जब जाना ही है तो
विदा न लो , सीधे जाओ
हम रोये या गाये
पत्थर- सा हो जाओ
चुप रहो , कुछ नहीं सुनना
लो , प्राण खींच ले जाओ
अब हमारा ही है भाग्य निगोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा ......
छोड़ो भी , इन आहत आहों को
कस के बाहों में न भरो
असह , असहाय अँसुवन से
बह- बह के बातें न करो
सिसकी का मन जैसे सिसके
न बोलेगी कि तुम ठहरो
सब वचन भुला तुमने मुख मोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा .....
क्यों बोले थे
इस तरह से छोड़ कर
कभी तुम न जाओगे
पल -पल के उपहार को
सारी उमर लुटाओगे
सप्तपदी के सौगंधो को भी
जन्मों - जन्मों तक निभाओगे
सारा भरम तुमने ऐसे तोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा .....
जब जाना ही था तो
बिन बताए चले जाते
न ऐसे तुम भी रोते
न ही हमको रुलाते
इस विदाई बेला की पीड़ा पर
तनिक भी तो तरस खाते
हम नहीं बनते राह का रोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा ......
क्यों हमसे विदा लेकर
तुम्हें दूर जाना है
या दूर जाने का
कोई और बहाना है
जल्दी ही आओगे कह कर
बस यूँ ही फुसलाना है
चलो माना , विरह विपुल है मिलन थोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा ....
बरबस भींचोगे ओठों को
मचलेगा जब अंगारा- सा चुंबन
झुठला देना , जब दहकेगा
ज्वाला- सा अलज्ज आलिंगन
पर कैसे रोकोगे जब
रति- रस चाहेगा तन- मन
कुछ इतर ही ने है हमें जोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा ......
उड़ो , ऊँचाई पर उड़ो
अपने सारे पंख पसार कर
जग को जीत भी गये तो
यहीं आओगे स्वयं से हारकर
हमारा क्या , इन चलती साँसों के संग
रहना है बस तेरे लिए , मन मार कर
निष्ठुर , निर्दय , मिर्मम , निर्मोही , निखोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा .
विदा न लो , सीधे जाओ
हम रोये या गाये
पत्थर- सा हो जाओ
चुप रहो , कुछ नहीं सुनना
लो , प्राण खींच ले जाओ
अब हमारा ही है भाग्य निगोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा ......
छोड़ो भी , इन आहत आहों को
कस के बाहों में न भरो
असह , असहाय अँसुवन से
बह- बह के बातें न करो
सिसकी का मन जैसे सिसके
न बोलेगी कि तुम ठहरो
सब वचन भुला तुमने मुख मोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा .....
क्यों बोले थे
इस तरह से छोड़ कर
कभी तुम न जाओगे
पल -पल के उपहार को
सारी उमर लुटाओगे
सप्तपदी के सौगंधो को भी
जन्मों - जन्मों तक निभाओगे
सारा भरम तुमने ऐसे तोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा .....
जब जाना ही था तो
बिन बताए चले जाते
न ऐसे तुम भी रोते
न ही हमको रुलाते
इस विदाई बेला की पीड़ा पर
तनिक भी तो तरस खाते
हम नहीं बनते राह का रोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा ......
क्यों हमसे विदा लेकर
तुम्हें दूर जाना है
या दूर जाने का
कोई और बहाना है
जल्दी ही आओगे कह कर
बस यूँ ही फुसलाना है
चलो माना , विरह विपुल है मिलन थोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा ....
बरबस भींचोगे ओठों को
मचलेगा जब अंगारा- सा चुंबन
झुठला देना , जब दहकेगा
ज्वाला- सा अलज्ज आलिंगन
पर कैसे रोकोगे जब
रति- रस चाहेगा तन- मन
कुछ इतर ही ने है हमें जोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा ......
उड़ो , ऊँचाई पर उड़ो
अपने सारे पंख पसार कर
जग को जीत भी गये तो
यहीं आओगे स्वयं से हारकर
हमारा क्या , इन चलती साँसों के संग
रहना है बस तेरे लिए , मन मार कर
निष्ठुर , निर्दय , मिर्मम , निर्मोही , निखोड़ा
तो जाओ , तुम पर छोड़ा .
वाह सुन्दर भाव। तुम पर छोड़ा।
ReplyDeleteयदि जानेवाला सच में पंख पसार कर ऊँचाई पर उड़ सकता, तो छोड़ कर जाने के बाद कई बार उड़-उड़ कर वापस आता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन..बहुत सुंदर ताना उलाहना..प्रेम पगी खूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमुझे मेरी भाभी जी की याद आ गयी पढ़ते टाइम।
ReplyDeleteजब भी भाई साब अपनी फ़ौज की ड्यूटी पर वापिश जाते हैं तो भाभी जी के यही विचार जाहिर होते हैं।
मगर इसी उल्हाणे में सच्चा व अटूट प्यार भी दर्शाया है आपने । शानदार प्रस्तुति।
पधारें - शून्य पार
'तो जाओ , तुम पर छोड़ा' ऐसा स्वाभिमानी भाव है जो मानिनी पर सुशोभित है. बहुत सुंदर.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteलाजवाब भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteउड़ो , ऊँचाई पर उड़ो
ReplyDeleteअपने सारे पंख पसार कर
जग को जीत भी गये तो
यहीं आओगे स्वयं से हारकर
मीठा लगा उलाहना ... मन को जीत कर भी यहीं तो आना है
वाह ! ये स्वाभिमान तो हर नारी की पहचान है अति सुंदर सृजन अमृता जी |ये ना हो तो प्रेम की गरिमा क्या | वाह ही वाह --
ReplyDeleteकविता का पहला छंद पढ़ते ही याद आ गयीं ब्रज की गोपियाँ..राधा भी उनमें ही शामिल है..
ReplyDeleteReally Appreciated . You have noice collection of content and veru meaningful and useful. Thanks for sharing such nice thing with us. love from Status in Hindi
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है ऐसे ही लिखते रहिए। हम भी लिखते हैं हमारे लेख पढ़ने के लिए आप नीचे क्लिक कर सकते हैं।
ReplyDeleteइंटरनेट की जानकारी
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