माना कि हर समय
पलड़े का झुका काँटा है
और दैविक सुअवसरों ने
केवल दुःख ही दुःख बाँटा है....
पर सच देखा जाए तो
हीरे ने ही हीरे को काटा है
चाहे जितना भी खींचता हुआ
त्रासदियों का ज्वार-भाटा है....
कौन कहता है कि
जिसे तिरना नहीं आता
हर लहरों से वह हारा है
उसका भी क्षिति से क्षितिज तक
क्षण प्रति क्षण का सहारा है....
अनुक्त अनुभूतियों का भी
विस्तृत विसदृश्य किनारा है..
जिसने अतल गहराइयों से भी
हर बार , हर बार उबारा है.......
ये भी माना कि
जिसे जीवन की नदी में
अपना द्वीप बनाना नहीं आता...
गंभीर ग्रीष्म को देखकर भी
मेघ बन उफन जाना नहीं आता...
और सूर्य की दीप्त किरण से
विमल हो मिल जाना नहीं आता....
पर वे भी एक
अकल्प अद्भुत संयोग ही हैं
विषम व्यवधान हेतु
एक विलक्ष वियोग ही हैं......
किन्तु ये तो बस समय की बात है
जिसमें संभवत: नियति के
खलनायक का भी बड़ा हाथ है.....
ह्रदय तो बस
ह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है....
कहीं से तनिक भी
पाकर अनमोल प्रेम-वरदान
निर्मल सरोवर सा
बन जाता है हर सूखा प्राण....
जी उठती है जिसमें असीमित धार
छोड़ सारे अहम् व वहम को
कर ही लेता है वो
अभिनव,अभिभूत,अपरिमित प्यार .
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....................
ReplyDeleteह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है...
वाह कितना सुन्दर भाव ...
काश यह मात्र कवि सत्य न हो ,वास्तविक भी हो ! :)
ह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
और फिर शायद यही अंतिम सत्य है
Amrita,
ReplyDeleteYEH SACH HAI KI PREM SE JEEVAN KHUSHION SE BHAR JAATAA HAI.
Take care
प्रेम का वरदान जिसे मिल गया वह तो समझो मझधार से तर गया।
ReplyDelete(कविता समाप्त होने के बाद जो खाली स्थान शेष रह गया है उसे मिटा दें।)
इतनी गहरी बातें आपने अपनी रचना में पिरोई है कि कम से कम चार तो पढ़नी ही पड़ी तब जाकर बातों के मर्म से आमना सामना हुआ .
ReplyDeleteक्या कहूँ कभी सोचता हूँ इस बार तो कहीं कमी मिलेगी लिख दूंगा नहीं भाया ,लेकिन हर बार अफसोस ,इस बार भी ,.....
जीवन कि बारीकी लिए .......
ह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है....
यही सत्य है,,,,,,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
ह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है....
सच है ....बहुत सुंदर रचना
ह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है....
कहीं से तनिक भी
पाकर अनpaमोल प्रेम-वरदान
निर्मल सरोवर सा
बन जाता है हर सूखा प्राण....gahan chintan...bejod shabdabali..alankarik rachna..uddhrit panktiyan to man ko choo gayeein..sadar badhayee ke sath
कोई है, मन सहलाता जो..
ReplyDeleteसचमुच प्रेम प्रकृति का अनमोल वरदान है, निर्मल सरोवर सा सुन्दर पावन... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteजी उठती है जिसमें असीमित धार
ReplyDeleteछोड़ सारे अहम् व वहम को
कर ही लेता है वो
अभिनव,अभिभूत,अपरिमित प्यार
अभिनव,अभिभूत,अपरिमित और अद्धभुत प्यार दिखा आपकी रचना में
अद्भुत रचना .... गहन विचार ....
ReplyDeleteऔर दैविक सुअवसरों ने
केवल दुःख ही दुःख बाँटा है....
पर सच देखा जाए तो
हीरे ने ही हीरे को काटा है ।
सुख की भी अनुभूति तो हुयी होगी तभी न दुख का एहसास है ....
अहम न हो तो बस प्रेम ही प्रेम है ...
प्रेम की उत्तम व्याख्या ...
ReplyDeleteह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है.
अमृता जी ,ह्रदय के भावों का इतना चित्रमय वर्णन मैंने नहीं पदा था.मै इनदिनों अमेरिका के प्रवास पर हूँ.कलिफोर्निया के एक शहर सनीवेल में जंहाँ भारतीया बहुल हैं वंही की एक संस्था में हिंदी कवी सम्मलेन होने जा रहा है .इसमें ही मुझे भी शिरकत करनी है.चुकी कल्ह ही है और मै आपसे पर्मिसिन भी नहीं ले सकता हूँ ,किन्तु आपको सूचित कर रहा हूँ की आपकी यह कविता का पाठ वंहा करने जा रहा हूँ.मै अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ ,क्षमा कीजियेगा.
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प्रेम जीवन की अनुपम अनुभूति, प्रेम किया तिनहि प्रभु पायो। बेहतरीन रचना
केरा तबहिं न चेतिआ, जब ढिंग लागी बेर
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ संडे सन्नाट, खबरें झन्नाट♥
♥ शुभकामनाएं ♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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कौन तुम जो क्षण प्रतिक्षण
ReplyDeleteकर रहे हो सृष्टि रक्षण
गूढ जितने, हो सरल मन.....
सादर
छोड़ सारे अहम् व वहम को
ReplyDeleteकर ही लेता है वो
अभिनव,अभिभूत,अपरिमित प्यार .
