क्यूँ मैं कहूँ
पारदर्शी हो तुम
पूरे सौ प्रतिशत
जबकि तुममें
दिखती हूँ मैं...
पर कहीं न कहीं
है विरोधाभास
जहाँ मेरी धडकनें
मिल गयी है तुमसे
वहीँ एक -एक विचार
कहीं छूट गए है...
मैं अनुभव कर सकती हूँ
तुम्हारी विराटता का
अपनी ग्राह्यता के अनुसार
ग्रहण कर सकती हूँ तुम्हें
मिलावटों से निथारते हुए...
पर सांसो की डोर
बंधी है तुमसे ...
और मैं लेना चाहूंगी
जन्म-जन्मान्तर तक जन्म
तुमसे बंधने के लिए
या अपनी मुक्ति के लिए
या फिर
विरोधी सत्य के लिए ?
आदरणीय अमृता जी
ReplyDeleteनमस्कार
आपकी कविता जीवन दर्शन से भरी है ...बहुत संजीदा ढंग से आपने विचारों को प्रस्तुत किया है ....और बन गया मैं आपका 25वां समर्थक बहुत - बहुत शुभकामनायें
amritaji...
ReplyDeletedharkane, ehsas, tadap aur mukti..
kya kahna.. mere pass shabd nahi.. dekhta hoon iska jawab kya milta hai?
इस विरोधाभाष में आश का पलड़ा भारी है।
ReplyDeleteवही एक-एक विचार छूट गए हैं ....और विरोधी सत्य को पा कर मुक्ति पाने की सोच ...बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसोचने पर विवश करती कविता.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! बेहतरीन, बहुत गहराई है!
ReplyDeletekya kahu amrita ji .... bas soch raha hoon ...kaise aap itni acchi kavita likh leti ho ...
ReplyDeleteवाह ! विरोधाभास पर गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteShuru Ki panktiyan poori kavita par bhaari hai..Bahut aacha likhti hai aap....
ReplyDeletemanav ko manwiya guno aur awguno ke sath hi ek dibya sangeet prem ka bhi hai, bhagwan ko bhi is dibya prem ki anubhuti ke liey is dhara ka aakarshan khicch lata hai .sare birodhabhash lay ho jate hain aaur lay ho jata hai byaktitwa. prem ki sarwochh anubhuti.
ReplyDeleteऐसी कविता पे क्या टिप्पणी करूँ मैं समझ नहीं पाता..केवल अच्छी कविता बोल के जाना भी नहीं चाहता..
ReplyDeleteवह सारे विरोधाभास का केन्द्र है, क्योकि सभी कुछ उसी से उपजा है!बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता !
ReplyDeleteThere is combination of many feelings in the lines. Nice post. I decided to follow U.
ReplyDeleteआपके लिए मेने पास कोई विशेषण नही है।Good Post.मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं।
ReplyDeleteक्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
ReplyDeleteआशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
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ReplyDeleteसशक्त कविता! जीवन स्वयं एक विरोधाभाष है| कविताने ईस गहन भावको सफल शब्दाकार दिया है|
ReplyDeleteअमृता जी,
ReplyDeleteदेर से आने की माफ़ी....दरअसल कहीं बाहर गया था.......काफी दिनों के बाद आपकी रचना पड़ी......बहुत ही सुन्दर अहसास है....हमेशा की तरह लाजवाब पोस्ट है .......शुभकामनायें|
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
ek ruhaani rishte mein aisi baaten utpann hoti hain , phir bhi.... bhawnaaon ka jwaar thamta nahi hai ...
ReplyDeletekoi fark nahi padta .... shirshak rachna vatvriksh ke liye chahiye parichay,tasweer, blog link ke saath rasprabha@gmail.com per
ReplyDeletebahot pasand aayee.
ReplyDeleteअमृता जी जी गहरे जज्बातों से भारी हुई सुंदर कविता .......... बहुत ही भावपूर्ण
ReplyDeleteफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
रमिया काकी
गज़ब का विरोधाभास प्रस्तुत किया है।
ReplyDeleteजीवन में विरोधाभास से कब तक बचा जा सकता है..गहन संवेदना से पूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता| शुभकामनायें|
ReplyDeleteजन्म जन्मातर तक जन्म किस लिए ...?
ReplyDeleteजीवन इसी विरोधाभास का नाम है ...
गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
bahut sundar abhivyakti.
ReplyDeleteअमृता जी ,
ReplyDeleteगहन दार्शनिक रचना....इन विरोधाभासों से गुज़र कर ही हम पहुँच पाते हैं स्वयं तक... जहाँ कोई विरोधाभास नहीं रह जाता ...
अमृता तन्मय जी
ReplyDeleteनमस्कार !
छोटी सी कविता … लेकिन कितनी अनुभूतियां !
मैं लेना चाहूंगी
जन्म-जन्मान्तर तक जन्म
तुमसे बंधने के लिए
या अपनी मुक्ति के लिए
या फिर
विरोधी सत्य के लिए ?
आपकी लेखनी से और भी श्रेष्ठ सृजन होता रहे … भावों को अभिव्यक्ति मिलती रहे …
~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
विरोधाभासों के बीच एक आशावादी कविता...
ReplyDeleteआदरणीय अमृता जी
ReplyDeleteनमस्कार
बहुत सुंदर कवित
नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteआपको नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें...स्वीकार करें
ReplyDeleteबहुत खूब ...अंदाज -ए- वयां पसंद आया
iss virodhabhas ka kendra bindu aap ho:)
ReplyDeletebhut khub surat rachna!
nav varshi ki shubh kamnayen!
pahli baar aaya achchha laga, follow kar raha hoon, aage se barabar aaunga....kuchh seekhne:)
Amrita,jeevan ke virodhabhas mein hi rishton ki madhurta chhupi huyi hai.jab ham un virodhabhashon ke beech apne rishton ko gadhy=te hain to saare pal behad khoobsoorat ho jaate hain...
ReplyDeletebahut hi sacchi baat likhi hai aapne.Apni grahyta ke hisab se hi kisi ke viratpane ka anubhav kiya jaa sakta hai...bahut khoob.
गहन, सार्थक, आध्यात्मिक
ReplyDeleteक्या बात कही आपने..अप्रतिम..
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