सुबह-सुबह
आँख मलते हुए आप सैर को जाएँ
वहाँ दौड़ती-भागती , चक्कर लगाती
चेहरे पर ताज़ी लालिमा उगाये
कोई कविता दिख जाए तो
बेशक ! हैरानी की कोई बात नहीं होगी
आखिर सोशलिस्ट सेहत का जो मामला है
या फिर कभी
किसी ब्यूटी पार्लर में
फेशियल-मसाज़ करवाती हुई
या बालों को रंगने के वास्ते
कुछ अलग-सा डाई चुनती हुई
या किसी बुटीक में
डिजायनर परिधानों को ट्राई करती हुई
एक गर्माहट बिखेरती जो कविता मिले
तो घबराने वाली भी
ऐसी कोई घटना नहीं होगी
चिर-युवा दिखना कौन नहीं चाहता ?
हो सकता है किसी दिन
किसी नामी-गिरामी डेंटिस्ट के यहाँ
अपने जबड़े को दुरुस्त करवाती हुई
नकली दांतों में हीरे-मोती जड़वाती हुई
यूँ ही खिलखिलाती हुई कविता मिले तो
आप भी लुढकने को तैयार हो जाएँ
आखिर खनकती चमकीली हँसी पर
कौन नहीं मर-मिटता है ?
फिर किसी शाम
हाई-प्रोफाइल सब्जी-मंडी में
आँखों को रोकती हुई
किसी बड़ी लग्जरी गाड़ी की डिक्की में
ढेरों साक-सब्जियां लदवाती हुई
जीरो-फिगर वाली कोई कविता दिखे तो
आप बस इतना ख़याल रख सकते हैं
कि अपनी दसों उँगलियाँ
कुछ ज्यादा ही चबा न लें
और फिर किसी रात
भरपूर हेल्थ-ड्रिंक्स के साथ-साथ
हेल्थ-पिल्स फांक कर
किसी सॉफ्ट म्यूजिक पर
योग-ध्यान लगाती हुई
और पूरे चैन की नींद लेती हुई
कोई कविता दिखे तो
आप जरूर पूरे जल-भुन कर
उससे रश्क खा सकते हैं
तो ये है -
'' इनक्रेडिबल और शाइनिंग इंडिया की कविता ''
...और भारत की कविता अगली कड़ी में .
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ,,,,,
ReplyDeleteमुस्कराकर डाल दी अपने रुख पर नकाब,
मिल गया जो कुछ कि मिलना था जबाब,,,,,
RECENT POST:..........सागर
:-)
ReplyDeletetoo good!!!
anu
ये दौर भी अजीब है
ReplyDeleteसब तारीख भी फिजूल है
हालात बदलें कि बदलें
इस गिले का कोई उसूल है....
......................
बेहतरीन
इन्तजार है भारत की कविता का-
ReplyDeleteताज़ी भाजी सी चमक, चढ़ा चटक सा रंग |
पटल पोपले क्यूँ हुवे, करे पीलिमा दंग |
करे पीलिमा दंग, सफेदी माँ-मूली की |
नाले रही नहाय, ठण्ड से पा-लक छीकी |
केमिकल लोचा देख, होय ना दादी राजी |
कविता-लेख कुँवार, करे क्या हाय पिताजी ??
बहुत ही बढ़ियाँ रचना...
ReplyDeleteमस्त और मजेदार.....
:-)
वाह....अमृताजी बस मज़ा आ गया .....:)))))))))
ReplyDeletebahut hi sundar
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteIndia Shinning KA ASLI ROOP BATAAYAA HAI AAPNE.
Take care
एक अलग ही अंदाज़ में बहुत खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteभारत की कविता का इंतज़ार है ...
ReplyDeleteबदलते दौर का असर अगर कविता पर भी आ जाये तो क्या हैरानी है, मिल जाएगी इनमे से कोई न कोई कहीं ना कहीं... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
आज के दौर में कोई सी बी कविता कहीं भी मिल सकती है
ReplyDeleteसब मनमाने की बात है !
