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Saturday, January 25, 2014

मज़बूरी की सौगंध ....

हे सुलोचन ! एवं हे सुलोचना !
ये अच्छी बात नहीं कि
आप सब मिलकर ही करने लगे
अब मेरी आलोचना पर आलोचना.....

माना कि मेरे साथ-साथ
कईयों के किस्मत से छींका तोड़कर
कितने ही गंगुएं अवाख़िर राजा भोज हुए हैं
पर हमारे सर मौरी चढ़े भी तो
फकत ही चाँद रोज हुए हैं....

इतनी जल्दी चाँदनी के गाढ़े स्वाद को
हम नवेले जीह्वा पर कैसे चढ़ा ले ?
इससे पहले सूत काटने के बहाने ही सही
आप सबों को अपना चरखा तो पढ़ा दे....

आप सब हमारे गवाह हैं कि
ये चाँद किसतरह से हमारे हाथ आया है
फिर से कहूँ तो अपनी बहती गंगा में
कुछ भी धुल और घुल सकता है
उसी हिट फार्मूला को हमने भी आजमाया है....

अब कई छोटे-बड़े सुर को भी मिलाने पर भी
हमारा एक सुर नहीं है पर तराना वही है
और फाइव जी वाला स्पीड तो है मगर
स्पेक्ट्रम का फ़साना भी वही है
लेकिन अब हम जो कहते या करते हैं
कम-से-कम आप तो कहिये कि सही है....

मत भूलिए कि आप ने ही बड़े लाड़ से
हमें अपना लाट-साहब बनाया है
सच्चे हैं सो फिर से कह देते हैं कि
उस झाड़ पर चढ़ने के लायक न थे
मगर आपने ही उकसा कर हमें चढ़ाया है....

अब प्लीज!
मत खोलिए अपने दिमाग का कोई भी फाटक
पॉपकॉर्न कुरकुराते हुए ड्रिंक्स गुड़गड़ाते हुए
बस देखते रहिये अपने दिल्ली का नाटक पर नाटक
यदि आगे भी आप सब मेहरबान होंगे तो
पूरी दुनिया मेरी ही मजलिस को सजाएगी
और मेरे साथ धरना-प्रदर्शन कर-करके
मजनूयित का वही तराना भी गायेगी.....

सच तो यही है कि हमारा ये फ़िल्म भी
अपन वो आदम युग के राजनीति का ही
फोर-डी , फाइव-डी वाला ही संस्करण है
पर मंगल से आगे बढ़कर हमारा विकास
आपके ही सामने का प्रत्यक्ष उदाहरण है.....

अब कैसे कहें हम कि सच में
गद्दी की राजनीति ही बहुत गन्दी है
और मुझपर गाहे-बगाहे भोंपू लेकर
अपना भड़ास निकालने पर सख्त पाबंदी है....

पर हमने बासी कुर्कुटों को साफ़ करने का
गुलकंद-इलायची वाला बड़ा बीड़ा उठाया है
और आपके कुर्ते पर पारदर्शी बनकर
सफ़ेद-सफ़ेद सा ही छींटा पराया है....

आगे भी सच्चे दिल से हम हमेशा
आपकी मज़बूरी की सौगंध लेते रहेंगे
बस आप प्लीज!
हमपर अपना डियो-परफ्यूम छिड़कते रहिये
तो अपने मिश्रित धातुओं से भी जबर्दस्ती करके
आपको वो खालिस सोना वाला ही
मिलावटी न ..न.. सुंधावटी सुगंध देते रहेंगे .

23 comments:

  1. वाह...लाज़वाब और सटीक कटाक्ष...

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  2. गणतन्त्र दिवस की शुभकामनायें और बधाईयां...जय हिन्द...

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  3. अब प्लीज!
    मत खोलिए अपने दिमाग का कोई भी फाटक
    पॉपकॉर्न कुरकुराते हुए ड्रिंक्स गुड़गड़ाते हुए
    बस देखते रहिये अपने दिल्ली का नाटक पर नाटक
    यदि आगे भी आप सब मेहरबान होंगे तो
    पूरी दुनिया मेरी ही मजलिस को सजाएगी
    और मेरे साथ धरना-प्रदर्शन कर-करके
    मजनूयित का वही तराना भी गायेगी.....सीधी बात

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  4. बिरवा को फलदायी वृक्ष बनने में समय तो लगता है. सौभाग्य है इस पीढ़ी का, वो यह सब देख पायेंगे.

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  5. आप के पक्ष और विपक्ष में जाए बिना अभी उसका निष्‍पक्ष बुदि्धी-विमर्श किया जाना ही श्रेयस्‍कर होगा। नहीं?

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  6. बात तो सही है, पर नए-नए सत्ताधीशों को ये भी जानना बेहद जरुरी है कि हमें क्या-क्या नहीं करना है .....वैसे बदलाव के इस खेल में नाटक, नटखेला, तमाशा, नौटंकी कोई नयी बात नहीं ...
    उम्दा पोस्टमार्टम...

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  7. बढ़िया प्रस्तुति-
    शुभकामनायें गणतंत्र दिवस की-
    सादर

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  8. सही कहा है आपने थोड़ा समय तो देना ही पड़ेगा..धीरे धीरे हे मना...

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  9. वाह ... जबरदस्त कटाक्ष ...
    नई नई नौटंकी चलती रहनी चाहिए ... पुरानी राजनीति के थियेटर से अब बोरियत होने लगी थी ...

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  10. ज़बरदस्त ..... कुछ नया तो हो रहा है तो बस देखते रहिये :-)

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  11. वाह: लाज़वाब बढिया और सटीक कटाक्ष...बधाई

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  12. बहुत सुंदर साथ ही सशक्त रचना.

    रामराम.

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  13. सार्थकता लिये सशक्‍त अभिव्‍यक्ति

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  14. प्रभावशाली और विचारपूर्ण
    वाह !! बहुत सुंदर
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई ----

    आग्रह है--
    वाह !! बसंत--------

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  15. कविता की ओवरटोन राजनीतिक है. 'किसी के बारे में कैसे बोलूँ' की मुखर अभिव्यक्ति हुई है.

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