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Tuesday, February 16, 2016

बीनी बीनी बसंत बानी ......

बीनी बीनी बसंत बानी
तरसे तरसे तन्वी तेवरानी
अंग अंग अजबै अंखुआनी
पोर पोर पुरेहिं पिरानी
सिरा सिरा सिगरी सिकानी
रुंआ रुंआ रुतै रूमानी
सांस सांस सौंधे सोहानी
रिझै रिझै रमनी रतिरानी
मनहिं मनहिं मयूर मंडरानी
कहैं कहैं कइसे कहानी ?
सीझै सीझै सुलगे सधुआनी
तरसे तरसे तन्वी तेवरानी
बीनी बीनी बसंत बानी

बीनी बीनी बसंत बानी
सरसे सरसे सजनी सयानी
उड़ि उड़ि उछाह उसकानी
झूमत झूमत झनके झलरानी
सरकै सरकै समूचा सावधानी
बोलत बोलत बिहंसे बौरानी
अपने अपने अति अभिमानी
चिहुंक चिहुंक चले चपलानी
हुमकत हुमकत हेराये हुलरानी
चंपई चंपई चारुचाह चुआनी
बुंदन बुंदन बास बरसानी
सरसे सरसे सजनी सयानी
बीनी बीनी बसंत बानी .

11 comments:

  1. वाह..बहुत भीनी भीनी मनभावन अभिव्यक्ति

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  2. वाह..बहुत भीनी भीनी मनभावन अभिव्यक्ति

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  3. अद्भुत शिल्प ,कथ्य पर तो बस एक दीर्घ निःश्वास

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  4. मनभावन बसंत बानी ...
    बहुत सुन्दर

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  5. बसंत का ऐसा वर्णन पहले कभी नहीं पढ़ा. भई वाह!

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  6. व्कः ... बसंत की फुहारे छूट पड़ी हों जैसे ... गज़ब शब्द संचरण ने रचना को नया आयाम दे दिया है ...

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  7. इस आस को पुकार मिले, प्‍यार मिले।

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  8. मौसम का काम ही यही है...

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  9. बहुत सुन्दर रचना. बधाई

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  10. अति सुन्दर भावपूर्ण रचना. बधाई

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