मिलकर
उसे ऐसे खिलाना है कि
वह बस
आकाश-फूल न बनकर
हमेशा के लिए
उजास-फूल बन जाए..
इसके लिए
थोड़ा आगे बढ़कर
क्यों न हम ?
कम-से-कम
अपने-अपने कीचड़ में
अपना-अपना
एक कमल-फूल खिलाएँ
और विकसित होकर
खुद महके
औरों को भी महकाएँ .
अपना कीचड़
ReplyDeleteकहाँ दिखता है खुद को
दूसरे का कीचड़
जरूर कहीं होता है
उसमें कमल
खिलाने को ही
हर कोई
कुछ ना कुछ
कह ही लेता है :)
बहुत सूंदर रचना ।
इधर खिला वो उधर खिला वो, महक गया, हां महक गया। कमलापति का स्वागत है।
ReplyDeleteसुन्दर भविष्य की आशा ले कर प्रयत्न करना भी प्रसन्नता पाना है ..
ReplyDeleteखुद को महकने का प्रयास करें तो देश खुद-ब-खुद महक उठेगा...
ReplyDeleteआओ एक कमल खिलाएँ अपने कीचड़ मे :) बहतरीन !! सूपर्ब !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteप्रासंगिक रचना..और यकीनन देश में खिले कमल से ज्यादा अपने मन में खिलने वाला कमल ही जीवन को साकार कर सकता हैं...
ReplyDeleteहै मगर उम्मीद यही कि वो सुबह कभी तो आएगी...
ReplyDeleteसुंदर रचना...शुभकामनाएँ...
आह्वान अच्छा है और इसके लिए शुभकामनायें हैं.
ReplyDeleteअच्छी शुरुआत का इशारा ... खुद ही महकना होगा ... कमल बनना होगा ...
ReplyDeleteएक बादल
ReplyDeleteऐसे घिर आया है
कि आँखों में
भर आया है
वाह , बहुत खूब। बहुत सुन्दर रचना. बहुत बहुत बधाई और आभार
वाह बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteहाँ, समय भी तो यही गीत गा रहा है. आखिर शुरुआत करनेवाला ही तो अंत तक याद किया जाएगा.
ReplyDeleteसशक्त सुंदर भाव ...!!
ReplyDeleteराजनीतिक वातावरण को छू कर अंतःकरण के कमल खिलाने के भाव तक ले जाती कविता. बहुत खूब.
ReplyDeleteWaaaaaaah
ReplyDeleteसुंदर भावाव्यक्ति ! मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteसुशील कुमार जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ।
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