कोई हलन - चलन नहीं है
कोई चिंतन - मनन नहीं है
कोई भाव - गठन नहीं है
कोई शब्द - बंधन नहीं है
स्वरूप है कोई क्रिया - रहित
बिन साधना हुआ है अर्जित
स्वभाव से ही स्वभाव निर्जित
बोध - मात्र से ही है कृतकृत्य
शांत क्षणों को कोई गढ़ा है
अनंत अर्थों को जिसमें मढ़ा है
अहो दशा में जिसे मैंने पढ़ा है
पाठ - रस और - और बढ़ा है
चिंतना टूटी - मैं कैसी हूँ !
अचिंत्य हुई - मैं कैसी हूँ ?
उसी में हूँ , जो हूँ , जैसी हूँ
वो है जैसा - मैं भी वैसी हूँ
अब क्या सुनना , अब क्या कहना ?
प्रश्नों से भी क्या अब प्रश्न वाचना ?
आप्त उत्तर को ही है अब आँकना
हाँ ! अशेष दिखा , उसी में झाँकना .
कोई चिंतन - मनन नहीं है
कोई भाव - गठन नहीं है
कोई शब्द - बंधन नहीं है
स्वरूप है कोई क्रिया - रहित
बिन साधना हुआ है अर्जित
स्वभाव से ही स्वभाव निर्जित
बोध - मात्र से ही है कृतकृत्य
शांत क्षणों को कोई गढ़ा है
अनंत अर्थों को जिसमें मढ़ा है
अहो दशा में जिसे मैंने पढ़ा है
पाठ - रस और - और बढ़ा है
चिंतना टूटी - मैं कैसी हूँ !
अचिंत्य हुई - मैं कैसी हूँ ?
उसी में हूँ , जो हूँ , जैसी हूँ
वो है जैसा - मैं भी वैसी हूँ
अब क्या सुनना , अब क्या कहना ?
प्रश्नों से भी क्या अब प्रश्न वाचना ?
आप्त उत्तर को ही है अब आँकना
हाँ ! अशेष दिखा , उसी में झाँकना .
बहुत सुंदर भाव..कबीर ने भी कहा है..जब जैसा तब तैसा रे..
ReplyDeleteजीवनदर्शन की पड़ताल करती हुई कविता आई है.
ReplyDeleteउसी में हूँ, जो हूँ, जैसी हूँ
वो है जैसा - मैं भी वैसी हूँ
जीवन को 'अब, अभी और यहीं' के परिप्रेक्ष्य में तलाशती है आपकी कविता. कवित्व उदास तो है लेकिन उदात्त होता दिखा है.
शांत गहरा समुन्दर सा चिंतन ... अनंत भाव पर स्थिर मंथन है गहरी रचना ....
ReplyDeleteकोई हलन - चलन नहीं है
ReplyDeleteकोई चिंतन - मनन नहीं है
वाह! वाह! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति अमृता तन्मय जी.
भरपूर चिंतन मनन है जी.
अर्थपूर्ण ... विचारणीय | आपकी कविताएँ मन को छूती हैं , हमेशा
ReplyDeleteबहुत खूब ,
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रही हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानती हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सब्दों से अगर जी पता
ReplyDeleteसदियों तक रुक जाता
फिर कहाँ वेदना होती
और कहां विरह रुक पाता।
डूब जाएँ या तिनके का सहारा ले निकल आयें
ReplyDeleteदावानल हो या रेगिस्तान
शब्द पा ही लेते हैं अर्थ !!!
अशेष में झाँकने के यत्न अपने आप में एक उपलब्धि हैं .
ReplyDeleteबहुत गहन और सार्थक चिंतन...
ReplyDeleteकविता के माध्यम से अध्यात्म तक पहुंचना कैसे होता है, वही गुप्त भावनाएं यहाँ अपूर्व अनुभवों के साथ प्रकट हैं. कितना सुन्दर है यह सब कुछ.
ReplyDeleteकविता के माध्यम से अध्यात्म तक पहुंचना कैसे होता है, वही गुप्त भावनाएं यहाँ अपूर्व अनुभवों के साथ प्रकट हैं. कितना सुन्दर है यह सब कुछ.
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