Social:

Thursday, April 14, 2022

तुम्हें अमिरस पिलाना है .........

जब-जब तेरे, सारे दुख कल्पित हो जाए

जाने-अनजाने में ही, मन निर्मित हो जाए

उसमें स्थायी सुख भी, सम्मिलित हो जाए

तब-तब मुझे, तेरे विवश प्राणों तक आना है

तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है


यदि हृदय की धड़कनों से ही, कोई चूक हो

जो स्वर विहीन होकर, कभी भी मन मूक हो

जो उखड़ी-सी, साँस कोकिल की भी कूक हो

तो तेरे भग्न मंदिर का, कायाकल्प कराना है

तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है


यदि मार्ग के ही मोह में, कभी भटक जाओ

या अपने ही सूनेपन में, यूँ ही अटक जाओ

या दूषित दृष्टियों में, जो कभी खटक जाओ

आकर तेरे अंतर्तम में, मधुमास खिलाना है

तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है


देखो न हर बूँद में ही, ऐसे अमृत टपक रहा है

देखो तो जो चातक है, उसे कैसे लपक रहा है

कहाँ खोकर बस तू, क्यों पलकें झपक रहा है

आओ! अंजुरी भर के, तुम्हें अमिरस पिलाना है

हाँ! तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है ।

21 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. यदि हृदय की धड़कनों से ही, कोई चूक हो
    जो स्वर विहीन होकर, कभी भी मन मूक हो
    जो उखड़ी-सी, साँस कोकिल की भी कूक हो
    तो तेरे भग्न मंदिर का, कायाकल्प कराना है
    बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी सृजन ।आपके लेखन का रसास्वादन सुखद अनुभूति है ।

    ReplyDelete
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
    'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  4. जय हो ,सादर नमन🙏🙏

    ReplyDelete
  5. अस्तित्व हमें हर पल चेताता है, प्रीत की डोर से बँधा गीतों की याद दिलाता है, मन जो बेवजह कभी मुखर कभी मौन होकर अपने होने का ढिंढोरा पीटता रहता है, उसे अपने ठिकाने पर बार-बार ले जाता है, अमिरस की इस धार को बहाने के लिए आभार!

    ReplyDelete
  6. देखो न हर बूँद में ही, ऐसे अमृत टपक रहा है

    देखो तो जो चातक है, उसे कैसे लपक रहा है

    कहाँ खोकर बस तू, क्यों पलकें झपक रहा है

    आओ! अंजुरी भर के, तुम्हें अमिरस पिलाना है

    ये अमिरस पान करवाने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर अभिवादन 🙏

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर सृजन ।

    ReplyDelete
  8. सुंदर प्रतीकों से सजा मन की परतों को खोलता खूबसूरत गीत
    बधाई

    ReplyDelete
  9. गहन उदासी को दूर कर आशा के नव संचार को जगाता यह सृजन अमृत रसपान के समान ही है ।

    ReplyDelete
  10. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  11. जब-जब तेरे, सारे दुख कल्पित हो जाए

    जाने-अनजाने में ही, मन निर्मित हो जाए

    उसमें स्थायी सुख भी, सम्मिलित हो जाए

    तब-तब मुझे, तेरे विवश प्राणों तक आना है

    तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है

    Bahut hi Shandar Rachna

    ReplyDelete
  12. आशा का संचार करती सुंदर रचना ,हमेशा की तरह !!

    ReplyDelete
  13. अमृता जी , आप ठीक तो हैं न ? आपकी अनुपस्थिति खटकती है ।

    ReplyDelete
  14. अनजाने ही आशा और उम्मीद के बीज बो दिए आपने ...
    लाजवाब भावपूर्ण लेखन ...

    ReplyDelete
  15. कमाल है!
    चुन-चुन कर शब्दों का आपने प्रयोग किया और क्या सुंदर संदेश देती रचना है यह!!
    लाजवाब!!!

    ReplyDelete