क्यों तूफ़ान की तरह आते हो
और तिनका की तरह
मुझे उड़ा ले जाते हो ?
मैं कुछ भी समझ पाती
उसके पहले ही
मेरे वजूद को
अपना बवंडर बना
मुझपर ही
कहर बरपा जाते हो..
ये जो खुद्दार जिस्म है
उसके जर्रा-जर्रा में
दबी रहती है
जो इक जिद
उसे बेकदर मसह कर
बेकाबू सा जूनून न बनाओ...
तेरी तल्खी से तड़पता है जो
उसे अपने सीने से लगाकर
अपना सुकून न बनाओ...
न मैं संगेराह हूँ तेरी
न ही संगतराशी का
अब कोई शौक है मुझे
न ही किसी सैयाद से
किसी सिला की है आरजू
न ही किसी सज्जाद से ही
किसी वफ़ा की है जुस्तजू....
जिस्म है तो
उसकी फितरत ही है
सुलगते रहने की...
साँसे हैं तो
उसकी किस्मत है
अपनी बेवफाई में ही
उलझते रहने की...
जान है तो
उसकी भी बेताबी है
कहीं निसार हो जाए
और रूह है तो
उसकी भी बेबसी है
फना होने के लिए
कहीं बोसोकनार हो जाए...
पर जब तिनका का तक़दीर
कोई तूफ़ान लिखने लगता है
तो तिनका भी उड़कर
तूफ़ान की आँखों में ही गिरता है
फिर किसने कहाँ किस वजह से
ज़रा सी भी करवट ले ली
किसे रहता है उसकी याद
और बहते हुए
बेकसूर अश्कों की
सुनी नहीं जाती है
कभी कोई फ़रियाद .
और तिनका की तरह
मुझे उड़ा ले जाते हो ?
मैं कुछ भी समझ पाती
उसके पहले ही
मेरे वजूद को
अपना बवंडर बना
मुझपर ही
कहर बरपा जाते हो..
ये जो खुद्दार जिस्म है
उसके जर्रा-जर्रा में
दबी रहती है
जो इक जिद
उसे बेकदर मसह कर
बेकाबू सा जूनून न बनाओ...
तेरी तल्खी से तड़पता है जो
उसे अपने सीने से लगाकर
अपना सुकून न बनाओ...
न मैं संगेराह हूँ तेरी
न ही संगतराशी का
अब कोई शौक है मुझे
न ही किसी सैयाद से
किसी सिला की है आरजू
न ही किसी सज्जाद से ही
किसी वफ़ा की है जुस्तजू....
जिस्म है तो
उसकी फितरत ही है
सुलगते रहने की...
साँसे हैं तो
उसकी किस्मत है
अपनी बेवफाई में ही
उलझते रहने की...
जान है तो
उसकी भी बेताबी है
कहीं निसार हो जाए
और रूह है तो
उसकी भी बेबसी है
फना होने के लिए
कहीं बोसोकनार हो जाए...
पर जब तिनका का तक़दीर
कोई तूफ़ान लिखने लगता है
तो तिनका भी उड़कर
तूफ़ान की आँखों में ही गिरता है
फिर किसने कहाँ किस वजह से
ज़रा सी भी करवट ले ली
किसे रहता है उसकी याद
और बहते हुए
बेकसूर अश्कों की
सुनी नहीं जाती है
कभी कोई फ़रियाद .
फना होने के लिए
ReplyDeleteकहीं बोसोकनार हो जाए...
पर जब तिनका का तक़दीर
कोई तूफ़ान लिखने लगता है
अनुभूतियों और भावनाओं का सुंदर समवेश इस खूबसूरत प्रस्तुति में
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन त्रासदी का एक साल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteतूफान में हथेली से तिनका छूटने का अहसास बड़ा ही कष्टकारी है।
ReplyDeleteफ़रियाद सुनी जाती है अंततः !
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteउसकी भी बेताबी है
ReplyDeleteकहीं निसार हो जाए
और रूह है तो
उसकी भी बेबसी है
फना होने के लिए
अमृता जी बहुत सुन्दर और प्यारे भाव ...
