वर्णमाला के बिखरे-बिखरे
बस थोड़े से ही अक्षर हैं
कुछ और मैं कहना चाहूँ
पर भाव तो निरा निरक्षर है
क्षर-क्षर को लिखा बहुत है
पर वह अक्षर रहा अलेखा
अदेखे को मैं लिखना चाहूँ
जो इस अंतरदृग ने देखा
ऊर्ध्व वेग कोई उठता है
भेद कर बुद्धि सूक्ष्म तार
मुक्ताभ मुक्तक मैं बहना चाहूँ
तन -मन के क्षितिज पार
खोजती खोकर उसे खोने हेतु
यह कैसी पागल प्यास है ?
उस जिस को मैं गहना चाहूँ
क्या मेरा अछूता उल्लास है ?
मैं सांवरिया बनी किसी की
बनाकर वेदना को वरदान
अब तिल-तिल मैं सधना चाहूँ
अनोखी आस की लिए भान
जिह्वा पर मधु-बूँद गिराकर
कोई छाया बना है मेरा छाज
गपक गरल मैं पीना चाहूँ
इतना ह्रदय भरा है आज
इतना ह्रदय भरा है आज
पर बिखरे-बिखरे अक्षर हैं
बस उसको ही मैं भजना चाहूँ
पर भाव तो निरा निरक्षर है .
इतना ह्रदय भरा है आज
ReplyDeleteपर बिखरे-बिखरे अक्षर हैं
बस उसको ही मैं भजना चाहूँ
पर भाव तो निरा निरक्षर है .
गूंगे के गुड़ सा निर्गुणिया ब्रह्म सा स्वाद है इस रचना का .पीड़ा का अतिरेक है रचना में .एक पीर सी एक हूक सी उठती है कवियित्री कहने की कोशिश ज़रूर करती है -बीन मैं तेरी बनूंगी बीन की झंकार भी ,राग मैं तेरा बनूंगी और गायन हार भी पर कह नहीं पाती गरल पान करती रह जाती है रसना पीर का ..
भाव को गढ़ना यानी ख्वाब के दर पर खड़े होकर मौन हो जाना है....
ReplyDelete--------------------------------------------------
वेदना को वरदान बनाकर जब आप शब्दों का प्राण फूंकती है तो वही निरक्षर भाव कालजयी हो जाते हैं......
जहां भाव हो वहाँ शब्द कोई मायने नहीं रखते .... गहन अनुभूति
ReplyDeleteजिह्वा पर मधु-बूँद गिराकर
ReplyDeleteकोई छाया बना है मेरा छाज
गपक गरल मैं पीना चाहूँ
इतना ह्रदय भरा है आज,,,,,,,,भावमय सुंदर पंक्तियाँ,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
बहुत ही प्रभावी, भावों को बाँधना बहुत कठिन हो चला है।
ReplyDeleteनिरक्षर भावों की संरचना भी अद्भुत होती है ....
ReplyDeleteकुछ और मैं कहना चाहूँ
ReplyDeleteपर भाव तो निरा निरक्षर है
सच बात है अमृता जी ...भाव निरक्षर ही है ....हम उसमे कितने ही शब्द क्यूँ ना डाल दें ...फिर भी कुछ अनकहा रह ही जाता है ...!!
बहुत सुंदर रचना ....
वर्णमाला के बिखरे-बिखरे
ReplyDeleteबस थोड़े से ही अक्षर हैं
कुछ और मैं कहना चाहूँ
पर भाव तो निरा निरक्षर है
मन के भावों की बेहद गूढ अभिव्यक्ति।
आपकी लेखनी से एक और उत्कृष्ट समर्पण की कविता -शब्द भाव बिलकुल अलग नहीं!
ReplyDeleteजिह्वा पर मधु-बूँद गिराकर
ReplyDeleteकोई छाया बना है मेरा छाज
गपक गरल मैं पीना चाहूँ
इतना ह्रदय भरा है आज
अमृता जी, गरल भी जब अमृत बन जाता है कोई मीरा क्षण होता है वह..
गरल भी जब अमृत बन जाता है कोई मीरा क्षण होता है वह..
