ढाई आखर के
प्रेम की चिट्ठी में
शून्य लिख दो
जो विरह होगा
प्रतीक्षा करो
कभी तो
वो मिलन
पढ़ा जाएगा
और तुम्हारा
प्रेम स्वयं ही
तुम तक
चला आएगा.
***
तुमने
तनिक जो
भरे नयनों से
देख क्या लिया
अज्ञात ॠचाएँ
ऊर्ध्व वेग से
हृदय- व्योम में
गूँजने लगी है
अब ये भी बता देते
कि क्षर-अक्षर सबमें
क्या प्रेमवेद
और प्रेमोपनिषद्
प्रकट हो रहा है ?
***
प्रेम प्रलय में
जब कुछ भी
नहीं बचेगा
सबकुछ
खो जाएगा
पीड़ा के प्रवाह में
तब भी एक
उत्तप्त हृदय
बचा रहेगा
डोंगी बन कर
वह प्रेम का ही होगा.
प्रेम का अत्यंत भावपूर्ण विश्लेषण,तीनों ही लघु कविताएँ
ReplyDeleteप्रभावशाली हैं। प्रेम सिर्फ़ प्रेम नहीं होता स्वयं में अनेक अर्थ समेटे समूचे अस्तित्व का कोमल विस्तार होता है जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती।
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किसी
अदृश्य मादक सुगंध
की भाँति
प्रेम ढक लेता है
चैतन्यता,
मन की शिराओं से
उलझता प्रेम
आदि में
अपने होने के मर्म में
"सर्वस्व"
और सबसे अंत में
"कुछ भी नहीं"
होने का विराम है।
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सस्नेह।
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Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteप्रेम विरह भी है मिलन भी, प्रेम क्षर भी है अक्षर भी, प्रेम आनंद भी है पीड़ा भी! वाह! बहुत सुंदर है प्रेम की यह परिभाषा जिसने सब कुछ समेट लिया है
ReplyDeleteवाह शून्य
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 15 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुंदर कविता !
ReplyDeleteसाधुवाद
शुभकामनाएं
🌹🌻🌷
ढाई आखर को परिभाषित लाजवाब लघु कृतियाँ ।
ReplyDeleteमुग्ध हूँ...
ReplyDeleteतुमने
तनिक जो
भरे नयनों से
देख क्या लिया
अज्ञात ॠचाएँ
ऊर्ध्व वेग से
हृदय- व्योम में
गूँजने लगी है...निशब्द हूँ।
सादर
प्रेम में
ReplyDeleteशून्य लिखने से भी
ज़्यादा ज़रूरी है
शून्य हो जाना ।
फिर
कोई अंतर नहीं कि
मिलन होगा या कि
मिलेगी पीड़ा
विरह की ।
*********
हृदयाकाश में
मात्र देखने भर से
गूँज जाएँ
ऋचाएँ
तो निश्चय ही
अक्षर अक्षर
प्रकट हो रहा है
प्रेम ।।
********
उत्तप्त हृदय लिए
धैर्य धारण कर
प्रलय का
करते हुए सामना
आखिर
तय कर लेते हैं
सारे फासले
तैर कर ।
और
बिना डोंगी के भी
बच जाता है
बस प्रेम ।।।
आपकी प्रस्तुति इतनी भावपूर्ण है कि मेरे जैसा नीरस प्राणी भी प्रेम विषय पर सोच रहा है 😄😄😄
🙏🙏🙏
प्रेम दिवस पर प्रेम का अनोखा रच दिया आपने ...
ReplyDeleteबहुत कमाल का लिखा ...
prem par sunder rachna
ReplyDeleteअज्ञात ॠचाएँ
ReplyDeleteऊर्ध्व वेग से
हृदय- व्योम में
गूँजने लगी है...निशब्द
शून्य उचित नहीं लगता, न लिखना, न बनना! हाँ, प्रतीक्षा ये अवश्य बतलादेगी कि प्रेम है या नहीं| प्रेम की शाश्वतता प्रतीक्षा की बलि नहीं चढ़ेगी| और जो चढ़ गयी, तो प्रेम ही कहाँ था भला?
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