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Saturday, November 10, 2012

तो ये है -


आपको दमा का दौरा दिला
हर बेहया सुबह को फूंक-फूंक सुलगाती हुई
रोटियों को हथेलियों से पीट-पीट कर
अपने स्टाईल में जलाती-पकाती हुई
सहमें नमक-प्याज संग पेट खोले गठरी में रख
पगडंडियों या रस्ते पर बदहवास दौड़ती हुई
आपको हर रोज कविता जो दिखे तो
आप उसे गुड मॉर्निंग कह सकते हैं और
अपनी च्वायस माफिक सौन्दर्य भी ढूंढ़ सकते हैं

फिर नजरें घुमाए तो
टेलर या लॉरी पर अजीब सी लटकी हुई
बसों-रेलगाड़ियों के छतों पर भी चिपकी हुई
कहीं तगारी-ईंटों से हंसी-ठिठोली करती हुई
या फिर फैक्ट्रियों के धुएँ को हराने वास्ते
ओंठों के बीच कसकर बीड़ी दबाये हुए
सारे टेंशन को छल्लों में घुमाकर
अपने हौसले से छेड़कानी करती हुई
कोई बिंदास सी कविता दिखे तो, आप
ईजिली अपने अन्दर भटकती कला को
नेशनल हाईवे पर दौड़ा सकते हैं

या फिर आपके इर्द-गिर्द
अपने झिल्लीदार आँखों से झुर्रियों के बीच फंसे
नन्हे-नन्हे जीवों को पुचकारती हुई
या अपने असली आंतो और दांतों को
किसी सेठ-साहूकार के यहाँ गिरवी लगाती हुई
या फिर किसी इंटरनेशनल ब्रांड के वास्ते
अपने गंजेपन का फोटो खिंचवाती हुई
और किसी फुटपाथ पर बिकते हुए
उताड़े कपड़ों की मजबूती जांचती हुई
उस ब्लैक एंड व्हाईट पीरीयड टाईप की
कोई कविता दिख जाए तो, बेशक आप
अपने आँखों पर काला चश्मा चढ़ाकर
न देखने का रियल एक्टिंग कर सकते हैं

या फिर गाहे-बगाहे
उस रंग-बिरंगे बीप करते बटनों पर
मक्खियों सी भिनभिनाती हुई
या किसी भी पॉलिश्ड पॉलिसी पर
छिपकलियों सी फिसल जाती हुई
और उस स्ट्रांग इकोनॉमी के नीचे
लाईटली, चींटियों सी दब जाती हुई
और तो और , हमारे-आपके
चारों तरफ दिन-रात उगते हुए
प्लास्टिक-पालीथीन को चबाती हुई
चुकरती , रंभाती वही कैटल क्लास सी
कोई कविता जो दिखे तो, आप
किसी भी पतली गली से निकल लेंगे
नहीं तो हाथी के दांतों से उलझ जायेंगे

और अक्सर रात गए
कहीं अपनी ही बोली लगाती हुई
या सामूहिक रूप से लुट जाती हुई
या फिर अपने गले के लिए फंदा बनाती हुई
कोई भी अगली सी , डर्टी सी कविता दिखे तो
आप राम-राम रटते हुए
अपने-अपने घरों में दुबक जायेंगे
और किसी फ्लॉप फिल्म की स्टोरी मान
उसको एकदम से भूल जायेगे
तो ये है -
   '' अपरिवर्तनीय और अछूत भारत की कविता ''

  ( इनकन्वर्टिबल और शनिंग इण्डिया की कविता )



29 comments:

  1. ओह...मार्मिक चित्रण...
    बहुत सशक्त...

    अनु

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  2. पानी की तरह तस्वीर बनती कविता
    ओह.. सच तो यही है ...एकदम

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  3. आह निकल आई ..
    वाकई बहुत सशक्त...

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  4. ek sasakt aur behad samvedashil prastuti,



    deepavali ki hardik shubhkamna

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  5. संवेदनशील सार्थक प्रस्तुति,,,,

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
    RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,

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  6. तो यह रहीं भारत की आम जानी पहचानी कवितायें -आपकी कवितायें अब हाई आर्डर की सोशलिस्ट कवितायेँ हो रही हैं -लाल सलाम!

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  7. '' अपरिवर्तनीय और अछूत भारत की कविता ''
    ( इनकन्वर्टिबल और शनिंग इण्डिया की कविता )
    या फिर अपरिवर्तनीय और दमकते भारत की कविता ?

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  8. और अक्सर रात गए
    कहीं अपनी ही बोली लगाती हुई
    या सामूहिक रूप से लुट जाती हुई
    या फिर अपने गले के लिए फंदा बनाती हुई
    कोई भी अगली सी , डर्टी सी कविता दिखे तो
    आप राम-राम रटते हुए
    अपने-अपने घरों में दुबक जायेंगे
    और किसी फ्लॉप फिल्म की स्टोरी मान
    उसको एकदम से भूल जायेगे
    तो ये है -

    शायद नहीं ये मेरा विश्वास ये आपकी व्याकुलता भारत के उच्चतम शिखर की कामना के लिए

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  9. अबके दीपावली पर दीपों का प्रकाश इस शनिंग इंडिया को शायद कुछ शाइन कर दे। इतने निराश तो हम नहीं हैं. लेकिन आस की कोई किरण दिखती भी नहीं।
    एक सशक्त और विचारोत्तेजक कविता के लिए हार्दिक बधाई।
    प्रकाश पर्व के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

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  10. सारी कवितायेँ जानी पहचानी सी लगीं ... दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...

