प्रेम धागा जो कच्चा हो तो
मोटे नायलान से गूँथवाऊं
फिर भी जो टूट जाए तो
फेवी-क्विक से सटवाऊं
प्रेम पंथ ज्यों हो कठिन तो
मखमली कालीन बिछवाऊं
तिस पर भी कुछ चुभे तो
हवाई-मार्ग यूज में लाऊं
प्रेम गली अति सांकरी तो
उसपर बुलडोजर चलवाऊं
फोर-लेन पर जाम लगे तो
चार ओवर-ब्रिज बनवाऊं
प्रेम जो बाड़ी उपजे तो
हाई-टेक खेती करवाऊं
यहाँ जगह जो कम पड़े तो
चाँद पर भी कब्ज़ा जमाऊं
प्रेम जो हाट बिकाय तो
कौड़ी के भाव खरीद लाऊं
हवाला से स्विसबैंक में
व कुछ चैरिटी में बटवाऊं
और अंत में
प्रेम का पाठ जो पढ़े तो
स्वयंभू पंचायत बिठवाऊं
प्रेमी-युगल बच न पाए
सो ऑनर किलिंग करवाऊं.
नायलान का प्रेम धागा तो ईर्ष्या की आग में जलेगा पर सच्चे प्रेम में नहीं टूटेगा :)
ReplyDeleteबातों बातों में तीखा किन्तु सार्थक व्यंग्य किया है आपने.
ReplyDeleteसादर
गंभीर विषय पर व्यंग्य की तलवार से वार , बहुत अच्छा
ReplyDeletea very serious issue, but pointed out in a bit funny way !!
ReplyDeletenice post.
ओह हो आज तो तेवर ही अलग है मगर अच्छे हैं।
ReplyDeleteprem ko fevi quick se satana ... soch to kamaal ki hai
ReplyDeleteसार्थक व्यंग्य.........
ReplyDeleteप्रेम कि पाठशाला तो बढ़िया चलेगी इस तरह.
ReplyDeleteतीखे व्यंग्य का तेवर देखने लायक है. खापिया पंचायतों को जितनी जल्दी अक्ल आए उतना अच्छा है.
ReplyDeleteलाज़वाब और रोचक प्रस्तुति...बहुत सटीक पर रोचक व्यंग..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूब !पूरे परिवेश को समेटती बुहारती ,ललकारती रचना .बधाई !
ReplyDeleteप्रेम का नया पन्ना पड़ा बहुत अच्छा ,
ReplyDeleteबिना फेवी क्विक के प्रेम करो तो बहुत अच्छा .
अरे राम राम !
ReplyDeleteबड़े खतरनाक इरादें हैं इस बार आपके,
अमृता जी,मुझे तो डर लग रहा है सच्ची सच्ची.
आपको ऐसे रंग में देखना भी अच्छा लगा.
मेरे ब्लॉग पर आपका आना बहुत अच्छा लगा.
बहुत बहुत आभार.
Vyang ki vidha Nirali hai,
ReplyDeletejo samjhe wo bhara,
jo na samjhe wo khali hai.
har shabd vyang baan ban se,
chubh kar karein hamein ghayal,
aap bhavuk arthpoorn kavita ki,
janni aur kavyapushp ki maali hai.
Amrita, bahut hi accha likha hai aapne.Aajkal prem hat hi bikte aur log ya to haat ki bhasha samjhte ya khaat ki.Prem Baat ki bhasha kaun samjhta hai...
Bahut badhiya...agar samay mile to KAHI ANKAHI aur BOLTI TASVERREIN ko dekh lijiyega...
आधुनिक युग का प्रेम बोध :)
ReplyDeleteआज तो वाकई बिलकुल अलग तरह की रचना है tevar hi alag hai..|तीखा व्यंग है ..!
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी|
:):) यह प्रेम पुलक भी खूब रहा ..
ReplyDeleteअमृता तन्मय जी सुन्दर सार्थक और गंभीर रचना प्रेम के दुश्मन के लिए सटीक
ReplyDeleteनिम्न पंक्ति गजब रही
प्रेमी युगल बच ना पाए
सो आनर किलिंग करवाऊं
शुक्ल भ्रमर ५
नए कलेवर में नया तेवर...हाई-टेक प्रेम का अंत ऑनर किलिंग से...यही तो विडम्बना है...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...... एकदम सटीक पंक्तियाँ.....
ReplyDeleteतीखी मिर्ची सी है सभी व्यंग रचनाएँ.
ReplyDeleteपुराने दोहों को नया तडका अच्छा लगा.
प्रेम तो फिर भी प्रेम ही है जी.
शुभ कामनाएं.
bhut hi acchi aur anyi tarh ki rachna...
ReplyDeleteसदियों से चले आ रहे भावों को नयी उपमाएं और शब्द दिए हैं आपने...बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुंदर, वाह ही निकल रही है आपकी चटपटी सी प्रस्तुति पर !
ReplyDeleteछा गयीं अमृता जी....दोहों को नयी उपमा के साथ वो भी व्यंग्य में लपेट कर.....शानदार |
ReplyDeleteहाहाहहाह बहुत सुंदर व्यंग। अच्छा लगा
ReplyDeleteवाह-वाह.. प्रेम को एक नए रूप में पढ़ा आज कई दिनों बाद.. वाकई में बेहतरीन.. और अंत तो आज की सच्चाई है...
ReplyDeleteआभार
सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
अमृत सा लाजबाब कविता ! बधाई !
ReplyDeleteअच्छा व्यंग्य !
ReplyDeleteप्रेम गली अति सांकरी ,
ReplyDeleteएक बाईपास बनवाऊ ।
प्रेमी प्रेमिका को "खाप "से बचाऊ .
प्रेम पाठ पर व्यंग्यात्मक तेवर. वाह.
ReplyDeleteबहुत खूब..!!
ReplyDeleteप्रेम को हवाला से स्विसबैंक में ट्रान्सफर करने का ख़्याल बढ़िया है।
अनेकोनेक बधाई।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
wow...!!
ReplyDeletenew idea for everything..
Excellent !!!
lagta hai prem ka palda kamjor hota dekh ise majbut banane ke sare artificial jatan khojne ki koshish ki gayi hai. kuch kam khud karne ka irada hai to kucha satta ki tarah kisi ko nirdeshit karke karwane jaisi abhivyakti aapkii kavita me najar aati hai.
ReplyDeleteएक दम अलग हटकर लिखा है आपने। पढ़ने का आनंद बयान नहीं कर सकता ... पर अंत का तीखा व्यंग्य दिल को चीर गया ...!
ReplyDeleteसामाजिक व्यवस्था पर तीखा कटाक्ष।
तीक्ष्ण !
ReplyDeleteहास्य भी और व्यंग भी !
आपका लिखने का तरीका बहुत ही रोचक है... बेहद पसंद आई यह रचना...
ReplyDeleteप्रेम रस
बहुत अच्छी हास्य रचना
ReplyDeleteवाह! आनंद से भर दिया ...
ReplyDeleteयह क्या हुआ? सुखद से एकदम दु:खांत? सामयिक रचना में लोकगीत का रंग अच्छा लगा।
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