हर साल की तरह ही
कड़ाके की ठण्ड है
कोहरे का कहर है
ठण्डी हवाओं के आगे
गरम से गरम कपड़ा भी
खुद में सिमट कर बेअसर है.....
वो अपना सूरज भी
चल देता है कहीं
अपनी महबूबा के साथ
उन बदमाश बादलों के पीछे
समेट कर किरणों का हाथ.....
ये ओस है या
कुमकुमा बर्फ का टुकड़ा है
चरणपादुका जी तो अभी
दिखे नहीं है पर
ऐसा तमतमाया हुआ
हाय! ठण्ड जी का मुखड़ा है....
तब तो मुआ तापमान भी
लुढक-लुढ़क कर सबको
विनम्रता का पाठ पढ़ा रहा है
और कमजोर ह्रदय के
ठमकते रफ्तार पर
इमरजेंसी ब्रेक लगा रहा है......
जो उसके छिया-छी के हर दांव पर
दहला मारना जानते हैं
उन्हें थोड़ा घुड़की देकर
घरों में ही दुबका रहा है
पर खुले आसमान की गोद में
रहने वालों में से कइयों को
बिन बताये ही
परलोक भी पहुंचा रहा है
और वो जो अपना
सरकारी अलाव है न उसपर तो
मौसम विभाग बड़े मिलीभगत से
लिट्टी-चोखा पका रहा है......
मेरी मैडम अभिव्यक्ति जी
कोट-जैकेट , मोजा-मफलर
सर से पाँव तक लपेट कर
रजाई और कम्बल के अंदर भी
दांत पर दांत किटकिटा रही है
और अपनी मेड सी
मुझसे चाय पर चाय
कॉफी पर कॉफी बनवा रही है....
नरम-गरम खाना की तो
बात ही मत पूछिए
कैसे झपट्टा मार आंत तक
सड़ाक से सरका रही है
और मैं
एक गरम रचना के लिए
गिड़गिड़ा रही हूँ तो
कोरा आश्वासन दे देकर
बस मुझे तरसा रही है.....
और तो और
बड़े मजे से अपने चारों तरफ
हीटर , ब्लोअर लगातार चलवा कर
मुझ आम आदमी का
बिजली बिल बढ़वा रही है
यदि मैं
अति आम आदमी बनकर
अलाव जलाऊं तो मुझे ही
पर्यावरण का भाषण पिला रही है....
जानती है वह कि उसके
पापा जी का क्या जाता है
और इस ठिठुरन भरी ठण्ड में तो
उसका लॉटरी ही लग जाता है.....
ओ! मेरी मैडम अभिव्यक्ति जी
इस रिकार्डतोडू ठण्ड का
वास्ता देकर कहती हूँ कि
मुझ गरीबन पर
आप अब थोड़ा रहम कीजिये
और जिससे आपको गरम सुख मिले
वही-वही करम बस खुद से कीजिये
और ये जो आपका
सब हुकुम बजा रही हूँ वह तो
मेरी नजाकत की नफासत है
वरना मुझे तो
इस ठण्ड और आप
दोनों से ही
विशेष सावधानी बरतने की
बहुत विशेष जरुरत है .
कड़ाके की ठण्ड है
कोहरे का कहर है
ठण्डी हवाओं के आगे
गरम से गरम कपड़ा भी
खुद में सिमट कर बेअसर है.....
वो अपना सूरज भी
चल देता है कहीं
अपनी महबूबा के साथ
उन बदमाश बादलों के पीछे
समेट कर किरणों का हाथ.....
ये ओस है या
कुमकुमा बर्फ का टुकड़ा है
चरणपादुका जी तो अभी
दिखे नहीं है पर
ऐसा तमतमाया हुआ
हाय! ठण्ड जी का मुखड़ा है....
तब तो मुआ तापमान भी
लुढक-लुढ़क कर सबको
विनम्रता का पाठ पढ़ा रहा है
और कमजोर ह्रदय के
ठमकते रफ्तार पर
इमरजेंसी ब्रेक लगा रहा है......
जो उसके छिया-छी के हर दांव पर
दहला मारना जानते हैं
उन्हें थोड़ा घुड़की देकर
घरों में ही दुबका रहा है
पर खुले आसमान की गोद में
रहने वालों में से कइयों को
बिन बताये ही
परलोक भी पहुंचा रहा है
और वो जो अपना
सरकारी अलाव है न उसपर तो
मौसम विभाग बड़े मिलीभगत से
लिट्टी-चोखा पका रहा है......
मेरी मैडम अभिव्यक्ति जी
कोट-जैकेट , मोजा-मफलर
सर से पाँव तक लपेट कर
रजाई और कम्बल के अंदर भी
दांत पर दांत किटकिटा रही है
और अपनी मेड सी
मुझसे चाय पर चाय
कॉफी पर कॉफी बनवा रही है....
नरम-गरम खाना की तो
बात ही मत पूछिए
कैसे झपट्टा मार आंत तक
सड़ाक से सरका रही है
और मैं
एक गरम रचना के लिए
गिड़गिड़ा रही हूँ तो
कोरा आश्वासन दे देकर
बस मुझे तरसा रही है.....
