अरे !
बिन बुलाए , बिन बताए
बिन रुत के ही ऐसे कैसे
बसंत आ गया ?
आया तो आया पर
कौए और कोयल का भेद
बिन कहे ही ऐसे कैसे
सबको बता गया ?
कोयल तो
नाच कर , स्वागत गान कर
चहुँओर कूक रही है
और कौए ?
आक्रोश में हैं , अप्रसन्न हैं
जैसे उनपर दुःखों का आसमान
अचानक से टूट पड़ा हो
और उनकी आत्मा
चिचिया कर हूक रही है ......
बेचारे कौए
बड़ी चेष्टारत हैं कि
कोयल से भी गाली उगलवाये
और वे बोले तो
सब ताली बजाये ...
ताली तो बजती है
जहाँ वे मुँह खोलते हैं तो
अपने- आप बजती है
लेकिन उन्हें उड़ाने के लिए
कि भागो , जाओ
कि अब दुबारा इधर न आओ .......
कुछ कौए उड़े जा रहे हैं
बसंत को ही अंट- संट
कहे जा रहे हैं
पर वे पूरब जाए या पश्चिम
उत्तर जाए या दक्षिण
सबसे ढेला ही खायेंगे अनगिन ........
जबतक वे कंठ नहीं बदले तो
उनके गीत का
कहीं भी गान नहीं होगा
वे कितना भी
अंटिया- संटिया जाए
तो भी बसंत का
कभी अपमान नहीं होगा .
बिन बुलाए , बिन बताए
बिन रुत के ही ऐसे कैसे
बसंत आ गया ?
आया तो आया पर
कौए और कोयल का भेद
बिन कहे ही ऐसे कैसे
सबको बता गया ?
कोयल तो
नाच कर , स्वागत गान कर
चहुँओर कूक रही है
और कौए ?
आक्रोश में हैं , अप्रसन्न हैं
जैसे उनपर दुःखों का आसमान
अचानक से टूट पड़ा हो
और उनकी आत्मा
चिचिया कर हूक रही है ......
बेचारे कौए
बड़ी चेष्टारत हैं कि
कोयल से भी गाली उगलवाये
और वे बोले तो
सब ताली बजाये ...
ताली तो बजती है
जहाँ वे मुँह खोलते हैं तो
अपने- आप बजती है
लेकिन उन्हें उड़ाने के लिए
कि भागो , जाओ
कि अब दुबारा इधर न आओ .......
कुछ कौए उड़े जा रहे हैं
बसंत को ही अंट- संट
कहे जा रहे हैं
पर वे पूरब जाए या पश्चिम
उत्तर जाए या दक्षिण
सबसे ढेला ही खायेंगे अनगिन ........
जबतक वे कंठ नहीं बदले तो
उनके गीत का
कहीं भी गान नहीं होगा
वे कितना भी
अंटिया- संटिया जाए
तो भी बसंत का
कभी अपमान नहीं होगा .
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 22/11/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
सत्य है आर्थिक उन्नति का बसंत आ गया। कौओं को देखकर हीनतापूूर्ण तटस्थता अपनानी पड़ रही है। समकालीन नोटबंदी उथल-पुथल पर सॉलिड व्यंग्य।
ReplyDeleteवाह ... गज़ब का बिम्ब ... अब तो देखना है कौवे कब तक कोयल के साथ नहीं आते ... ये बसंत तो अब लंबा चलने वाला है ...
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना http://savanxxx.blogspot.in
ReplyDeleteकोयल क्यों गाली देने लगी? सच यही है कि-
ReplyDeleteये चमन यूँ ही रहेगा और हज़ारों बुलबुलें
अपनी अपनी बोलियाँ सब बोल कर उड़ जाएँगे
वाह...लाज़वाब विम्ब...बसंत तो अब निश्चय ही यादगार रहेगा...
ReplyDeleteकमाल की बिम्ब। अरे ये भी तो बताते जाएँ की अब कौए जायं तोजायें कहाँ। अपना भी गम है पार्टी कभी गम है। और बहुतों के जिंदगी की आसे भी कम है।
ReplyDeleteबढ़िया ।
ReplyDeleteBasant ka ye haal.....hum bhi dekh rahe hain....
ReplyDeleteइस कविता की प्रशंसा के लिए इतने शब्द उमड़ रहे हैं कि उन्हें समेट नहीं पा रहा हूँ|
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा| वर्तमान समाज पर व्यंग्य सहित| कौओं की चेष्टा, कोयल से गाली उगलवाने वाली पंक्ति सबसे अच्छी लगी|