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Wednesday, March 11, 2015

ज्वालामुखी तो ज्वालामुखी है.....

ज्वालामुखी तो ज्वालामुखी है
चाहे वह अलसाई रहे या सोई रहे
चाहे अपनी चुप्पी को ही चुप कराती रहे
या फिर ओढ़ी रहे बर्फ के ठंडापन को
या सिर्फ फैलाती रहे स्वाद के हरियालीपन को
या कि बहाती रहे सोतों से मीठापन को.....
जैसे वह अपने गर्भ में
उबलते असंख्य लावा के बीच भी
बचाये रखती है ज़िंदा बीजों को
वैसे ही बचाये रखती है
और भी मुर्दा-सा बहुत कुछ को......
जैसे अपने अंदर उठते बवंडर से
धार का भी जंगलीपन छुड़ाती है
वैसे ही चक्रवाती-तूफानी आवाज पर
हर सैलाब का साज भी बिठाती है.....
पर उसके ऊपर पसरी शान्ति का
मतलब ये नहीं होता है कि
उसे हिलना नहीं आता है
या अपने अंदाज से
कोई करवट लेना नहीं आता है
या कि उसे जंग छुड़ाकर
पूरी तरह जागना नहीं आता है......
बस कोई उसे
मन लगाने के लिए ही सही
यूँ ही बेतहाशा थपकियाँ न देता रहे
या उँगलियों पर घुमाने के लिए ही सही
यूँ ही बेहिसाब उँगलियाँ न करता रहे......
ज्वालामुखी तो ज्वालामुखी है
जब वह बेतरह टूटती है
तो बेबस होकर फूटती है
और जब बेजार सी फूटती है
तो उससे निकलती हुई
आग के सलाखों के पीछे
बेहिसाब चीखों को भी
चुपचाप दफ़न होना पड़ता है .

24 comments:

  1. बहुत बहुत शानदार कविता .....अमृता जी

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  2. ज्वालामुखी तो ज्वालामुखी है
    जब वह बेतरह टूटती है
    तो बेबस होकर फूटती है
    और जब बेजार सी फूटती है
    तो उससे निकलती हुई
    आग के सलाखों के पीछे
    बेहिसाब चीखों को भी
    चुपचाप दफ़न होना पड़ता है .

    अमिधा और लक्षणा दोनों पैमानों पर खरी उतरती है यह कविता ।

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  3. सच लिखा है ... ज्वालामुखी का सोये रहना ही अच्छा होता है ... जैसे कुछ संवादों का या किसी के आक्रोश का ... या नारी के मन के लावा को ...

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  4. डराता ज्यालामुखी

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  5. अमृता जी आपने यह कविता कब और किन पृष्ठभूमियों के साथ लिखी पता नहीं पर इसकी पृष्ठभूमि मुझे लगता है दिल्ली के साथ सारे भारतीय शहरों और गांवों से जुडकर महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार से निर्मित स्त्री मन के भीतर फुटते ज्वालामुखी का दर्शन होता है। निर्भया डाकुमेंट्री पर बॅन लगा दिया सरकार ने बहुत बडा काम किया? पर दुर्भाग्य अगर हमारी व्यवस्था, सरकारी तंत्र, न्याय व्यवस्था अपने आपको कस सकती। अपने पॉवर को दिखाकर अपराध करने वालों को हमेशा के लिए बॅन करती। टी.वी. पर कोई चीज बॅन करने से रुकती नहीं। आधुनिक तकनिकों के तहत वह डाकुमेंट्री सब जगह पर उपलब्ध है। कहीं कोई गलत धारणा निर्माण कर्ताओं की नहीं। शायद सरकारी तंत्र न्याय व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न निर्माण करने से और वकीलों की औकात गडबडाने से सकते में हैं। पर उसके कानों में भारत के बेटी का आक्रोश और भारत के माता-पिता का दर्द-रुदन नहीं पहुंचा। बहुत बडी विडंबना है भाई! अब भरौसा है स्त्री के ज्वालामुखी बनने पर। थपकियां देने वाले, उंगलियों पर घुमाने वालों और उंगली करने वालों को अपने ही ज्वालामुखी में भस्म करने का समय आ गया है।

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  6. अमृता जी, ज्वालामुखी ऊपर से भले शांत दिखता हो भीतर एक लावा कभी भी फूट पड़ने को तैयार ही रहता है..सब्र का बाँध भी एक दिन टूट ही जाता है और बहा ले जाता है अपने साथ बहुत कुछ..प्रभावशाली रचना सदा की तरह

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  7. एक उबाल की ज़रूरत है, विष्फोट अपरिहार्य है.....

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  8. सचमुच ज्वालामुखी तो ज्वालामुखी है। फिर चाहे धरती के सीने में छिपा हो या नारी हृदय की पीड़ा में … लाज़वाब

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  9. धरा भी है मुझमें और आसमान भी. मुझमें सैलाब भी व शान्ति भी. रंग भी मैं हूँ और रंगरेज भी मैं.…सब कुछ तो उसी ज्वालामुखी के भीतर पनप रहा है.…

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  10. सच , आखिर कब तक सहे कोई ?
    सुन्दर बिम्ब लिए सशक्त भाव

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  11. वाह.. क्या खूब उपमा दी है आपने.. बहुत अच्छी लगी कविता..

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  12. सही है। ज्वालामुखी तो ज्वालामुखी है।

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  14. एक उबाल की ज़रूरत है, ज्‍वालामुखी खुद ब खुद फूट पड़ेगा।

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  15. सही लिखा. अच्छी रचना
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है .
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    अगर आपको पसंद आये तो कृपया फॉलो कर अपने सुझाव दे

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  16. यह रौद्र ज्‍वालामुखी भयाक्रांत करती है।

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  17. सचमुच ज्वालामुखी तो ज्वालामुखी है।

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  18. जिंदा बीजों से याद आया कि रसायन से जुड़े कितने लोगों को मौलिक रूप में धातु और अवयव दे जाती है यही ज्वालामुखी.

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  19. Wah.. Wah... Kya khub kavita hai.. ज्वालामुखी तो ज्वालामुखी है...
    Totally Awesome..
    Kalnirnay 2018

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