मैंने अपने
अर्चित आवाहन से
उत्सर्जित विकिरण से
रोमांचित अंत:करण में
पूर्वसंचित पावन से
अंचित जतन से
तेरे लिए जलाया है
प्राणद दिया !
तब तो तुम मेरे
प्रतिम सुप्रभा से
अप्रतिम चंद्रभा से
रक्तिम आभा में
अकृत्रिम प्रतिभा से
अंतिम प्रतिप्रभा से
प्रकाशित हो रहे हो मुझमें
अणद पिया !
अब तो तुम मेरे
सीम-असीम से परे
संयोग-वियोग से परे
उद्दोत हो, सत्वजोत हो
और मैं तो सदा से ही
अमस तमस हूँ
जो बस तेरे लिए ही है
क्षण, अक्षण, अनुक्षण
उद्विग्न, उद्वेल्लित, उतावली !
हाँ ! मैं तो हूँ
चिरकमनीय, रमनीय, अनुगमनीय
सघन काली थ्यावस अमावस
और तुम हो मेरे
सनातन त्यौहार
ओ ! मेरे अन्धकार के प्रकाश
तुम ही तो हो मेरे
आत्यंतिक, ऐकांतिक, शाश्वतिक
श्वासों की शुभ दीपावली ।
सृष्टि को जीवंत और चलायमान रखने वाली समस्त शक्तियों, पराशक्तियों की अनन्य उपासना ही तो उत्सव है। जो अनन्त सत्य, अनन्त चित्, अनन्त आनन्द से सतत् जराजीर्ण होते हुए तन-मन को उमंग और उत्साह से उन्नत करता है। साथ ही घनीभूत जीजिविषा समयानुवर्ती जड़ीभूत उदासीनता को अपनी उष्णता से उद्गगत करती हुई नव पल्लवन करती है। जब ओंकार की भाँति हृदय में पियानाद हर क्षण गुँजायमान हो जाता है तो आत्मा का उत्सव होता है। जिसमें हर दिन होली और हर रात दीपावली होती है। इस आत्म-उत्सव के पिया रँग में रँगी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।