कोई फर्क नहीं पड़ता
कि हम कहाँ हैं
हो सकता है हम
आँकड़े इक्कठा करने वाले
तथाकथित मापदंड पर
ठोक-पीट कर
निष्कर्ष जारी करने वाले
बुद्धिजीवियों के
सरसरी नज़रों से होकर
गुजर सकते हैं
हो सकता है कुछ क्षण के लिए
उनकी संवेदना तीक्ष्ण जो जाये
ये भी हो सकता है कि
उससे संबंधित कुछ नए विचार
कौंध उठे उनके दिमाग में
समाधान या उसके समतुल्य
ये भी हो सकता है कि
बहुतों का कलम उठ जाये
पक्ष -विपक्ष में लिखने को
अपनी कीमती राय
कर्ण की भांति दान देते हुए
पर जिसका चक्रव्यूह
उसमें फंसा अभिमन्यु वो ही
महारथियों से घिरा
अपना अस्तित्व बचाने को
पल प्रतिपल संघर्षरत
आखिरी साँस टूटते हुए उसे
दिख जाता है
विजय कलयुग का .
bheed me hokar bhi
ReplyDeleteakela
yahi niyati
ban gayi aaj
manushya kahe jane vale
janvar ki
sab lage hain apni-apni
udar purti me
koi fark nahi padta
iske liye
chahe katna pade
sahodar ya
sahodari ko
तो यह है प्रस्थान बिंदु एक आशापूर्ण और ऊर्जित यात्रा का ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteयकीनन ...कोई फर्क नहीं पड़ता..
ReplyDeleteबुद्धिजीवी सिर्फ कलम उठा लें
ReplyDeleteरथ के चके उठाने
कोई ने कोई आयेगा
और अभिमन्यु.......
बस ऐसा ही साधन हो कि चक्रव्यूह का फर्क न पड़े ..सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteचक्रव्यूह में फंसा अभिमन्यु
ReplyDeleteअपना अस्तित्व बचाने को
पल प्रतिपल संघर्षरत
आखिरी साँस टूटते हुए उसे
दिख जाता है
विजय कलयुग का .
हमेशा की तरह गूढ़ भाव के साथ गहन सृजन । रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ । बहुत समय हुआ आपका लिखा पढ़े..,आप कैसी हैं? सादर वन्दे !
अपना अस्तित्व बचाने को
ReplyDeleteपल प्रतिपल संघर्षरत
आखिरी साँस टूटते हुए उसे
दिख जाता है
विजय कलयुग का .
गहन गूढ़ अर्थ लिए सुंदर कविता।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
दृढ़ मनोबल को प्रकट करती सार्थक रचना गहन संवेदनाओं को समेटे।
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷
हाँ. क्या फर्क पड़ता है. अच्छा लिखा.
ReplyDeleteविजय हो या पराजय मंजिल तो अंतिम सांस है और सत्य ये कि खेल हमारा है ही नहीं , हम तो बस खिलाड़ी हैं विजय पराजय के इसी फर्क में उलझे अंत तक और फिर न ई शुरुआत इतना समझ कर खेलें तो शायद फर्क ना भी पड़े ।
ReplyDeleteगहन चिंतनपरक लाजवाब सृजन
ReplyDeleteजीवन का गूढ़ रहस्य समझाती सुंदर सृजन अमृता जी,होली की हार्दिक शुभकामनायें आपको
बहुत सुन्दर रचना…वाह !
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