Social:

Saturday, March 19, 2022

अभी तो नशे में चूर हूँ ........

फागुनी मदिरा पीकर

अभी तो नशे में चूर हूँ

कोई टोकना न मुझे 

गरूर में कुछ ज्यादा ही मगरूर हूँ

अभी तो नशे में चूर हूँ


रंगों की रिमझिम फुहार होकर

मधुबन का मधुर उपहार होकर

वन-उपवन में केसर-चंदन घोल

उड़ती-फिरती रास-बहार होकर

सबको जवानी का सिंगार करके

डोल रही हूँ जगती खुमार होकर

हास-फुल्लोल्लास का गुलाल बन मैं

बहुत ही प्यारी, बसीली, मीठी 

बिखरी-बिखरी मोतीचूर हूँ

कोई ठोकना न मुझे

अभी तो नशे में चूर हूँ


देखो आँख मेरी है रसीली

और बात मेरी है कितनी हँसीली

आओ, फैला बाँहें सबको बुलाती हूँ 

मुझसे अहक कर ही पास जो आता है

फिर बहक कर भी कभी न दूर जाता है

सच में मैं हो गई हूँ इतनी ही लसीली

कि बोल-बोल है मेरा आमंत्रण

कि खोल-खोल सब बसंती अवगुंठन

मैं ही तो हर्ष हूँ, मोद हूँ, सूर हूँ

कोई बिलोकना न मुझे

अभी तो नशे में चूर हूँ


अक्षर-अक्षर न डोला तो कैसा नशा?

शब्द-शब्द जो न हो बड़बोला तो कैसा नशा?

भाव-भाव गर न खाए हिचकोला तो कैसा नशा?

सब ढंग-बेढंग न हो तो कैसा नशा?

सब रंग-भंग न हुआ तो कैसा नशा?

सब चाल-बेचाल न हुआ तो कैसा नशा?

सब ताल-बेताल न हुआ तो कैसा नशा?

अंगूरी मदिरा भी न होती है ऐसी मादक

मैं कुछ और ही छक कर चकचूर हूँ

कोई रोकना न मुझे

अभी तो नशे में चूर हूँ


फागुनी मदिरा पीकर

अभी तो नशे में चूर हूँ

कोई मोकना न मुझे

सुरूर में कुछ ज्यादा ही मशहूर हूँ

अभी तो नशे में चूर हूँ।

*** समस्त नशेड़ियों को मतियाया हुआ शुभकामना ***

16 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर, श्रृंगार से परिपूर्ण, होली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

    ReplyDelete
  2. होली का हर रंग अपने में समाहित किये अत्यंत सुन्दर कृति । आपको रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ अमृता जी !

    ReplyDelete
  3. हास-फुल्लोल्लास का गुलाल बन मैं//

    बहुत ही प्यारी, बसीली, मीठी //बिखरी-बिखरी मोतीचूर हूँ//

    कोई ठोकना न मुझे//अभी तो नशे में चूर हूँ////


    😃😃 बहुत मदमाती,पुलकाती मुस्काती प्रस्तुति के लिए आभार और बधाई।नशेडियों के लिए शुभकामना नहीँ अपितु किसी नशेड़न की भंग के रंग में आकंठ लीन आत्मा की कथा लिख दी आपने।सुना है कि भांग का स्वाद चखने वाले ,दुनिया को भूल मस्ती के सातवें आसमान पर का स्पर्श कर लेते हैं।अंगूरी मदिरा से कहीं श्रेष्ठ कहे जाने वाले भांग रस में सराबोर ताल-बेताल अभिव्यक्ति मुस्कुराने को विवश कर गई ।होली के रसीले गीतों की याद दिला रही है प्रस्तुत रचना।सस्नेह शुभकानाएं

    ReplyDelete
  4. फिरूँ बौराई फागुन में
    चढ़ गई प्रेम की भंग सखी
    रंग कोई ना भाये मोहे
    रंगी जबसे उनके रंग सखी!
    बह्के पग, मदालस अखियाँ
    ना कोई रोके पथ मेरा
    सुधबुध खो डोलूँ गली-गली
    बेकाबू मानस रथ मेरा!
    पी की छवि पलकों में बसी
    जगी भीतर अजब उमंग सखी!
    😃😃🙏🙏❣❣❤❤

    ReplyDelete
  5. होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  6. अंत में टोकना मोकना होई गवा। :) शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  7. वाह! फागुनी मस्ती के आलम में कवि खुद तो डूबते ही हैं सारी दुनिया को भी डुबाने का दमख़म रखते हैं, यह बात आपकी रस से सराबोर यह रचना बखूबी कर रही है, यह रस एक बार मिल जाए तो कभी नहीं छूटता, फागुन तो फिर घर का मेहमान हो जाता है

    ReplyDelete
  8. अभी ये नशा कुछ उतरा क्या ? वैसे मैं तो माना रही कि ऐसा नशा साल दर साल चढ़ा रहे । जो किसी को भी आपसे दूर न ले जाये ।जीवन भर फागुन रचा बसा रहे । खुशियों के रंग चढ़े रहें ।

    देर से ही सही होली तो हो ली लेकिन फाल्गुन की शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  9. वाह वाह ।
    होली का अप्रतिम आनंद दे गई शानदार, मज़ेदार, दमदार रचना ।
    कइयों को सुनाना है इसे 😀😀

    ReplyDelete
  10. होली का बहुत ही सुंदर गीत।

    ReplyDelete
  11. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२५-०३ -२०२२ ) को
    'गरूर में कुछ ज्यादा ही मगरूर हूँ'(चर्चा-अंक-४३८०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  12. वाह!गज़ब लखते हो 👌
    साहित्य के इस नशेड़ी को मेरी तरफ़ से अनेकानेक शुभकामनाएँ।
    सादर

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर ! फागुन की मस्ती भरा गीत !
    एक पुराना नग्मा याद आ गया -
    मुझको यारों माफ़ करना, मैं नशे में हूँ ---

    ReplyDelete
  14. फागुन और रंग की मस्तभरी रचना
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  15. वाह क्या बात है अमृता जी, फागुनी बयार लेखनी को ही बहका गई।
    लेखनी फगुआ गई अहक कर
    लिखने लगी जाने क्यों बहक कर
    क्या पी ली है भंग छक कर
    नशेड़ी भी चल पड़े लहक कर ।
    सुंदर मन मोहक सृजन, आपकी कल्पना शक्ति को सेल्यूट।

    ReplyDelete