कोई
मेरे गले में
घंटी बाँध
आँखों पर पट्टियाँ चढ़ा
न जाने कहाँ
लिए जा रहा है...
पांव थककर
रुके तो पीछे से
कोड़े बरसा रहा है
कहीं दौड़ना चाहूँ तो
चारों तरफ
खाई बना रहा है...
पराई गलियों के
अनजान रोड़े भी
तरस खाने लगे हैं
सपनों में चुभे
काँटों को
सहलाने लगे हैं...
घर की महक
वापस बुलाती हैं
इसीलिए मैं
अपने समय के भीतर
खुदाई कर रही हूँ
ताकि
इन्द्रजालों के
महीन बानों को
काटकर
कोई भी
सिरा खोज लूं .
खुदाई कर रही हूँ
ReplyDeleteताकि
इन्द्रजालों के
महीन बानों को
काटकर
कोई भी
सिरा खोज लूं .
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं....!
ReplyDeleteकल 19/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बढ़िया -
ReplyDeleteआभार आदरेया ।।
उम्र के खेल में इक तरफ़ा है ये रस्सा कशी
ReplyDeleteमुझसे तगड़ा भी है और सामने आता भी...
इसीलिए मैं
ReplyDeleteअपने समय के भीतर
खुदाई कर रही हूँ
एक सिरे की तलाश में.... गहन अभिव्यक्ति
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 19-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1068 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
न आदि ज्ञात, न अन्त ज्ञात,
ReplyDeleteन अन्तरमन का द्वन्द्व ज्ञात,
यदि ज्ञात अभी, बस वर्तमान,
एक साँस उतरती रन्ध्र ज्ञात,
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात
वाह...
ReplyDeleteमन की उलझन सुलझे कैसे....सिरा मिलता नहीं..
बहुत सुन्दर भाव..
अनु
पराई गलियों के
ReplyDeleteअनजान रोड़े भी
तरस खाने लगे हैं
सपनों में चुभे
काँटों को
सहलाने लगे हैं... So nice .awsm
mil jaye koi sira to laut sakun wahan----jahan se khud ke hone ka ehsaas jaagta hai
ReplyDeleteइन्द्रजालों के
ReplyDeleteमहीन बानों को
काटकर
कोई भी
सिरा खोज लूं ,,,,.बहुत सुंदर भाव,,
recent post...: अपने साये में जीने दो.
Amrita,
ReplyDeleteBANDISH BAHUT HI CHUBHTI HAI.
Take care
Manasthiti ki kavita,!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव,,सपनों में चुभे
ReplyDeleteकाँटों को
सहलाने लगे हैं...
घर की महक
उम्दा भाव और निराला भावों को पिरोने का ढंग...
ReplyDeleteपराई गलियों के
ReplyDeleteअनजान रोड़े भी
तरस खाने लगे हैं
सपनों में चुभे
काँटों को
सहलाने लगे हैं...
वाह
अपने समय के भीतर
ReplyDeleteखुदाई कर रही हूँ
ताकि
इन्द्रजालों के
महीन बानों को
काटकर
कोई भी
सिरा खोज लूं .
मन कही उस सिरे पर ही उलझा रहता है . मुश्किल है सुलझाना !
बेहतरीन, अतुलनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
ReplyDeleteबेहतरीन और शानदार।
ReplyDeleteगहन भाव लिए बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteइस उलझन का तो कोई ओर छोर ही नहीं मिलता ......अच्छी अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है उद्धरण काबिल :
ReplyDeleteसिरा खोज लूं ...
कोई
मेरे गले में
घंटी बाँध
आँखों पर पट्टियाँ चढ़ा
न जाने कहाँ
लिए जा रहा है...
पांव थककर
रुके तो पीछे से
कोड़े बरसा रहा है
कहीं दौड़ना चाहूँ तो
चारों तरफ
खाई बना रहा है...
पराई गलियों के
अनजान रोड़े भी
तरस खाने लगे हैं
सपनों में चुभे
काँटों को
सहलाने लगे हैं...
घर की महक
वापस बुलाती हैं
इसीलिए मैं
अपने समय के भीतर
खुदाई कर रही हूँ
ताकि
इन्द्रजालों के
महीन बानों को
काटकर
कोई भी
सिरा खोज लूं .
बधाई अमृता जी तन्मय .
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति सुंदर शब्द संयोजन वाह
ReplyDeleteताकि
ReplyDeleteइन्द्रजालों के
महीन बानों को
काटकर
कोई भी
सिरा खोज लूं .
शानदार भावभिव्यक्ति ....
बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका हार्दिक स्वागत है।
ReplyDeleteइसीलिए मैं
ReplyDeleteअपने समय के भीतर
खुदाई कर रही हूँ
ताकि
इन्द्रजालों के
महीन बानों को
काटकर
कोई भी
सिरा खोज लूं .
बहुत सुंदर और गहन प्रस्तुति .....
जीवन की जद्दोजहद मे उलझा हुआ मन ...स्वयं को सुलझाने की कोशिश मे लगा ...
बहुत सार्थक प्रयास ....
अपने समय के भीतर
ReplyDeleteखुदाई कर रही हूँ
ताकि
इन्द्रजालों के
महीन बानों को
काटकर
कोई भी
सिरा
खोज लूं .
-यही तो मुश्किल है ,इतने लपेटे कि कोई सिरा हाथ नहीं आता !
ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला
ReplyDeleteतेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा.............
good to see nice wordings.
ReplyDeleteबुहत खूब..
ReplyDeleteजीवन पथ व यात्रा कठिन व रहस्यमयी तो है किंतु यही इसका रोमांच,आनंद व सुंदरता भी तो है।
ReplyDeleteसुंदर रचना ।
मेरे ब्लॉग पर नयी पोस्ट -
विचार बनायें जीवन
इतनी पीड़ा का सिरा कैसे मिल पाएगा. कविता की जीवंतता इसी में है कि उसे ढूँढा जाए....जैसे भी हो....बहुत खूब.
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