आधा सुख,आधी व्यथा
चार क्षणों का जीवन
कभी विरह,कभी मिलन
मोम-प्रस्तर से ये शब्द
आज चकित,कल स्तब्ध
अर्थ से भी गहरा अर्थ
कभी उपयोगी,कभी व्यर्थ
मेघाच्छन्न है हृदयाकाश
कभी अँधेरा,कभी प्रकाश
समग्र-सार है यथातथ्य
आधा मिथ्या,आधा सत्य .
होरा हूँ मैं होरा हूँ 
हर क्षण बजती होरा हूँ 
मधुर स्वर से अंतर्मन में 
ब्रह्मनाद सा हर एक कण में 
हर क्षण बजती होरा हूँ 
होरा हूँ मैं होरा हूँ.
कोरा हूँ मैं कोरा हूँ 
हर क्षण बनती कोरा हूँ 
हर प्रसून के प्रस्फुटन में 
सृजन के हर एक स्पंदन में
हर क्षण बनती कोरा हूँ 
कोरा हूँ मैं कोरा हूँ.
डोरा हूँ मैं डोरा हूँ 
हर क्षण बँधती डोरा हूँ
धरा-गगन के आकर्षण में 
चराचर के हर एक विचलन में 
हर क्षण बँधती डोरा हूँ 
डोरा हूँ मैं डोरा हूँ 
हर क्षण बँधती डोरा हूँ.
होरा----घंटा 
कोरा----नया 
डोरा----प्रेम का बंधन
एक झोंका 
हवा का 
हवा दे गयी  
दबी चिंगारी को ..
या 
मरे बीज में 
भर प्राण 
दे गयी  
अपनी गति
अपनी उर्जा ...
देखना है 
लगती है आग 
निर्जन में.. 
या 
बनता है 
कोई वटवृक्ष .
पंचजन्य तो 
फूँक दिया है मैंने  
हुँकार अभी बाकी है.... 
मंजिल तो  
दिख ही रही है  
पहुँचना अभी बाकी है ...
दूरी तो 
तय कर ली है हमने 
हाथ का फासला बाकी है ...
रास्ते तो
फूलों से भरे है 
कांटा चुनना अभी बाकी है ...
कदम तो 
डगमगा रहे हैं पर
उन्हें घसीटना बाकी है ....
यह तो 
प्रमाणित सत्य है 
पर निर्विवाद होना बाकी है ..
हाँ!
हस्ताक्षर तो 
कर दिये है मैंने और  
मुहर लगनी अभी बाकी है....