जात न पूछो
लिखने वालों की
ख्यात न पूछो
न दिखने वालों की
रचना को जानो
जितना मन माने
उतना ही मानो
पर रचनाकार को
जान कर क्या होगा?
उसको पहचान कर क्या होगा?
परम रचयिता कौन है?
सब उत्तर क्यों मौन है?
प्रश्न तो करते हो पर
उस परम रचनाकार को
क्या तुमने जाना है?
जितना जाने
उतना ही माना है
न जाने तो
बस अनुमाना है
जात न पूछो
लिखने वालों की
मिथ्यात न पूछो
न दिखने वालों की
यदि रचना में
कोई त्रुटी हो तो
निर्भीक होकर कहो
पर नि:सृत रसधार में
रससिक्त होकर बहो
और यदि
स्वाग्रह वश
बहना नहीं चाहते
तो बस दूर रहो
मन माने तो
रचना को मानो
न माने तो मत मानो
पर रचनाकार को
जान कर क्या होगा?
उसको पहचान कर क्या होगा?
जात न पूछो
लिखने वालों की
अखियात न पूछो
न दिखने वालों की .
" भाषा जब सांस्कृतिक अर्थ व्यंजनाओं से निरंतर जुड़ कर समाज को शब्दों के माध्यम से सम्प्रेषित करती है तो सर्जनात्मकता अपने शिखर को पाती है । तब लिखने वाले माध्यम भर ही रह जाते हैं और हमारी भाषा स्वाधीनता की ओर अग्रसर होती है । "
*** विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ***
लिखने वालों की जात पूछना व्यर्थ है
ReplyDeleteहिय छू जाए मर्म तो लिखने का अर्थ है
फेंक स्याही भाव भरो और रचो कहानी
चले लेखनी बेपरवाह लेखन वही सार्थ है।
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आपकी लिखी बेहतरीन रचना
बहुत दिन बाद पढ़कर अच्छा लगा।
शुभमंगलकामनाएँ
लिखती रहे।
सस्नेह।
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteवाह!वाह!क्या खूब कहा।
ReplyDeleteजात न पूछो
लिखने वालों की
अखियात न पूछो
न दिखने वालों की ... निशब्द।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (११-०१ -२०२२ ) को
'जात न पूछो लिखने वालों की'( चर्चा अंक -४३०६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
प्रिय अमृता जी, बहुत अच्छा मत उद्घाटित हुआ है रचना में। जात-पात और अन्य परिचय से पाठक को क्या करना! पर रचनाकार की रचनाएँ उसकी निजता का पूर्णरूपेण तो नहीं पर उसका आंशिक परिचय तो दे ही देती हैं। इसलिए इस मत से मैं पूर्ण सहमत नहीं हूं! पाठक रचनाओं की रसधार में जितना बहेगा, रचनाकार के बारे में उसकी लालसा उतनी ही बलवती होती जाती है। ये मानव का सहज स्वभाव है। अतः इससे बचना शायद नामुमकिन है.! किसी रचनाकार की शैली और रचनाएँ उसके व्यक्तित्व को पहचान तो दे देती हैं पर किन परिस्थितियों में उसकी रचनात्मकता फली-फूली, इस शोध से पाठक सामान्य अवस्था में बच नहीं सकते! विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आआपको🙏🙏🌷🌷🌹🌹
ReplyDeleteजात पूछना बेमानी है
ReplyDeleteलिखे शब्दों के आधार पर
कल्पना से व्यक्तित्व का जो चित्र बनता
भेंट होने पर कल्पना कल्पना ही रह जाती है
रचना बहुत सुन्दर
हृदयग्राही भाव लिए अति सुन्दर कविता । आपको भी विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ🙏💐
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार !
ReplyDeleteलिखने वाले की जात पूछ कर हम अपनी जात (औकात) दिखा देते हैं.
परम रचियता को जिसने जान लिया वह इस पूछताछ से बच जाता है और विश्व के साथ एक हुआ उसका मन भाषा के मर्म को रचना के माध्यम से सहज ही प्रकट करता है
ReplyDeleteआप ही के शब्दों में
ReplyDelete" भाषा जब सांस्कृतिक अर्थ व्यंजनाओं से निरंतर जुड़ कर समाज को शब्दों के माध्यम से सम्प्रेषित करती है तो सर्जनात्मकता अपने शिखर को पाती है । तब लिखने वाले माध्यम भर ही रह जाते हैं और हमारी भाषा स्वाधीनता की ओर अग्रसर होती है । "
लिखने वाला जब इस ऊंचाई पर पहुंच जाता है उसकी एक ही जात होती है उत्कृष्ट साहित्यकार,भाषाविद स्व भाषा रक्षक पोषक या फिर एक विद्वान।
एक अप्रतिम भाव संप्रेषण।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
पहली बात कि आप इतने दिन कहाँ रहीं ?
ReplyDeleteमाना कि रचयिता को जानने की आवश्यकता नहीं । लेकिन रचयिता है कहाँ ये तो ज़रूरी है न जानना ?
आपने सही लिखा कि रचना कैसी है इस पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए और खुल कर समीक्षा करनी चाहिए । भाषा के विकास के लिए ज़रूरी है कि त्रुटियों की तरफ ज़रूर ध्यान दिलाना चाहिए । लेकिन ऐसा आम तौर से किया नहीं जाता ।
बेबाक संदेश देती रचना ।
बहुत सही कहा आपने महोदया, कई बार आदमी संकोच के वशीभूत हो ऐसा नहीं कर पाता। कुछ लोग त्रुटियों को इंगित करने पर सहज नहीं रह पाते।
Deleteगजेंद्र जी ,
Deleteबहुत आभार आपका ।
प्रश्न तो करते हो पर
ReplyDeleteउस परम रचनाकार को
क्या तुमने जाना है?
जितना जाने
उतना ही माना है
न जाने तो
बस अनुमाना है... दार्शनिकता से परिपूर्ण सुन्दर रचना!
वाह अमृता जी, यदि रचना में
ReplyDeleteकोई त्रुटी हो तो
निर्भीक होकर कहो
पर नि:सृत रसधार में
रससिक्त होकर बहो...क्या बात कही....शानदार
उम्दा सृजन
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteक्या कहूं ? निःशब्द हूं !
ReplyDeleteचिंतन करने को बाध्य करता एक नायाब सृजन ।
अमृता जी मेरी दादी एक कहावत कहती थीं कि हींग की डिब्बी खुलते ही उसकी महक का अंदाजा हो जाता है, कितनी शुद्ध और कितनी स्वादभरी है, कितनी उच्चकोटि की और कितनी खरी है, वो जिस भोजन में पड़ती है,वो भोज्य भी हींग की काबिलियत बताता है ।
कहने का तात्पर्य है प्रतिभा का कोई रूप नहीं । वो तो अपनी सुगंध बिखेरेगी । और मैं आपकी रचनाओं में विविध संदर्भों की उच्चकोटि की व्याख्या और सार्थकता देखती हूं,सुंदर सारगर्भित सृजन के लिए आपको बहुत बधाई और शुभकामनाएं ।
:) शुभकामनाएं।
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