भ्रमर 5
रूह है तो
ReplyDeleteउसकी भी बेबसी है...
फ़रियाद करते बेकसूर अश्क भी... बहुत सुंदर
दुनिया जालिम है, स्वार्थी है। बेकसूर आंसुओं की फरियाद सुनी जानी चाहिए और कसूरवार पछताएं आंखों की भी। दुनिया जालिम है या स्वार्थी है इस नाते कि किसी के पास कोई समय नहीं अपनी गति में सब भागे जा रहे हैं इसलिए। याद रहे न रहें, सुनी जाए या न जाए पर फरियाद करनी चाहिए। सार्थक कविता।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अहसास। ......उर्दू के लफ़्ज़ों का खूबसूरत इस्तेमाल किया है आपने । paर पहली बार प्रवाह कुछ रुका सा लगा आपकी रचना में । कुछ कमियाँ जो मेरी नज़र में आईं वो ये हैं :-
ReplyDeleteतिनका = तिनके
जर्रा-जर्रा = ज़र्रे-ज़र्रे
सिला = सिले
तिनका का तक़दीर = तिनके की तकदीर
लिखने लगता है = लिखने लगती है
रहता है = रहती है
सीधी बात...
ReplyDeleteरचना का सुन्दर प्रवाह और मन के अनुभूतियों का फरियाद .....
ReplyDeleteरचना का सुन्दर प्रवाह और मन के अनुभूतियों का फरियाद ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteएक छोटा सा सुझाव: कई जगह वर्तनी गलतियां [spelling mistakes] हैं.. एक बार ज़रूर देखें और ठीक कर लें.. खासकर उर्दू शब्दों में..
फ़रियाद उस की सुनी जाती है जो बलशाली होता है ... तिनका जब तूफ़ान के हाथ होता है उसकी कहाँ चल पाती है ... पर फिर भी जरूरी है फ़रियाद ... रोना जरूरी है दुग्ध की चाह के लिए...
ReplyDeleteखुबसूरत अहसास बेहतरीन अंदाज..
ReplyDeleteआँसू ख़ुद एक फ़रियाद है. उससे पहले जो कुछ है वह ख़ुशी है या ज़ुल्म है. कविता में हमेशा की तरह कुछ 'असंभव-सी' अभिव्यक्तियाँ हैं जो प्रवाहमान हैं.
ReplyDelete.... और अंतत: सारी फ़रियाद रूह की बेबसी में घुलमिल जाती है। पर क्या फरियाद का जोखिम इतना ही तक सीमित होता है ? बेहद दिव्य एहसास में डूबी हुई इस तरह की कविता के लिए ह्रदय से सिर्फ फ़रियाद।
ReplyDeleteकभी मैंने कहा था---- कितना कुछ है आपके आकाश में ………
खूबसूरत अल्फ़ाज़ों में पिरिया है आपने मन के जज़्बातों को।
ReplyDeleteऔर ये जज़्बातों का तूफ़ान किन्ही फ़ितरत की लकीरों से बंधा हुए थोड़े ही है, ये तो बहा ले जाता है तिनके को … और उसकी आगोश में तिनके और तूफ़ान के ख़ुद के वजूद घुल जाते हैं .... किसी फ़रियाद की गुंजाइश ही नहीं रहती।
मन को छूती अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबधाई ------
जिस्म है तो
ReplyDeleteउसकी फितरत ही है
सुलगते रहने की.
साँसे हैं तो
उसकी किस्मत है
अपनी बेवफाई में ही
उलझते रहने की...
'आदत' ही है. असीरी से निकलता है और फिर असीरी के सिम्त ही मोड़ लेता है. 'आदत' है.
बहुत दिनों के बाद फिर ब्लूगिंग पर निकला हूँ. सबसे पहले तो तुम्हारे ब्लॉग पर ही पहुंचा . आप अब और भी अच्छा लिखने लगी है . मेरी बधाई और शुभकामनाये
ReplyDeleteNice post...
ReplyDeleteवाह .....बेहतरीन
ReplyDeletesunder shabd prawaah...bhawuk abhivyakti
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