शब्दों को मेरा प्रणाम !
उनके अर्थों को मेरा प्रणाम !
उनके भावों को मेरा प्रणाम !
उनके प्रभावों को मेरा प्रणाम !
उनके कथ्य को मेरा प्रणाम !
उनके शिल्प को मेरा प्रणाम !
उनके लक्षणों को मेरा प्रणाम !
उनके लक्ष्य को मेरा प्रणाम !
उनकी ध्वनि को मेरा प्रणाम !
उनके मौन को मेरा प्रणाम !
उनके गुणों को मेरा प्रणाम !
उनके रसों को मेरा प्रणाम !
उनके अलंकार को मेरा प्रणाम !
उनकी शोभा को मेरा प्रणाम !
उनकी रीति को मेरा प्रणाम !
उनकी वृत्ति को मेरा प्रणाम !
उनकी उपमा को मेरा प्रणाम !
उनके रूपक को मेरा प्रणाम !
उनके विधान को मेरा प्रणाम !
उनके संधान को मेरा प्रणाम !
शब्द ब्रह्म को मेरा प्रणाम !
उनको बारंबार मेरा प्रणाम !
"ॐ शब्दाय नम:" शब्द ब्रह्म उस परम दशा का इंगित है जो निर्वचना है। हृदय काव्यसिक्त होकर ही उस ब्रह्म नाद में तन्मय होता है। तब "शब्द वाचक: प्रणव:" अर्थात शब्द उस परमेश्वर का वाचक होता है। उसी अहोभाव में हृदय प्रार्थना रत है और हर श्वास से ध्वनित हो रहा है- शब्द ब्रह्म को मेरा प्रणाम !
ऊँ शब्दाय नमः।।
ReplyDeleteअत्यंत सुंदरम् अक्षरशः मनोरमं
शब्दस्य महिमा हृदयं दोलनम्।
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अद्भुत शब्द रस।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ जनवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२८-०१ -२०२२ ) को
'शब्द ब्रह्म को मेरा प्रणाम !'(चर्चा-अंक-४३२४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपके लेखन को प्रणाम।
ReplyDeleteआपकी इस अतुल्य रचना को प्रणाम🙏
ReplyDeleteआपके उत्कृष्ट सृजन को नमन 🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर । शब्द ही हैं जिनमें आपका पूरा व्यक्तित्त्व झलकता है । शब्द ही हैं जो मंत्रों का जाप संभव कराते हैं । शब्द हैं जो आपकी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का साधन बनते हैं । मेरा भी बारंबार प्रणाम स्वीकार हो ।।
ReplyDeleteशब्द ब्रह्म की महिमा को रेखांकित करती सुंदर रचना, आपकी इस मनोरम काव्य कला को प्रणाम!
ReplyDeleteआपके सुंदर सृजन को नमन अमृता दी।
ReplyDeleteशब्दों को मेरा प्रणाम !
ReplyDeleteउनके अर्थों को मेरा प्रणाम
उनके भावों को मेरा प्रणाम !
उनके प्रभावों को मेरा प्रणाम !
उनके कथ्य को मेरा प्रणाम !
उनके शिल्प को मेरा प्रणाम !
शब्दों की इस खूबसूरत दुनिया को मेरा शत् शत् नमन् व प्रणाम🙏
तेरा तुझको अर्पण
ReplyDeleteइसके अलावा शब्द ही नहीं
"ॐ शब्दाय नम:" शब्द ब्रह्म उस परम दशा का इंगित है जो निर्वचना है। हृदय काव्यसिक्त होकर ही उस ब्रह्म नाद में तन्मय होता है। तब "शब्द वाचक: प्रणव:" अर्थात शब्द उस परमेश्वर का वाचक होता है। उसी अहोभाव में हृदय प्रार्थना रत है और हर श्वास से ध्वनित हो रहा है- शब्द ब्रह्म को मेरा प्रणाम !
सादर नमन
आपके उत्कृष्ट भाव को मेरा प्रणाम।
ReplyDeleteसादर
गूढ़ दार्शनिक विवेचन किन्तु रोचकता से भरा हुआ !
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteशब्द सामर्थ्य, शब्द शक्ति पर गूढ़ दार्शनिक भाव, सुंदर विवेचना शब्द ब्रह्म पर।
ReplyDeleteअप्रतिम सृजन।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअन्तर्मन से निकले भाव ।
ReplyDelete"शब्द ब्रह्म" गूढ़ एवम विश्लेषणात्मक अभिव्यक्ति ।
आपके चिंतनपूर्ण आयाम को मेरा नमन ।
भ्रह्म की रचना कैसे हो ... शायद शब्द भी यही सोच कर सृजन कर सका और भ्रह्म हो गया ... सुन्दर भावपूर्ण, गूढ़ ...
ReplyDeleteBahut hi sanndar
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