क्षणों की लहरों ने तो
विभीषिकाओं का पाठ पढ़ाया है
पर मैंने भी हर लहर के लिए
डांड तोड़ कर डोंगा बनाया है
***
अमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
मैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है
***
धीरे-धीरे सरक कर
सपनों के छोरों को जोड़ा है
और अस्तित्व के गिने पन्नों में
मैंने चोरी से कुछ को मोड़ा है
***
दो जोड़ दो को हरबार
मैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है
***
आईने में जैसी भी तस्वीर मिली
मैंने बस उसी को जाना है
ओर पीछे पुता कलई ने जो कुछ कहा
उसी को आँख बंद करके माना है .
दो जोड़ दो को हरबार
ReplyDeleteमैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है
जीवन सत्य सहज ही अभिव्यक्त किया है आपने इन पंक्तियों में ....!
But what is ultimate result of all this jugad?
ReplyDeleteअमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
ReplyDeleteमैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है
समाज में जीने के लिए जो जद्दोजहद होती है, उसमें अपने लिए एक राह बनाते जाना भी बहुत बड़ी चुनौती है, हमारे सामने। इन्हें संघर्षों को कवयित्री ने अपने मनोभाव के अनुसार इन क्षणिकाओं में गढ़ा है।
बहुत उम्दा पोस्ट । बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में स्वागत है आपका ।
मेरा काव्य-पिटारा
दो जोड़ दो को हरबार
ReplyDeleteमैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है ... शून्य में ही समस्त है
ReplyDeleteदो जोड़ दो को हरबार
मैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है
बेहद गहन
अमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
ReplyDeleteमैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है
क्या बात है, सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक
बहुत सुंदर
अमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
ReplyDeleteमैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है
क्या बात है, सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक
बहुत सुंदर
क्षणों की लहरों ने तो
ReplyDeleteविभीषिकाओं का पाठ पढ़ाया है
पर मैंने भी हर लहर के लिए
डांड तोड़ कर डोंगा बनाया है
***
अमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
मैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है
जीवन की सच्चाई बयान करती क्षणिकाएं .
सभी क्षणिकाएं एक से बढकर एक हैं ..
ReplyDeleteअलग अंदाज़ है नापने का ... अच्छी क्षणिकाएं
ReplyDeleteआज 03 - 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ... चलो अपनी कुटिया जगमगाएँ .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteधीरे-धीरे सरक कर
सपनों के छोरों को जोड़ा है
और अस्तित्व के गिने पन्नों में
मैंने चोरी से कुछ को मोड़ा है
लाजवाब...
अनु
दो जोड़ दो को हरबार
ReplyDeleteमैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है
***
आईने में जैसी भी तस्वीर मिली
मैंने बस उसी को जाना है
ओर पीछे पुता कलई ने जो कुछ कहा
उसी को आँख बंद करके माना है .
बेहतर....बेहतरीन....
है कुछ ऐसा के जैसे ये सब कुछ
ReplyDeleteअब से पहले भी हो चुका है कहीं.......
behtareen आईने में जैसी भी तस्वीर मिली
ReplyDeleteक्षणों की लहरों ने तो
विभीषिकाओं का पाठ पढ़ाया है
पर मैंने भी हर लहर के लिए
डांड तोड़ कर डोंगा बनाया हैने बस उसी को जाना है
अमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
ReplyDeleteमैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है,,,,,
उम्दा भावभिव्यक्ति,बहुत सुंदर क्षणिकाएँ,,,,अमृता जी....बधाई,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
बहुत ही सुंदर रचनाये जी,बधाई स्वीकारें |
ReplyDeleteदो जोड़ दो को हरबार
ReplyDeleteमैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है
जीवन की सच्चाई का गहन लेखा जोखा... सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं
सुंदर क्षणिकाएं
ReplyDeleteजीवन दर्शन भी
सुंदर अभिव्यक्तियां।
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteJO SAMAY KE SAATH APNE AAP KO DHAL LE WOH MAN KI SHANTI KO PAATAA HAI.
Take care
सभी क्षणिकाएं गहन भाव लिए है..बहुत सुन्दर..अमृता जी..आभार
ReplyDeleteअमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
ReplyDeleteमैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है
अर्थपूर्ण , प्रभावित करती क्षणिकाएं
सुन्दर और गहन .. शायद मुझे कुछ और बार पढनी पड़ेगी अच्छे से समझने के लिए ..
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
वाह दीदी, सभी क्षणिकाएं बेहतरीन हैं!!
ReplyDeleteदो जोड़ दो को हरबार
ReplyDeleteमैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है
भावनाओं को शब्दों में ढालना आसान नहीं है किंतु इन क्षणिकाओं को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे शब्द आपके इशारों पर नृत्य करते हैं।
गहरे भाव में उतरती क्षणिकायें..
ReplyDeleteधीरे-धीरे सरक कर
ReplyDeleteसपनों के छोरों को जोड़ा है
और अस्तित्व के गिने पन्नों में
मैंने चोरी से कुछ को मोड़ा है
गहन भाव लिये सुंदर क्षणिकाएँ.
