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Saturday, November 24, 2012

मैं मनचली ...

जबसे प्रिय प्यारे के
तीखे नयन ने कुछ यूँ छुआ
मुझ रूप-गर्विता को
न जाने क्या और कुछ क्यूँ हुआ ?

अपने रूप पर ही
और इतना इतराने लगी हूँ
लुटे तन-मन की
निधि सहसा ही बिखराने लगी हूँ...

आज बस में नहीं कुछ
खो गया है सारा नियंत्रण
पा प्रिय का
पल-प्रतिपल मोहक नेह निमंत्रण...

मैं किरण-किरण भेद
कुटिल कुतूहल जगाने लगी हूँ
बड़े भोलेपन से ही
बजर बिजलियाँ गिराने लगी हूँ...

गगन को ही छुपा कर
बिरंगी बदरिया बन घिर रही हूँ
उस गंध की गंगा सी
हवाओं के संग मैं फिर रही हूँ...

जैसे कोई क्वांरी कली
प्रथम आलिंगन से खुद को छुड़ा रही हो
उस प्रणय ज्वाला को  
हर पात से लजा कर बता रही हो...

और दे भी क्या सकती हूँ
हवाला या प्रमाण अपनी बात का
बस छलिया का
छुअन ही सब हाल कहे मेरे गात का...

मैं मनचली ,मचल-मचल
अपने प्रिय को ऐसे लुभाने लगी हूँ
और मचलते प्राण से
बस प्रिय! प्रिय! प्रिय! गुनगुनाने लगी हूँ .

28 comments:

  1. जैसे कोई क्वांरी कली
    प्रथम आलिंगन से खुद को छुड़ा रही हो
    उस प्रणय ज्वाला को
    हर पात से लजा कर बता रही हो...

    बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना,,,,बधाई

    recent post : प्यार न भूले,,,

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  2. और मचलते प्राण से
    बस प्रिय! प्रिय! प्रिय! गुनगुनाने लगी हूँ .
    अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... इस अभिव्‍यक्ति में

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  3. प्रेम और भक्ति से भरी गागर सा ....अमृत छलकाता ...अमृतमय काव्य ....!!

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  4. Replies
    1. prem aur prem ras me dubi hui sundar rachna , bhav purn badhai

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  5. वाह रूपवती नायिका के नाज़ नखरे ।

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  6. क्या कहूँ अनुपम रचना भाव विभोर कर दिया

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  7. छूयान के एहसास को बहुत खूबसूरती से लिखा है ...

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (क्या ब्लॉगिंग को सीरियसली लेना चाहिए) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  9. सहेजने योग्य कोमल रचना..

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  10. तुझे चाँद बनके मिला था जो, तेरे साहिलों पे खिला था जो....

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  11. Amrita,

    HUI MEIN PREM DIWANI, MERA HAAL NAA JAANE KOYE.

    Take care

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  12. Yah kiski lagan hai
    Yah kiski agan hai
    Hoga kitana bhagwaan vo
    milee ho jise aisee ik ruprashi jo!

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  13. ऐसे मनचलेपन की बात निराली है। इसमें संगीत,लय, ताल है और वर्तमान जीवन से आध्यात्मिक जीवन को जोड़ने का सेतु भी। सुंदर कविता का स्वागत है। शुक्रिया।

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  14. मैं मनचली ,मचल-मचल
    अपने प्रिय को ऐसे लुभाने लगी हूँ
    और मचलते प्राण से
    बस प्रिय! प्रिय! प्रिय! गुनगुनाने लगी हूँ .

    .... भावविभोर करती उत्क्रष्ट प्रस्तुति...

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  15. ईश्वर करे, आपके होठों सदा ही ऐसे गीत गुनगुनाते रहें...
    ~हार्दिक शुभकामनाएँ !:-)

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  16. क्या ही सुन्दर रचना !! बहुत सटीकता से भावों का उदगार ..

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  17. behtarin rachna aap sach me dhanyawad ke patr hai
    From creative people

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  18. छुअन के रस-रंग में पगी अत्यंत कोमल रचना. बहुत बढ़िया.

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  19. कविता प्रेम से भरी युवती की मानिंद लुभा रही है ...
    ले लिया है बेखुदी में खुद अपना ही नाम
    क्या उसने कहीं चुपके से पुकारा है :)
    बहुत खूबसूरत!

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  20. आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी। धन्यवाद।

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  21. प्रिय ब्लॉगर मित्र,

    हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।

    शुभकामनाओं सहित,
    ITB टीम

    पुनश्च:

    1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

    2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला।

    [यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।

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  22. वाह पंख लगा कर उड़ती एक स्‍वछंद कवि‍ता

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  23. अल्हड प्रेम का स्पर्श लिए ... मनमोहक रचना ..

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