तुम्हारे हृदय में भी
आग तो सुलगती होगी
चेतना की चिंगारी
अपने चरम को
छूना चाहती होगी
तुम्हारी लवलीन लपटें
मुझसे तो कह रही है कि
तुम भी खो जाना चाहते हो .....
तो ऐ दीये !
मुझ अंधियारी की
तुम साधना करो
जिससे
तुम्हारा प्रकाश
तुमसे भी पार हो जाए
और मेरे पास !
मेरे पास तो
हर पल है तुम्हारा
और है
प्रेम भरी अनंत प्रतीक्षा
अंधकार सा ही
स्रोतहीन , शाश्वत .
दीपोत्सव की स्वर्णिम रश्मियाँ बहुविध आलोकित हो ।
***शुभ दिवाली***
आग तो सुलगती होगी
चेतना की चिंगारी
अपने चरम को
छूना चाहती होगी
तुम्हारी लवलीन लपटें
मुझसे तो कह रही है कि
तुम भी खो जाना चाहते हो .....
तो ऐ दीये !
मुझ अंधियारी की
तुम साधना करो
जिससे
तुम्हारा प्रकाश
तुमसे भी पार हो जाए
और मेरे पास !
मेरे पास तो
हर पल है तुम्हारा
और है
प्रेम भरी अनंत प्रतीक्षा
अंधकार सा ही
स्रोतहीन , शाश्वत .
दीपोत्सव की स्वर्णिम रश्मियाँ बहुविध आलोकित हो ।
***शुभ दिवाली***
धधकते हुए प्रेम का प्रकाश अँधेरे को जरूर हर लेता है ... और प्रकाशमान कर देता है अंतस को ...
ReplyDeleteआपको दीपावली की हार्दिक बधाई ...
प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteशुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 31 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपके काव्यामृत का प्रकाश सर्वत्र प्रकाशित होता रहे ...
ReplyDeleteअनेकानेक हार्दिक शुभकामनाएं.
वाह ! सुंदर ।
ReplyDeleteप्रकाश की अनवरत पिपासा और उसकी साधना.......दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं अमृता जी। आपकी कविता ने रौशनी और अंधेरे के रिश्ते को एक नए दृष्टिकोण से देखने वाला नज़रिया दिया है। बहुत-बहुत शुक्रिया इस सुंदर कविता के बहाने दीपावली की शुभाकामनाओं के लिए।
ReplyDeleteमेरे पास तो
ReplyDeleteहर पल है तुम्हारा
और है
प्रेम भरी अनंत प्रतीक्षा
अंधकार सा ही
waah............
बहुत सुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteप्रेमभरी अंतहीन प्रतीक्षा भला अंधकारमय कैसे हो सकती है। कदाचित कोई और भी इस भाव के उजाले में चमक रहा होगा। तब तो अंधेरे का अस्तित्व ही नहीं।
ReplyDeleteप्रेमभरी अनंत प्रतीक्षा भला अंधकारमय कैसे हो सकती है। यदि इसमें आपका कोई मित्र उजाला ढूंढ ले तो दोनों ओर का अंधकार मिट जाएगा।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता..
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