यक्ष प्रश्न -
मैं क्या होना चाहूँगी अगले जन्म में ?
यक्ष प्रश्नोत्तर - मैं होना चाहूँगी.......
हाँ ! मैं होना चाहूँगी अमृता तन्मय ही
अगले, अगले या फिर हर जन्म में
जो मैं हूँ वही होना चाहूँगी - अमृता तन्मय !
अमृता तन्मय बस एक नाम भर नहीं है
अमृता तन्मय बस एक संबोधन भर नहीं है
अमृता तन्मय बस एक परिचय भर नहीं है
अमृता तन्मय बस एक परिणाम भर नहीं है
अमृता तन्मय बस एक पूर्णविराम भर ही नहीं है
ये वो है जो अमृता तन्मय की हर जानी-पहचानी
कोष्ठिका की इंगित से इतर है, अणुतर है, अनंतर है
ये आत्मोपस्थिति तो उसकी आत्मोत्सृष्टि के समानांतर है
अमृता तन्मय वो अस्तित्व है जो सन्दर्भ को सत्य से जोड़ती है
अमृता तन्मय वो चेतना है जो हर काल को झझकोरती है
अमृता तन्मय वो सौन्दर्य है जो शिवत्व की ओर मोड़ती है
अमृता तन्मय सृष्टि की अनहद ओंकार है
अमृता तन्मय स्वस्फुरण का मृदुल हुंकार है
मुझे हर जन्म में अमृता तन्मय ही अंगीकार है
हाँ ! मैं होना चाहूँगी अमृता तन्मय ही
अगले, अगले या फिर हर जन्म में ।
अचानक से कोई अन्य अथवा अनन्य इस तरह का रोमांचक यक्ष प्रश्न कर बैठता है तो तत्क्षण स्वयं से समालाप होने लगता है। हमारा उत्सुक स्वभाव ही ऐसा है कि हम कई यक्ष प्रश्नों का काल्पनिक अथवा वास्तविक उत्तर एक-दूसरे से पाना चाहते हैं। उन उत्तरों में हम अन्य के अपेक्षा स्वयं को ही अधिक खोजते हैं। इस तरह की खोज हमें आत्म अन्वेषण से आत्म संतुष्टि तक ले जाती है। इसलिए यथोचित उत्तर चाहता हुआ हमारा मन भी कहीं भीतर गहरे में जाकर अपनी पड़ताल करने लगता है कि वह अपने इस होने से संतुष्ट/प्रसन्न है अथवा नहीं। जाना हुआ उत्तर या दिया गया उत्तर संतोषजनक हो अथवा नहीं हो परन्तु मौलिक/ नयेपन का अवश्य आभास देता है। जो सच में चिरन्तन के तनाव से परे हटाकर हमें नवजन्म के लिए रोमांचित करता है।
आत्मानुसंधान!!!!!....
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (११ -०२ -२०२२ ) को
'मन है बहुत उदास'(चर्चा अंक-४३३७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अमृता तन्मय वो सौन्दर्य है जो शिवत्व की ओर मोड़ती है
ReplyDeleteअमृता तन्मय सृष्टि की अनहद ओंकार है
अमृता तन्मय स्वस्फुरण का मृदुल हुंकार है
मुझे हर जन्म में अमृता तन्मय ही अंगीकार है
वाह!!! अद्भुत!!
इतना सुन्दर और सर्वव्यापी स्वरूप । मनमोहक परिचय ।
अभी तो इसी जन्म में पता नहीं चल पाया है उसके बाद सोचते हैं ? :)
ReplyDeleteखुद को परिभाषित करते सटीक उत्तर । स्वयं पर किया गया जैसे शोध पत्र ।
ReplyDeleteगहन
स्वयं से जब कोई इतनी गहराई से परिचित हो जाता है तब उसका होना मात्र ही पर्याप्त होता है, जैसे चेतना है, अस्तित्त्व है, प्रेम है, सौंदर्य है और कोई उसे परिभाषित कहाँ कर पाता है, सुंदर सृजन सदा की तरह!
ReplyDeleteस्वयं का स्वयं से परिचय कराती बहुत ही सुंदर रचना, अमृता दी।
ReplyDeleteअद्भुत सृजन।
ReplyDeleteप्यार के मौसम में स्वयं से प्रेम करना सबसे ज़रूरी है.
ReplyDeleteनया विचार.
बधाई, अमृता जी.
सच कहा है आपने ... अनायास इंसान खुद या खुद जैसे को ही चाहता है ... और क्यों न चाहे, खुद से बेहतर कौन खुद को जानता है ...
ReplyDeleteशशक्त रचना, कमल की अभिव्यक्ति ...
खुद से परिचित हो जाना एक खोज है।
ReplyDeleteकमाल की रचना के लिए बधाई।
नई रचना- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला
बहुत बढ़िया आत्माभिव्यक्ति प्रिय अमृता जी। सच है अपने आप से संतुष्ट रहना जीवन का शाश्वत मोक्ष है। मुझे भी लगता है मैं कुछ और होने की कल्पना नहीं कर सकती। सशक्त रचना 👌👌👌🙏🌷🌷
ReplyDeleteआत्माविश्लेषण की प्रक्रिया जीवन की नदी में शुद्ध प्रवाह के लिए अत्यंत आवश्यक है।
ReplyDeleteआपकी कविता.पढ़ते हुए बार बार एक ही स्वर मन में गूँज रहा...अहं ब्रह्मास्मि।
आप सदा अमृता तन्मय ही रहें, सन्दर्भ को सत्य से जोड़ती रहें, ब्लेस्सिंग्स
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