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Friday, September 3, 2010

कितना सुकून देता है

कभी कभी
स्वयं  की बनायी
स्वयं  के लिए  ही
स्वप्नसृष्टि   को
स्वयं की स्वतंत्रता  के लिए
आत्मघाती  हमला कर
चिथड़ा  चिथड़ा  कर देना
कितना सुकून  देता है
यह  स्वतंत्रता
बाहरी दुनिया  से
अपनी  दुनिया  से  भी
स्वतंत्र  दुनिया
उन चिथड़ों  से  कभी
हवाई  जहाज  बनाकर
हवा  में  उछालना
कभी  नाव बनाकर
पानी  में चलाना
कितना सुकून  देता  है
मन पे  पोती गयी
खुशियों  के  झूठे 
इन्द्रधनुषी  रंगों  को
उन्हीं  चिथड़ों  से
रगड़कर  छुड़ाना
बदरंग  खुशियों  का
स्वयं  पर ही
कुटिल  मुस्कान  फेंकना
कितना  सुकून  देता है
दोनों  भवें  उछाल उछाल  कर
स्वयं  का  ही  हाल चाल लेना
या फिर  ये जताना  कि
सुख  दुःख  से परे  भी
होती है कोई  ख़ुशी
जो स्वयं  से भी
स्वतंत्र  होकर 
सुकून  देता  है
हाँ
कितना  सुकून  देता है .

8 comments:

  1. यूं भी सुक़ून तलाशा जा सकता है...........?....वाक़ई हौंसला चाहिए इसके लिए.....जो दिखाई देता है यहां.....शुभकामनाएं

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  2. अमृता जी,

    आप हमारे ब्लॉग पर आयीं और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दी उसके लिए मैं तहेदिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ.........आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ बहुत पसंद आया आपका ब्लॉग........आपकी रचनाओ में सूफियाना ऊंचाई साफ़ महसूस होती है, जो आपको औरों से अलग खड़ा करती है .......आपकी प्रोफाइल देखी.....काफी हद तक हमारी सोच मिलती है.........अच्छा लगता है किसी अपने जैसे से मिलकर .............आपके ब्लॉग को फॉलो करके मुझे ख़ुशी होगी |

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  3. Waah... Waah... Yahi kah sakta hun main.. Taswir mein aapki umra jyada nahin lagti, yadi taswir aapki hai to... Khair mere kahne ka matlab tha ki shayad bahut hi kam umra mein aapne apni soch, apne kalpanasheelata ko ek majboot stambh ka roop diya hai.. aapki hindi itni acchh kaise hai? kisi ek rachna par comment karna jayaj nahin hai.. main samajhta hun wakai aapki adhikaansh rachnayen kabile tarif hai... Likhte rahiye.. keep it up.. meet me and my thoughts at www.anilavtaar.blogspot.com

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  4. सुकून पाने का ये अंदाज़ निराला है .. सुन्दर प्रस्तुति

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  5. Vah bahut khoob likha hai... badhai Amrita ji.

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  6. खुद को ....
    --------------
    चिथड़ा चिथड़ा कर देना
    कितना सुकून देता है ?
    ---------------------------------
    दो सौ प्रतिशत सहमत हूँ ....

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  7. 'दोनों भवें उछाल उछाल कर
    स्वयं का ही हाल चाल लेना
    या फिर ये जताना कि
    सुख दुःख से परे भी
    होती है कोई ख़ुशी ... '

    बहुत अच्छा लगा :)

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