ReplyDeleteकितनी ही कविताओं की एक बुलंद कविता ,मगर मेरी कविता तो इसमें दिखी नहीं -कहाँ खोजूं उसे ? :-)
ReplyDeleteक्या यह बड़ी कविता कविताओं को ही आत्मान्वेषण के लिए समर्पित है या फिर यह कवियों के भी किसी काम की है ??
इसके बाद कवि पर भी लेखनी चलायेगीं न प्लीज? वैसे अभी तो इसी कविता के अगले भाग -भारतीय कविता को देखना है!
बहुत बढियां लगी यह कविता -एकदम अलग मिजाज की !
वाह ! कितनी अनूठी कविताओं के दर्शन करा दिए आपने..शुक्रिया..
ReplyDeletedhoondho to har kisi nukkad par aisi kavitayen aasani se mil jayengi....bas intzar ek parkhi nazar ka hi to hai. :)
ReplyDeleteतो ये है -
ReplyDelete'' इनक्रेडिबल और शाइनिंग इंडिया की कविता ''
गज़ब ………सच्चाई की परतें उधेड कर रख दीं। :)
!! शुरू से अंत तक लाजवाब !! वाह बस वाह !!
ReplyDelete
ReplyDeleteफिर किसी शाम
हाई-प्रोफाइल सब्जी-मंडी में
आँखों को रोकती हुई
किसी बड़ी लग्जरी गाड़ी की डिक्की में
ढेरों साक-सब्जियां लदवाती हुई
जीरो-फिगर वाली कोई कविता दिखे तो
आप बस इतना ख़याल रख सकते हैं
कि अपनी दसों उँगलियाँ
कुछ ज्यादा ही चबा न लें .... :)))))))))))
वाह ! हम तो हर रूप की कविता को ही Imagine करते रह गये... :)
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति !
~सादर !
सुख और समृद्धि के नये मानक ।
ReplyDeleteशाइनिंग इंडिया की कविता मिलती तो हैं :) ... पर लिखी नहीं जातीं ... भारतीय कविता का इंतज़ार है ...
ReplyDeleteआठ - नौ साल की बच्ची
माँ की उंगली थाम
आती है जब मेरे घर
और उसकी माँ
उसके हाथों में
किताब की जगह
पकड़ा देती है झाड़ू
तब दिखती है मुझे कविता
अंधेरी रात के
गहन सन्नाटे को
चीरती हुई
किसी नवजात बच्ची की
आवाज़ टकराती है
कानो से
जिसे उसकी माँ
छोड़ गयी थी
फुटपाथ पर
वहाँ मुझे दिखती है कविता
कूड़े के ढेर पर
कूड़ा बीनते हुये
छोटे छोटे बच्चे
लड़ पड़ते हैं
और उलझ जाते हैं
पौलिथीन पाने के लिए
उसमें दिखती है कविता
मज़ेदार ...एक अलग नजरिया
ReplyDeleteऔर फिर किसी रात
ReplyDeleteभरपूर हेल्थ-ड्रिंक्स के साथ-साथ
हेल्थ-पिल्स फांक कर
किसी सॉफ्ट म्यूजिक पर
योग-ध्यान लगाती हुई
और पूरे चैन की नींद लेती हुई
कोई कविता दिखे तो
आप जरूर पूरे जल-भुन कर
उससे रश्क खा सकते हैं
तो ये है -
'' इनक्रेडिबल और शाइनिंग इंडिया की कविता ''
बदलते परिवेश में ऐसा हो जाये तो क्या बुरा है ?
आपकी कविता शानदार और संगीता जी की टिप्पणी भी.
ReplyDeleteढूंढो तो कुछ दूसरी भी कवितायें मिल जायेंगी आसुओं से नम सिसकती हुई पर उन्हें कौन पढना चाहेगा । बहुत रोचक अंदाज में सच्चाई का दर्पण दिखाया भारत की कविता का इन्तजार है
ReplyDeleteबेतरीन !
