भीखमंगा बनकर सबसे
मोती मांगने का चलन है
बोनस में मिलते दुत्कार का
करता कौन आकलन है...
अपने ही प्राणों में दौड़ती
कड़वाहटों का जलन है , पर
एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप
करने में ही सभी मगन हैं...
मारे शर्म के पाताल में
कहीं छुप गया गगन है
भागीरथी-कतार देखकर तो
उसका बढ़ रहा भरम है...
भूल-चूक से भूल हो तो
ऐसी कोई बात नहीं है
अँधेरे को भी जो छलता है
वो तो कोई रात नहीं है...
कालिख से पुता उजाला
अपने ब्रांड को भजा रहा है
सफेदी की चमकार का हवाला दे
हाट-घाट पर दूकान सजा रहा है...
मछली तो फंसने के लिए होती है
और मल्टी-चारा भी कमाल है
मुँह में चूहे का दांत दबाये हुए
सबके कंधे पर एक जाल है...
सुख तो कोई दुर्लभ चीज नहीं
बस नीचे गिरते जाना है
बिन सोचे वो सब कर के
इस दुनिया का कर्ज चुकाना है...
जिन्हें तकलीफ है किसी से
चुपचाप जगह खाली कर दे
और भीखमंगों की झोली को
अपने आत्मसम्मान से भर दे .
उत्कृष्ट कृति पढने को मिली |
ReplyDeleteआभार ||
मछली तो फंसने के लिए होती है
ReplyDeleteऔर मल्टी-चारा भी कमाल है
मुँह में चूहे का दांत दबाये हुए
सबके कंधे पर एक जाल है...
बात कहने का नया अंदाज़.
जिन्हें तकलीफ है किसी से
चुपचाप जगह खाली कर दे
और भीखमंगों की झोली को
अपने आत्मसम्मान से भर दे.
ये पंक्तियाँ पलटवार करती प्रतीत होती हैं. बहुत ही उम्दा रचना.
nayi soch ko abhivyakt karti prastuti.
ReplyDeleteसच है, आत्मा का उभार स्वयं से आता है।
ReplyDeleteजिन्हें तकलीफ है किसी से
ReplyDeleteचुपचाप जगह खाली कर दे
और भीखमंगों की झोली को
अपने आत्मसम्मान से भर दे.
वाह ... बहुत खूब
बहुत खूब ..
ReplyDeleteसुंदर रचना
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुख तो कोई दुर्लभ चीज नहीं
ReplyDeleteबस नीचे गिरते जाना है
बिन सोचे वो सब कर के
इस दुनिया का कर्ज चुकाना है...क्या कटाक्ष किया है,शतप्रतिशत सच
इस कविता के माध्यम से व्यंग्य का नया प्रयोग ...बहुत खूब :)))
ReplyDeleteकविता में प्रयुक्त कुछ प्रयोग आश्चर्यचकित करते हैं .. जैसे
ReplyDeleteमुँह में चूहे का दांत दबाये हुए
सबके कंधे पर एक जाल है...
*बोनस में मिलते दुत्कार
*भागीरथी-कतार
इस कविता में वैश्वीकरण, उपभोक्तावाद और बाज़ारवाद की सूक्ष्म जांच-पड़ताल है। इसकी भयावह प्रवृत्तियों की पहचान की गई है। जीवन के हर क्षेत्र में बाज़ार ने सबसे शक्तिशाली हैसियत हासिल कर ली है। वह समाज की दिशा तय कर रहा है। आम आदमे असहाय और ठगा महसूस कर रहा है।
बड़ा ज़बरदस्त व्यंगात्मक प्रहार है इशारा किस तरफ था :-)
ReplyDeleteक्या खूब व्यक्त किया है.. तीखा प्रहार..
ReplyDeleteमल्टीकलर दुनिया के मल्टीकलर शेड
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteDUNIYA KE RANGON KA THEEK KAHAA AAPNE.
Take care
बहुत खूब,,,सशक्त करारा कटाक्ष ,,,
ReplyDeleteRECENT POST LINK...: खता,,,
मुझे लगता है सारी ऐसी विसंगतियां आने वाली दीवाली में ख़त्म हो जायेगीं!
ReplyDeleteबोनस में मिलते दुत्कार का
ReplyDeleteकरता कौन आकलन है...
मुँह में चूहे का दांत दबाये हुए
सबके कंधे पर एक जाल है...
नवीन प्रतीकों से सजी रचना
बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबेहतरीन कटाक्ष...
अनु
बहुत सुन्दर .बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजिन्हें तकलीफ है किसी से
ReplyDeleteचुपचाप जगह खाली कर दे
और भीखमंगों की झोली को
अपने आत्मसम्मान से भर दे...
बेहतरीन रचना...
शब्दों की यह मार बहुत पैनी है !
ReplyDeleteनए नए प्रतीकों व बिंबों से सजी रचना..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना |
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में पधारें और जुड़ें |
मेरा काव्य-पिटारा
कविता अच्छी लगी एवं अभिव्यक्ति का सलीका भी प्रभावित कर गया।। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही तीखा और करार व्यंग ! एक सार्थक रचना !
ReplyDeleteआज पहली बार आपको पढ़ा। आपकी लेखनी की समृद्धता मन को आकर्षित कर गई !
ढेरों शुभ कामनाओं के साथ।
tikshn aur karkas prastuti
ReplyDeletebahut badhiya bina lag lapet ke ....
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