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  11. या फिर अपने गले के लिए फंदा बनाती हुई
    कोई भी अगली सी , डर्टी सी कविता दिखे तो
    आप राम-राम रटते हुए
    अपने-अपने घरों में दुबक जायेंगे
    और किसी फ्लॉप फिल्म की स्टोरी मान
    उसको एकदम से भूल जायेगे
    तो ये है -
    '' अपरिवर्तनीय और अछूत भारत की कविता ''

    सशक्त लेखन .... अछूत भारत की कविता .... सही कहा है ...

    दीपावली की शुभकामनायें

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  12. अपने हौसले से छेड़कानी करती हुई
    कोई बिंदास सी कविता दिखे तो, आप
    ईजिली अपने अन्दर भटकती कला को
    नेशनल हाईवे पर दौड़ा सकते हैं

    गज़ब का व्यंग्य है

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  13. बहुत अच्छी रचना
    कभी कभी ही ऐसी रचना पढने को मिलती है..


    धनतेरस की बहुत बहुत शुभकमानएं

    एक नजर मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर डालें

    http://tvstationlive.blogspot.in/2012/11/blog-post_10.html?spref=fb

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  14. राह की आह समझने को विवश करती कविता...

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  15. आप और आपके पूरे परिवार को मेरी तरफ से दिवाली मुबारक | पूरा साल खुशिओं की गोद में बसर हो और आपकी कलम और ज्यादा रचनाएँ प्रस्तुत करे.. .. !!!!!

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  16. आपको दमा का दौरा दिला
    हर बेहया सुबह को फूंक-फूंक सुलगाती हुई
    रोटियों को हथेलियों से पीट-पीट कर
    अपने स्टाईल में जलाती-पकाती हुई
    सहमें नमक-प्याज संग पेट खोले गठरी में रख
    पगडंडियों या रस्ते पर बदहवास दौड़ती हुई
    आपको हर रोज कविता जो दिखे तो
    आप उसे गुड मॉर्निंग कह सकते हैं और
    अपनी च्वायस माफिक सौन्दर्य भी ढूंढ़ सकते हैं ..... पोटली में बंधी रोटियों से भाव !

    दिवाली की स्नेहिल शुभकामनायें

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  17. जनमानस के अवचेतन मन में गड़ी तस्वीरों को जगाने वाली ऐसी सशक्त कविता कम ही देखने को मिलती है जो वास्तविक भारत को मूर्त करती प्रतीत तो होती ही है साथ ही पीड़ा के बाद सुन्न पड़ती उसकी संवेदनाओं की कहानी भी कहती है. नहीं लगता कि इस कविता की प्रशंसा करने की क्षमता मुझ में है.

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  18. क्या बात है बढ़िया ....
    आपको भी दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ !

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  19. तमसो मा ज्योतिर्गमय...शुभकामनाएं दीपावली की...

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  20. ये भी कवितायें हैं,जिन्हें पढ़ना और अनुभव करना हरेक के बस की बात नहीं!

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  21. सुभानाल्लाह......इन दोनों ही कविताओं ने आपको फिर वहीँ पहुँचा दिया है मेरे लिए तो .....जैसे आपके ब्लॉग के शरू के दिन थे.....भारी भरकम शब्दों से परे आम भाषा प्रवाह के साथ कविता के साथ नारी का भीं रूपों में चित्रण करती ये अभिव्यक्ति बेजोड़ है........ और मेरी टॉप १० लिस्ट की सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर होने के आपके दावे को और भी सशक्त करती है......हैट्स ऑफ इन दोनों कविताओं के लिए ।

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  22. अभिव्यक्ति का अपना अलग अंदाज़ वाह क्या कहने!

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  23. ***********************************************
    धन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
    गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
    ***********************************************
    दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
    ***********************************************
    अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
    ***********************************************

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  24. तो ये वो है ....कविता में कवियत्री बेहद खीझी हुई दिखलाई देती है .उसे सिर्फ समाज का विद्रूप दिखला देता है।सब कुछ अन्धेरा है उसके लिए , लगता है पूंजीवादी व्यवस्था पूरे सामाजिक ढाँचे को चूस

    रही है .उसे सूरज की लालिमा भी

    ऐसे दिखलाई देती है जैसे सूरज को किसी ने जख्मी करदिया हो और उसके जख्म रिसने लगें हैं .एक अजीब सी कुंठा अभिव्यक्त हुई है इस रचना में .जैसे कोई चित्रकार छाया कार सुबह सुबह कैमरा

    लेके निकल पड़े और उसे केन्द्रित कर दे बस कूड़े के ढ़ेर पर और वहां उसके गिर्द होने वाली गतिविधियों को शब्दों में ढाल के उसे कविता का नाम दे दे .केवल अंधियारा पक्ष देख रही है कवियित्री जीवन

    का .कोई कुंठा सी कुंठा है .जो अभिव्यक्ति के लिए छटपटा रही है .कवियित्री तमसो मा ज्योतिर्गमय..नहीं देख पा रही है उसके लिए सब अन्धेरा ही अन्धेरा है .

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  25. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत अद्भुत अहसास.सुन्दर प्रस्तुति.
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !

    मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..

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  26. ulajhi huyi dunia ki kuch suljhi si bate..khuli ankhon ke samne lutati si rate.. Bahut hi takaniki kavya hai.

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  27. अमृता जी, बहुत ही प्रभावशाली बन पड़ी है आपकी यह कवितायें..बधाई..

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  28. वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान।
    निकल कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान।
    आपकी कविता पढ़ मन आर्द्र व प्रसाद जी की उपरोक्त पंक्तियाँ स्मरण हो आयीं।

    सादर-
    देवेंद्र
    मेरी नयी पोस्ट- कार्तिकपूर्णिमा

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