ReplyDeleteबेहतरीन तंज बहु - रूपा भोगावती पर .
ReplyDeleteइनक्रेडिबल और शाइनिंग इंडिया की कविता
बेहतरीन तंज बहु - रूपा भोगावती पर .
ReplyDeleteअब दिनकर की वह कामिनी कहाँ -
सत्य ही रहता नहीं यह ध्यान ,
तुम कविता कुसुम या कामिनी हो .
अब तो शरीर का हर आयाम देता है ,
खबर ,
चुनिन्दा कृत्रिम अंगों को घूरता है कैमरा बे -धड़क .
टिप्प्णी से पहले का कमेंट ...
ReplyDeleteहमें अगली कड़ी का इंतज़ार है।
(क्योंकि इतने सारे भारत दर्शन के बाद बचा हुआ भारत-दर्शन की कविता रोचक होगी।)
अमृता जी,
ReplyDeleteयह कविता संवेदनात्मक रुप से काफ़ी संश्लिष्ट और गहरी अनुभूति की अभिव्यक्ति है।
इस कविता में आपकी वैचारिक प्रतिबद्धता कहीं से भी थोपी या चिपकाई नहीं लगती।
भाषा का सजग और ताजगी भरा प्रयोग मन को आकर्षित करता है।
अछूते उपमानों और रूपकों के सहारे नए-नए बिंबों की पारदर्शी सृष्टि और मानवीय संवेदना की गुनगुनी गरमाहट में रची-बसी इस कविता के बीच से गुज़रना एक बेहद आत्मीय अनुभव की प्रतीति कराता है।
जीवन की जटिलता को सहज भाषा में संप्रेषित करना आपकी शैली की विशेषता है।
मुझे आपसे ऐसी ही कविताओं की उम्मीद रहती है।
क्या कविता है ...न न ...कवितायेँ है !:)
ReplyDeleteमुझे अपनी कविता " मेरी कविता उसकी कविता " याद आ रही है !
एक रंग जुदा है इस कविता का !
शाइनिंग इंडिया का एक रूप आपने दिखाया...दूसरा संगीता जी ने...दोनों ही सत्य...यही है हमारा इंडिया|
ReplyDeleteओहो इतनी सुन्दर कवितायेँ जगह जगह घूम रही है और हम यहीं बैठे रह गए :-)))
ReplyDeleteबहुत ही शानदार पोस्ट है अमृता जी........बहुत गहराई में जाती हैं आप.....इसका मर्म बहुत कटाक्षपूर्ण है ।
हाहाहा ढूँढने वाले को कविता कहीं भी मिल जाती है .. !! बहुत ही अनूठी अभिव्यक्ति ... आपकी बाकी कविताओं से हटके है ये .. ;)
ReplyDelete... और साथ ही लाजावाब व्यंग्यात्मकता.
आप और आपके पूरे परिवार को मेरी तरफ से दिवाली मुबारक | पूरा साल खुशिओं की गोद में बसर हो और आपकी कलम और ज्यादा रचनाएँ प्रस्तुत करे.. .. !!!!!
ReplyDeleteधरती पर खड़े सच के कई रूप होते हैं. आपकी कविता शाइनिंग इंडिया की छवि के पीछे नाचती विचारधाराओं को सही रंगत में दर्शाती है. इस तरह की कविताएँ असाधारण ही कही जाएँगीं.
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteनई तरह की कविता। नएपन और उपमाओं से भरपूर। स्वागत है।
ReplyDeleteसुबह-सुबह
ReplyDeleteआँख मलते हुए आप सैर को जाएँ
वहाँ दौड़ती-भागती , चक्कर लगाती
चेहरे पर ताज़ी लालिमा उगाये
कोई कविता दिख जाए तो
बेशक ! हैरानी की कोई बात नहीं होगी
शुभप्रभात अमृता जी ...
बहुत सुंदर रचना ....