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Sunday, October 30, 2016

तो ऐ दीये ! ........

तुम्हारे हृदय में भी
आग तो सुलगती होगी
चेतना की चिंगारी
अपने चरम को
छूना चाहती होगी
तुम्हारी लवलीन लपटें
मुझसे तो कह रही है कि
तुम भी खो जाना चाहते हो .....
तो ऐ दीये !
मुझ अंधियारी की
तुम साधना करो
जिससे
तुम्हारा प्रकाश
तुमसे भी पार हो जाए
और मेरे पास !
मेरे पास तो
हर पल है तुम्हारा
और है
प्रेम भरी अनंत प्रतीक्षा
अंधकार सा ही
स्रोतहीन , शाश्वत .



दीपोत्सव की स्वर्णिम रश्मियाँ बहुविध आलोकित हो ।
               ***शुभ दिवाली***

13 comments:

  1. धधकते हुए प्रेम का प्रकाश अँधेरे को जरूर हर लेता है ... और प्रकाशमान कर देता है अंतस को ...
    आपको दीपावली की हार्दिक बधाई ...

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  2. प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 31 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आपके काव्यामृत का प्रकाश सर्वत्र प्रकाशित होता रहे ...

    अनेकानेक हार्दिक शुभकामनाएं.

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  5. प्रकाश की अनवरत पिपासा और उसकी साधना.......दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  6. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं अमृता जी। आपकी कविता ने रौशनी और अंधेरे के रिश्ते को एक नए दृष्टिकोण से देखने वाला नज़रिया दिया है। बहुत-बहुत शुक्रिया इस सुंदर कविता के बहाने दीपावली की शुभाकामनाओं के लिए।

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  7. मेरे पास तो
    हर पल है तुम्हारा
    और है
    प्रेम भरी अनंत प्रतीक्षा
    अंधकार सा ही
    waah............

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  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति!

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  9. प्रेमभरी अंतहीन प्रतीक्षा भला अंधकारमय कैसे हो सकती है। कदाचित कोई और भी इस भाव के उजाले में चमक रहा होगा। तब तो अंधेरे का अस्तित्‍व ही नहीं।

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  10. प्रेमभरी अनंत प्रतीक्षा भला अंधकारमय कैसे हो सकती है। यदि इसमें आपका कोई मित्र उजाला ढूंढ ले तो दोनों ओर का अंधकार मिट जाएगा।

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