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Sunday, October 2, 2022

मुझमें लीन हो तुम.......

 माँ!

तेरा यह रूप

जो मैं देख रही हूँ

न जाने कैसे

क्या मैं लेख रही हूँ

जबकि पता है 

अलेख को ही

परिलेख रही हूँ

ये क्या मैं 

उल्लेख रही हूँ?

हाँ!

मैं तुझमें तन्मय

और मुझमें लीन हो तुम

तब तो महक रही हूँ मैं

जैसे अगरू, धूमी, कुंकुम 

जैसे बौर, कोंपल, कुसुम 

तब तो चहक रही हूँ मैं 

वह सब कह कर

कहने की जो बात नहीं

इन टूटे-फूटे वर्णों से छू कर

क्या तुम्हें ही कहती हूँ

ये तो मुझको ज्ञात नहीं 

हाँ!

कहना है 

तुम ही मेरी हँसी हो

गायन हो, रुदन हो

और कहना है कि 

जो कह नहीं सकती

जो कह नहीं पाती

वही वदन हो

तुम ही मोदन हो

कीर्तन हो, नर्तन हो

तुम ही आलंबन हो

तुम ही स्वावलंबन हो

माँ!

हर क्षण

श्रद्धा से आहुत प्राण है 

श्वास-श्वास में स्पर्शी त्राण है 

उमड़ता-ढलकता हृदय पूत है

इस क्षण में यही भाव अधिभूत है

तुम तुम तुम बस तुम ही हो

मैं मैं मैं सब तुम ही हो

सब तुम ही हो

बस तुम ही हो 

हाँ! माँ!

15 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. तुम तुम तुम बस तुम ही हो
    मैं मैं मैं सब तुम ही हो
    सब तुम ही हो
    बस तुम ही हो
    हाँ! माँ!
    देवी माँ के रंग मे एकाकार माँ को समर्पित भक्तिमय समर्पण ।

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  3. भावपूर्ण रचना

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  4. बहुत ही सुन्दर सृजन

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  5. भक्तिभाव में डूबी हुई और डुबाने वाली सरस रचना, माँ के सिवाय यहाँ कुछ हो भी कैसे सकता है, वही कारण है वही कार्य

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  6. माँ एक सुखद एहसास है... जिसकी छाया जीवनपर्यंत हमारे साथ चलती है...बेहतरीन भावाभिव्यक्ति...👏👏👏

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  7. सरस मर्मस्पर्शी सुंदर सृजन

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  8. सरस मर्मस्पर्शी सुंदर सृजन

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  9. माँ को समर्पित मर्मस्पर्शी रचना

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  10. बहुत ही सुन्दर भावमय प्रस्तुति।
    शब्दों का जादूई चयन मंत्रमुग्घ कर रहा है।
    जय हो।

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  11. अपना दर्द मां को ही बतायेंगे।
    लोग तो उस पर नमक ही लगायेंगे।

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  12. माँ के प्रति मन हमेशा ही संवेदनशील रहता है , माँ है तो सब कुछ है । भावमयी रचना ।सत्य कहती हुई ।

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  13. हर बेटी माँ की ही परछाई होती है इसलिए तो माँ के प्रति हमेशा ही मन संवेदनशील रहता है।

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