ReplyDeleteaabhar.....
जिह्वा पर मधु-बूँद गिराकर
ReplyDeleteकोई छाया बना है मेरा छाज
गपक गरल मैं पीना चाहूँ
इतना ह्रदय भरा है आज
इतना ह्रदय भरा है आज
पर बिखरे-बिखरे अक्षर हैं
बस उसको ही मैं भजना चाहूँ
पर भाव तो निरा निरक्षर है .
वेदना को बांधना अद्भुत प्रयास .
बहुत सुन्दर रचना है बधाई।
ReplyDeleteक्षर-क्षर को लिखा बहुत है
पर वह अक्षर रहा अलेखा
अदेखे को मैं लिखना चाहूँ
जो इस अंतरदृग ने देखा
ऊर्ध्व वेग कोई उठता है
ReplyDeleteभेद कर बुद्धि सूक्ष्म तार
मुक्ताभ मुक्तक मैं बहना चाहूँ
तन-मन के क्षितिज पार
अनुभव-ज्ञान की अभिव्यक्ति और यह भाव हाथ से निकल-निकल जाता है. क्षर, अक्षर में से होकर निरक्षर होने की अनुभूति को कहने वाला साक्षी, शब्दों से परे जा कर कह रहा है- 'भाव तो निरा निरक्षर है'. इस कठिन भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई.
जिह्वा पर मधु-बूँद गिराकर
ReplyDeleteकोई छाया बना है मेरा छाज
गपक गरल मैं पीना चाहूँ
इतना ह्रदय भरा है आज,, बहुत सुन्दर भाव अनुपम शब्द योजना.....
Amrita,
ReplyDeleteKAYI BAAR BHAV KO BATAANAA KATHIN HOTAA HAI KYOKI HUM THEEK SHABAD NAHIN SOCH PATE, KE BAARE BAHUT SAHI BATAAYE APNE.
Take care
लेखनी में शब्दों का जादू ...
ReplyDeleteभावों की अभिव्यक्ति शब्दों में करना कवि के ही बस की बात है...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात है
इस निरे निरक्षर भाव को भी शब्दों में बाँधने का अद्भुत प्रयास... बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteभाव को बाँध कर सीमित अक्षरों में,अनुभूति को विस्तार दे दिया आपने !
ReplyDeleteनिरक्षर भाव ही शायद उर्ध्वगामी होते हैं क्योंकि वे शब्दों की बोझिलता से मुक्त होते हैं
ReplyDeleteआज 14-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ... हमारे यहाँ सातवाँ कब आएगा ? इतना मजबूत सिलेण्डर लीक हुआ तो कैसे ? ..........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteभावों की अभिव्यक्ति भावों के ही सामर्थ्य का है, शब्द तो असमर्थ ही हो जाते हैं वहाँ। गहरा चिंतन व सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteभावों से सजी बहुत ही सुंदर रचना |
ReplyDeleteइस समूहिक ब्लॉग में आए और हमसे जुड़ें :- काव्य का संसार
यहाँ भी आयें:- ओ कलम !!
भावों की अभिव्यक्ति कभी शब्दों की मोहताज़ नहीं रही. बेहद मर्मस्पर्शी कविता.
ReplyDeleteसचमुच.......
ReplyDeleteजादूगरी आती है आपको शब्दों की..
मैं सांवरिया बनी किसी की
बनाकर वेदना को वरदान
अब तिल-तिल मैं सधना चाहूँ
अनोखी आस की लिए भान
बहुत सुन्दर..
अनु
वाह,.... .....बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट ।
ReplyDeleteइतना ह्रदय भरा है आज
ReplyDeleteपर बिखरे-बिखरे अक्षर हैं
बस उसको ही मैं भजना चाहूँ
पर भाव तो निरा निरक्षर है .
वाह ... बहुत ही अनुपम भाव
इतना ह्रदय भरा है आज
ReplyDeleteपर बिखरे-बिखरे अक्षर हैं
बस उसको ही मैं भजना चाहूँ
पर भाव तो निरा निरक्षर है .
बेहतरीन कविता और सीख भी कि भाव तो निरा निरक्षर हैं....स्वागत है।
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