आजकल
शब्दों की हिम्मत भी
हवा देखकर बढ़ सी गयी है ...
न जाने क्यूँ वे
अपना आक्रोश मुझपर ही
अजीब तरह से व्यक्त कर रहे हैं
मैं निकल जाने को भी कहूँ तो
कुछ बुदबुदाते हुए उबल रहे हैं ....
तब तो शब्दों की छाती पर
मैंने भी तान दिया है पिस्तौल
अब तो उन्हें राजद्रोह स्वीकारना होगा
साथ में गिरफ्तारी भी देनी होगी
अपना बॉडी- वारंट देखे बिना ....
अब वे करते रहे अपना वकील
लिखवाते रहे अपने लिए हिदायतें
छाँटते रहे सही-गलत बातों को
अपना छाती दुखा-दुखा कर
करते रहे अपना जिरह
व अपनी पैरवी के लिए
करते रहे सारे प्रबंध-कुप्रबंध
और अपने धारदार बहसों से
काटते रहे गले के फंदों को ....
पर मैं तो एकदम से इन शब्दों की
बौराई हुयी सरकार सी हो गयी हूँ
अति आक्रोश में हूँ
इसलिए कुछ गिरगिटी शब्दों को छोड़कर
बाकी उन सभी रुष्ट शब्दों को
एक-एक करके
नजरबन्द कर देना चाहती हूँ
अपने कलम में ही .
प्रासंगिक अभिव्यक्ति हुई है भाव की अर्थ की .
ReplyDeleteपर मैं तो एकदम से इन शब्दों की
ReplyDeleteबौराई हुयी सरकार सी हो गयी हूँ
अति आक्रोश में हूँ
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आपका गुस्सा भी स्वीकार है पर शब्दों की नजरबंदी का आत्मघाती फैसला ? अब माफ़ कर दीजिये उन शब्दों को ......
रचना बेहद ही आक्रामक
प्रासंगिक अभिव्यक्ति हुई है भाव की अर्थ की .
ReplyDeleteVirendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 दिमागी तौर पर ठस रह सकती गूगल पीढ़ी
आक्रोश से भरी रचना ,,,,,नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !'
ReplyDeleterecent post : नववर्ष की बधाई
पर मैं तो एकदम से इन शब्दों की
ReplyDeleteबौराई हुयी सरकार सी हो गयी हूँ
अति आक्रोश में हूँ
इसलिए कुछ गिरगिटी शब्दों को छोड़कर
बाकी उन सभी रुष्ट शब्दों को
एक-एक करके
नजरबन्द कर देना चाहती हूँ
अपने कलम में ही .
बहतरीन आक्रोश प्रदर्शन .....बहुत सुंदर रचना .....सच मे अमृता जी ....आपकी कलाम की ताकत बढ़ती जा रही है .....शुभकामनायें ......!!
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ReplyDeleteइसलिए कुछ गिरगिटी शब्दों को छोड़कर
बाकी उन सभी रुष्ट शब्दों को
एक-एक करके
नजरबन्द कर देना चाहती हूँ
अपने कलम में ही .
..अंतस के आक्रोश की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
Amrita,
ReplyDeleteBILKUL SAHI DHANG NAZARBAND KARNE KAA.
Take care
भीतर के आक्रोश को दिखती शानदार रचना |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-ख्वाब क्या अपनाओगे ?
जो तटस्थ है उनका इतिहास भी समय लिखेगा . शब्दशः सहमत इस आक्रोश से.
ReplyDeleteजहाँ अभिव्यक्ति कैद है ? ?
ReplyDeleteशानदार रचना, बौराई हुयी सरकार सी हो गयी हूँ
ReplyDeleteअति आक्रोश में हूँ
इसलिए कुछ गिरगिटी शब्दों को छोड़कर
बाकी उन सभी रुष्ट शब्दों को
एक-एक करके
नजरबन्द कर देना चाहती हूँ
अपने कलम में ही .
अति आक्रोश में हूँ
ReplyDeleteइसलिए कुछ गिरगिटी शब्दों को छोड़कर
बाकी उन सभी रुष्ट शब्दों को
एक-एक करके
नजरबन्द कर देना चाहती हूँ
अपने कलम में ही .
शानदार आक्रोश
आज और भी प्रासंगिक लग रही है ये रचना, हाल की कुछ घटनाओं के कारण
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
क्या बात,
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
रचना में आपके भाव और विचारों के साथ-साथ शब्दों की ताकत भी भली-भांति झलक रही है...गहन भाव... नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनायें
ReplyDeleteपर मैं तो एकदम से इन शब्दों की
ReplyDeleteबौराई हुयी सरकार सी हो गयी हूँ
अति आक्रोश में हूँ
इसलिए कुछ गिरगिटी शब्दों को छोड़कर
बाकी उन सभी रुष्ट शब्दों को
एक-एक करके
नजरबन्द कर देना चाहती हूँ
अपने कलम में ही .
आक्रोश को आपने शब्द दे दिए.
लाठीचार्ज, पानी की बौछार और आंसू गैस से मन भी तो नहीं भरता, यहां के बाद वहां नज़र आ ही जाते हैं, इसलिए इन्हें नज़रबंद करना ही सही उपाए है।
ReplyDeletebehad sashakt abhivyakti amrita ji..hriday ka aakrosh hi hai jo shabdon ke madhyam se prakat ho raha hai..
ReplyDeleteशब्द सक्षम नहीं जब हो, भाव व्यक्त करने को,
ReplyDeleteसमय आ गया कर्म उठें यह महारिक्त भरने को।
मन मेंपले आक्रोश को व्यक्त करती आपकी यह रचना बहुत ही अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteजब उफान रह-रह कंठ तक आये
ReplyDelete,न बैठ पाये न बाहर निकल पाये !
स्तब्ध कर गयी रचना .......
ReplyDeleteविद्रोही मन दाद तो दे रहा हूँ
पता है मुझे आसमान कई नापने है ....
इस कोमल मन के अंतस को ...
साधू .......
नववर्ष की शुभकामना आ.अमृता जी ...
उत्कृष्ट और सटीक लेखन पर बधाइयां
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ReplyDeleteसंवेदनहीन सरकार से सिर्फ शब्दों का मायाजाल ही मिल सकता है कोई सार्थक प्रयास और परिणाम नहीं.
ReplyDeleteनववर्ष २०१३ की बहुत बहुत शुभकामनायें.
पर मैं तो एकदम से इन शब्दों की
ReplyDeleteबौराई हुयी सरकार सी हो गयी हूँ
अति आक्रोश में हूँ
इसलिए कुछ गिरगिटी शब्दों को छोड़कर
बाकी उन सभी रुष्ट शब्दों को
एक-एक करके
नजरबन्द कर देना चाहती हूँ
अपने कलम में ही .
बहुत खूब...मौजुदा व्यवस्था पता नहीं कब बदलेगी।।
आपातकाल, सेंसरशिप, दमन, तानाशाही ... जब व्यवस्था का अभाव हो तो अपने को सम्राट समझने वाले घिसटते हुए "जन-प्रतिनिधि" इन्ही बैसाखियों का सहारा लेते हैं ...
ReplyDeleteअति आक्रोश में हूँ
ReplyDeleteइसलिए कुछ गिरगिटी शब्दों को छोड़कर
बाकी उन सभी रुष्ट शब्दों को
एक-एक करके
नजरबन्द कर देना चाहती हूँ
अपने कलम में ही
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नये साल पर कुछ बेहतरीन ग्रीटिंग आपके लिए