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं |
ReplyDeleteदो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
ReplyDeleteसोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला...
बहुत खूब क्षणिकाएं...
शानदार और सराहनीय क्षणिकाएं.
ReplyDeleteनिन्यानबे के चक्कर में डाले रहिये . अद्भुत सम्प्रेषण वाली क्षणिकाएं .
ReplyDelete
ReplyDelete"धीरे-धीरे सरक कर
सपनों के छोरों को जोड़ा है
और अस्तित्व के गिने पन्नों में
मैंने चोरी से कुछ को मोड़ा है"
सुन्दर क्षणिकाएं...
सच को हरपल है झुठलाता ,
ReplyDeleteहै असत्य को गले लगाता ।
यही दुर्नियति मनुज है रचता,
निज हाथों है निज को छलता।
निन्यानवे का फेर हर शून्य के साथ बढ़ता जाता है !
ReplyDeleteखूबूसरत क्षणिकाएं !
बहुत गहराई लिए कुछ साहसिक क्षणिकाएँ...
ReplyDeleteसभी सुन्दर लगीं ये वाली सबसे बढ़िया -
ReplyDeleteअमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
मैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है
हम मन (माया) के जगत में यही तो करते हैं. हर चार पंक्तियों के बाद लगे तीन सितारे कविता को क्षणिकाएँ नहीं बना सके. यह भरे-पूरे रंगों वाली पूरी कविता है और बहुत ही खूबसूरत.
ReplyDeleteदो जोड़ दो को हरबार
ReplyDeleteमैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है
...बहुत खूब! सभी क्षणिकाएं लाज़वाब..
kshanikaon ke dwara bahut hi sundar prastuti ....abhar Amrita ji
ReplyDeleteक्षणिकाएँ ...
ReplyDeleteक्षणों की लहरों ने तो
विभीषिकाओं का पाठ पढ़ाया है
पर मैंने भी हर लहर के लिए
डांड तोड़ कर डोंगा बनाया है
***
अमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
मैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है
***
धीरे-धीरे सरक कर
सपनों के छोरों को जोड़ा है
और अस्तित्व के गिने पन्नों में
मैंने चोरी से कुछ को मोड़ा है
***
दो जोड़ दो को हरबार
मैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है
***
आईने में जैसी भी तस्वीर मिली
मैंने बस उसी को जाना है
ओर पीछे पुता कलई ने जो कुछ कहा
उसी को आँख बंद करके माना है .
बहुत उत्कृष्ट भाव /विचार कणिकाएं .अमृता जी ईकारांत बहुवचन में इकारांत हो जाता है -भाई से भाइयों ,दवाई से दवाइयों ,परछाईं से परछाइयों हो जाएगा .
बहुत उत्कृष्ट भाव /विचार कणिकाएं .अमृता जी ईकारांत बहुवचन में इकारांत हो जाता है -भाई से भाइयों ,दवाई से दवाइयों ,परछाईं से परछाइयों हो जाएगा .
ReplyDeleteआईने में जैसी भी तस्वीर मिली
मैंने बस उसी को जाना है
ओर पीछे पुता कलई ने जो कुछ कहा
उसी को आँख बंद करके माना है .और पीछे पुता कलई ने जो कहा कर लें .
ReplyDeleteदो जोड़ दो को हरबार
मैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है
इसी फेर में दुनिया बाज़ार हुई जा रही है। हम केवल जोड़ तोड़ में ही लगे हैं। सत्य को अनावृत्त करती एक सामयिक रचना। मेरी बधाई अमृता जी।
सभी तो व्यवहार-कुशल नहीं होते न !
ReplyDeletebahut accha ....sare hi acche hain
ReplyDelete
ReplyDeleteसराहनीय क्षणिकाएं सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteदो जोड़ दो को हरबार
ReplyDeleteमैंने तीन या पाँच कहा है
और निन्यानवे का फेरा लगा-लगाकर
शून्य से ही तिजोड़ी को भरा है..umda
व्यर्थ ही मिलती नहीं पीड़ा
ReplyDeleteशैवाल तले बहती सदानीरा
उपल के अवरोधों को सहती
जल से ही जलधि है बनती
अंजुली छोटी कर मत मन
वेदना से तू , डर मत मन
वाह, मन को सम्बल देती प्रेरक रचना. मन रे तू काहे न धीर धरे...
आ. अमृता जी आपकी क्षणिकाओं को
ReplyDeleteएक शब्द में टिप्पण करने की जुर्रत की
है ...
1. पुरुषार्थ
2. स्केल
3. झिझक
4. आंकड़े
5. भक्ति
अमानुषिक ऊँचाइयों की परछाईयाँ
ReplyDeleteमैंने चतुराई से चापा है
और हरेक चीज़ों को बस
अपने सिर के हिसाब से नापा है
खूबूसरत, लाजवाब,सराहनीय.