जिन सुन्दर भ्रमों को रात फैलाते हैं
उन्हीं से दिन भी दिग्ध होता है
और उन भ्रमों का टूटना भी
केवल भ्रम ही सिद्ध होता है
***
मिथ्या-मदक की चमक के आगे
सत्य-सुर तो केवल लुप्तप्राय होता है
और संतत सूर्य को खोज लेने का
एक किरण-मार्ग भी उपाय होता है
***
यथार्थ में सत्य के पीछे हम सभी
कभी भी खड़े होना नहीं चाहते
और ' मैं और तू ' के समस्त विवाद में
' मेरा सत्य ' से कभी बड़े होना नहीं चाहते
***
स्थापित ' मैं ' की परितृप्त परिभाषाएँ
केवल पन्नों पर ही गरजती रहती है
बाहर अति व्यक्तित्व खड़े हो जाते हैं
और भीतर चिता सजती रहती है
***
आलाप में अर्थ भरने की कोई क्रिया
सहज न होकर हठात होती है
और दो के बीच कोई अंतर न हो
तो ही अंतर की बात होती है
उन्हीं से दिन भी दिग्ध होता है
और उन भ्रमों का टूटना भी
केवल भ्रम ही सिद्ध होता है
***
मिथ्या-मदक की चमक के आगे
सत्य-सुर तो केवल लुप्तप्राय होता है
और संतत सूर्य को खोज लेने का
एक किरण-मार्ग भी उपाय होता है
***
यथार्थ में सत्य के पीछे हम सभी
कभी भी खड़े होना नहीं चाहते
और ' मैं और तू ' के समस्त विवाद में
' मेरा सत्य ' से कभी बड़े होना नहीं चाहते
***
स्थापित ' मैं ' की परितृप्त परिभाषाएँ
केवल पन्नों पर ही गरजती रहती है
बाहर अति व्यक्तित्व खड़े हो जाते हैं
और भीतर चिता सजती रहती है
***
आलाप में अर्थ भरने की कोई क्रिया
सहज न होकर हठात होती है
और दो के बीच कोई अंतर न हो
तो ही अंतर की बात होती है
तमाम सामाजिक और विशेषकर राजनीतिक हालातों, पात्रों व अभिनयों को अपनी वैचारिक अग्नि में जलाकर ही आपने ये क्षणिकाएं प्रस्तुत की हैं, जिनमें जीवन के हर क्षेत्र के प्रति गहन अंतदृष्टि समाहित है।
ReplyDeleteऔर दो के बीच कोई अंतर न हो
ReplyDeleteतो ही अंतर की बात होती है.
बहुत सुंदर.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-09-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2108 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
और दो के बीच कोई अंतर न हो
ReplyDeleteतो ही अंतर की बात होती है
कम शब्दों में बहुत कुछ !! बहुत सुंदर भाव !!
सत्य , भ्रम , यथार्थ और परिकल्पनाओं को समेटते हुए बहुत हीं सूक्ष्म और गहन चिंतन अभिव्यक्त किया है आपने ।
ReplyDeleteबहुत गहरी नजर से देखे गये सत्य....
ReplyDeleteयथार्थ में सत्य के पीछे हम सभी
ReplyDeleteकभी भी खड़े होना नहीं चाहते
और ' मैं और तू ' के समस्त विवाद में
' मेरा सत्य ' से कभी बड़े होना नहीं चाहते
...बिलकुल सच कहा है...सभी क्षणिकाएं बहुत गहन और सटीक...
मुझे यह क्षणिका बहुत अच्छी लगी-
ReplyDeleteयथार्थ में सत्य के पीछे हम सभी
कभी भी खड़े होना नहीं चाहते
और 'मैं और तू' के समस्त विवाद में
'मेरा सत्य' से कभी बड़े होना नहीं चाहते-
'मेरा सत्य' के दायरे से बाहर निकलना बहुत कठिन कवायद है.
उम्दा सभी क्षणिकायें
ReplyDelete…और भीतर से जब सत्य उमड़ता है तो कोई मिथ्या-भ्रम नहीं, कोई अन्धकार नहीं, बस यथार्थ की अमृता बहती है. यही सच है न ?
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी सोच की अभिव्यक्ति। बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख हैं
ReplyDeleteBht hi umda prastuti......
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