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Wednesday, April 18, 2018

तुझको सौंपे बिना ....

तुझसे ही है क्यों अनलिखा अनुबंध ?
तुझको सौंपे बिना जो जिऊं
मुझको है सौगंध !

जब केसर रंग रंगे हैं वन
सुरभि- उत्सव में डूबा है उपवन
गंधर्व- गीतों से गूँजे ये धरती- गगन
दूर कहीं अमराई में जो कोयल कूके
तो क्यों न गदराये मेरा सुंदर तन- मन ?

तुझसे ही है क्यों अनजाना आबंध ?
तुझको सौंपे बिना जो रहूं
मुझको है सौगंध !

पुलकमय हर अंग है होने को समर्पित
देखो , प्राण का यह दीप है प्रज्वलित
अंतर पिघल हो रहा आप्लावित
कान अपना ध्यान हर आहट पर लगाये
तो क्यों न पलक पांवड़े बिछाऊं ओ ! चिर- प्रतीक्षित ?

तुझसे ही है क्यों अनकहा उपबंध ?
तुझको सौंपे बिना जो झड़ूं
मुझको है सौगंध !

स्वीकार करो ओ ! मनप्रिय अज्ञात प्रीतम
अंगीकार करो ओ ! तनप्रिय अतिज्ञात प्रीतम
उद्धार करो ओ ! हृतप्रिय अभिज्ञात प्रीतम
तुझे छू हुआ मन धतूरा , सुरती धड़कन व कर्पूरी तन
तो क्यों न सौगंध लूं ओ ! आत्मप्रिय ज्ञात प्रीतम ?

तुझसे ही है क्यों अनदेखा संबंध ?
तुझको सौंपे बिना जो मरूं
मुझको है सौगंध !


11 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.04.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2945 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  2. उस प्रीतम को भी तो सौगंध है, जिसके लिए यह आत्मनाद है, कि वह इस प्रेम-निमंत्रण को इसके अप्रतिम सौंदर्य के साथ अंगीकार-आत्मस्वीकार करे।

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  3. नैसर्गिक शब्द भाव होते हैं

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  4. ...प्रकृति का कण-कण और प्राणों का हर स्पंदन जिसके कारण है उस अनाम के लिए भक्तिरस में सराबोर करती सुंदर प्रस्तुति...

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ज़िन्दगी का हिसाब “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. कविता अधिकतर उदात्त भाव में विचरती है. कहीं-कहीं प्रियतम स्थूल हुआ है.
    आपकी विशिष्ट काविता शैली का विश्लेषण किए जाने की ज़रूरत है.

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    1. U are requested to analyse and explain to us the inner thought hidden in the poetry.for this we shall be thankful to u.

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    2. भावों का प्रभावी प्रवाह ।

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  7. गज़ब कर दिया……बहुत ही सुन्दर अन्दाज़ है शब्दों को पकड्ने का

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