गहन अभिव्यक्ति ...सुंदर मार्गदर्शन ....अद्भुत रचना अमृता जी ....
'किन्तु ये तो बस समय की बात है
ReplyDeleteजिसमें संभवत: नियति के
खलनायक का भी बड़ा हाथ है.....
ह्रदय तो बस
ह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है....'
- कविता है या अनुभूति के स्वर्णिम कणों की सुन्दर लड़ी !
ह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है....
बेशक !
ह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है....
कहीं से तनिक भी
पाकर अनमोल प्रेम-वरदान
निर्मल सरोवर सा
बन जाता है हर सूखा प्राण..
एक ह्रदय जब दूसरे ह्रदय की बात समझ लेता है , पहचानता है , तो भीतर सूखा सा फिर हरा हो जाता है ...
बेहतरीन , अमृता जी !
प्रेम तो बस प्रेम होता है, उसको बहुत खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है आपने....
ReplyDeleteपापा, आपसे माफ़ी मांगता ही रहूँगा......
सच देखा जाए तो
ReplyDeleteहीरे ने ही हीरे को काटा है
चाहे जितना भी खींचता हुआ
त्रासदियों का ज्वार-भाटा है....तो किसी दर्द को दर्द का मारा ही जान सकता है और बाँट सकता है
ह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..बहुत सुन्दर...
अद्भुत रचना अमृता जी .
ReplyDeleteभावों की विलक्षणता और शब्दों की चतुरंगिनी . वरदान सदृश है सब कुछ .
ReplyDeleteकौन कहता है कि
ReplyDeleteजिसे तिरना नहीं आता
हर लहरों से वह हारा है ...
बहुत खूब ... सच है हार तो मन से है ... मानने पे है ... गहरे भाव ...
सचमुच दिल से दिल की बात हो जाती है और किसी को कानों कान खबर भी नहीं होती...बहुत सुंदर भाव और शब्दों का प्रवाह तो बेजोड़ है...अमृता जी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (19-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
जी उठती है जिसमें असीमित धार
ReplyDeleteछोड़ सारे अहम् व वहम को
कर ही लेता है वो
अभिनव,अभिभूत,अपरिमित प्यार .
प्यार की शक्ति है ही अपरिमित. सुंदर भाव लिये एक लाजवाब कविता.
कहीं से तनिक भी
ReplyDeleteपाकर अनमोल प्रेम-वरदान
निर्मल सरोवर सा
बन जाता है हर सूखा प्राण....sacchi bat...
जहॉ प्रेम नहीं, वहॉं शाति नहीं हो सकती। जहॉं पवित्रता नही, वहॉं प्रेम नहीं हो सकता। जब जीवन में हर परिस्थिति का सामना करना ही है तो प्रेम से सामना क्यों न करें? दु:खों से भरी इस दुनिया में सच्चे प्रेम की एक बूंद भी मरूस्थल में सागर की तरह है। इसलिए अगर यह मिल जाए, तो वरदान ही है।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteछोड़ सारे अहम् व वहम को
ReplyDeleteकर ही लेता है वो
अभिनव,अभिभूत,अपरिमित प्यार .
बहुत ही सुन्दर और सशक्त पोस्ट।
ह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
बहुत सुंदर रचना ...
कुछ दिल ने कहा............
ReplyDeleteकहीं से तनिक भी
ReplyDeleteपाकर अनमोल प्रेम-वरदान
निर्मल सरोवर सा
बन जाता है हर सूखा प्राण....
....सच्चा प्रेम एक अपरिमित वरदान है जो जीवन की दिशा बदल देता है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
Waaahhhh...beautiful....
ReplyDeletetotally awesome kavita hai di:) :)
आदरणीय अमृता तन्मय जी,
ReplyDeleteआपको सहर्ष सूचित कर रहा हूँ की आपकी कविता "प्रेम वरदान ''यंहां सनीवेल ,कलिफोर्निया ,में प्रवासी भारतीया हिंदी सम्मलेन में मेरे द्वारा प्रस्तुत की गयी.इस कविता की यंहां के लोकल पपेरों में भी छपी .आल अमेरिका प्रवासी हिंदी सम्मलेन जो यंहां नुयार्क में ४ जुलाई को होने जा रही है ,उसमे प्रस्तुत करने के लिए भी चुनी गयी है.आप अगर अपना पता या कोई लिंक हो तो मुझे भेज दे या सनीवेल में सीधे ही भेज दे.आपका मेरे पास न इ मेल है और न ही पोस्टल एड्रेस .सिर्फ बिहार पटना ही लिखा हुआ है.इसलिए कोमेंट बॉक्स में लिख रहा हूँ.यंहां सेमात्र यही एक कविता सर्वसम्मति से चुनी गयी.आपको बधाई
किन्तु ये तो बस समय की बात है
ReplyDeleteजिसमें संभवत: नियति के
खलनायक का भी बड़ा हाथ है.....
सचमुच
अनुक्त अनुभूतियों का भी
ReplyDeleteविस्तृत विसदृश्य किनारा है.
जिसने अतल गहराइयों से भी
हर बार, हर बार उबारा है...
बहुत सुंदर कविता.
ह्रदय तो बस
ReplyDeleteह्रदय की भाषा जानता है..
काल-दूरी से परे जाकर
बस धड़कनों को पहचानता है....
सच कहा आपने.
पहचानने के लिए बस हृदय होना चाहिये हमारे पास.
वरना हृदय का दुभाषिया भी तो कोई नही है.