और तो और
बड़े मजे से अपने चारों तरफ
हीटर , ब्लोअर लगातार चलवा कर
मुझ आम आदमी का
बिजली बिल बढ़वा रही है
यदि मैं
अति आम आदमी बनकर
अलाव जलाऊं तो मुझे ही
पर्यावरण का भाषण पिला रही है....
जानती है वह कि उसके
पापा जी का क्या जाता है
और इस ठिठुरन भरी ठण्ड में तो
उसका लॉटरी ही लग जाता है.....
ओ! मेरी मैडम अभिव्यक्ति जी
इस रिकार्डतोडू ठण्ड का
वास्ता देकर कहती हूँ कि
मुझ गरीबन पर
आप अब थोड़ा रहम कीजिये
और जिससे आपको गरम सुख मिले
वही-वही करम बस खुद से कीजिये
और ये जो आपका
सब हुकुम बजा रही हूँ वह तो
मेरी नजाकत की नफासत है
वरना मुझे तो
इस ठण्ड और आप
दोनों से ही
विशेष सावधानी बरतने की
बहुत विशेष जरुरत है .
सब हुकुम बजा रही हूँ वह तो
ReplyDeleteमेरी नजाकत की नफासत है
वरना मुझे तो
इस ठण्ड और आप
दोनों से ही
विशेष सावधानी बरतने की
बहुत विशेष जरुरत है। वाह जी बहुत ही बढ़िया कटाक्ष...
ठण्ड दूर करने के कई कारगर उपाय हैं क्यों नहीं उन्हें आजमाया जाय! :-)
ReplyDeleteबढियां लिखा है!
सद्दी से मांजा काट दिया है....................गजब।
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ६६ वां सेना दिवस और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ......भाव उमड़ आये हैं और मौसम बदल आये हैं .....!!!
ReplyDeleteअद्भुत!!
ReplyDeleteयह प्रयोग “जो उसके छिया-छी के हर दांव पर” .. बहुत अच्छा लगा। और यह द्रूश्य तो बहुत कुछ बयां कर जाता है ...
मेरी मैडम अभिव्यक्ति जी
कोट-जैकेट , मोजा-मफलर
सर से पाँव तक लपेट कर
रजाई और कम्बल के अंदर भी
दांत पर दांत किटकिटा रही है
और अपनी मेड सी
मुझसे चाय पर चाय
कॉफी पर कॉफी बनवा रही है....
नरम-गरम खाना की तो
बात ही मत पूछिए
कैसे झपट्टा मार आंत तक
सड़ाक से सरका रही है
अच्छी कविता बधाई |
ReplyDeleteवाह ठण्ड का जबरदस्त वर्णन और फिर गर्मागर्म अभिव्यक्ति ....क्या कहने
ReplyDeleteसटीक ...सधी हुयी रचना
ReplyDeleteदो रात पहले कुछ लिखना चाहा तो दो पंक्तियाँ भी पूरी नहीं हो पायी. आपकी कविता को पढ़कर जान गया कारण. 'छिया -छी' बहुत मन भाया. अपनी मिट्टी में घुले ऐसे शब्द कविता के रूप में बहुत मन भाते हैं .
ReplyDeletebahut sundar thnadh ko bhi apni rachna se aapne mugdh kar diya ..........
ReplyDeleteहाड कटकटाती ठण्ड में...अभिव्यक्ति को भी रज़ाई में रख देने का मन करता है...पर क्रिएटिविटी चैन लेने दे तब न...
ReplyDeleteजब जीवन जूझने में जुटा हो, कल्पना कहाँ ठहरेगी?
ReplyDeleteबहुत रोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबढिया , रोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteइतने खूबसूरत बिम्ब... पढ़कर मज़ा आ गया.
ReplyDeleteवो अपना सूरज भी
चल देता है कहीं
अपनी महबूबा के साथ
उन बदमाश बादलों के पीछे
समेट कर किरणों का हाथ.....
सुन्दर रचना के लिए बधाई.
हाँ, कमाल तो कर दिया आपने.....सच में ...
ReplyDeleteअभिव्यक्ति के लिए मैडम कहना आत्मीयता से भर देता है।
ReplyDeleteबस दो दिन और फिर ठंड चली अपने घर और मैडम अभिव्यक्ति का राज घर पर
ReplyDeleteबदलता मौसम कैसे कैसे नए भाव उगा देता है मन में ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
एक लेखक की नज़र से मौसम की अच्छी रिपोर्टिंग की है आपने. बहुत-बहुत शुक्रिया सुंदर कविता के लिए.
ReplyDeleteवाह..आपकी मैडम जी तो बहुत नखरीली हैं...हमारा सलाम भी लेंगी या नहीं..
ReplyDeleteवरना मुझे तो
ReplyDeleteइस ठण्ड और आप
दोनों से ही
विशेष सावधानी बरतने की
बहुत विशेष जरुरत है .
सही तो है. इस मैडम से सँभल कर रहने की भी आवश्यकता होती है.
बाहर के मौसम का मन के मौसम पर प्रभाव पड़ता है. आप पर भी प्रभाव पड़ा होगा लेकिन मैडम पर नहीं पड़ा है :)
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