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Saturday, February 8, 2014

अँधेरे का एक टुकड़ा...

जो कभी
अपनी विस्मरणशीलता को
स्मृत करके
और अपने दीया-स्वरुप से
क्षीण ज्योति ले करके
चलना चाहती हूँ तो
नींद से उठकर मेरी ही सक्रियता
मुझे ही कभी तेज चलाकर
या बंद आँखों में ही भगाकर
अपने स्वभावगत सहजता को
गहरे नशे में खोती है....
तब मुझे अहसास होता है कि
वो दीया या ज्योति
वास्तविक नहीं बल्कि आभासी है
और सुनी-सुनाई या रटी-रटाई
आप्त-ज्ञान की बातें
एकदम से विपर्यासी(झूठा ज्ञान) है ....
इसलिए मैं
अपने ह्रदय में
अँधेरे का एक टुकड़ा
सदा साथ लिए चलती हूँ
फिर तो दिन क्या रात क्या
सपनों के साम्राज्य में भी हर समय
जागकर देखना पड़ता है
कि मेरे किये से कुछ नहीं होता है
और तो और मैं
बस करवट पर करवट ही बदलती हूँ....
जब उतेजना की हालत में
चारों ओर की स्थितियों को
चुपचाप सहने में
बिलकुल समर्थ नहीं होती हूँ
या प्रशंसा से अपमान तक के
हर छोर पर विक्षिप्त होकर
उग्र प्रतिक्रया करने लगती हूँ तो
साकार होकर मेरा अन्धेरा
थोड़ा सा मेरा प्रकाश बन जाता है
और सम्भव होकर
मुझसे उघड़ता हुआ मेरा अन्धेरा
मुझे ही ऐसे उघाड़ देता है कि
तत्क्षण ही खुद को ढ़कने का
मेरा छोटा सा ही प्रयास ही
अपना छोटा सा ही प्रकाश का
बड़ा आड़ देता है.....
इसलिए तो
वो अन्धेरा भी मेरा है
और वो उजाला भी मेरा ही है....
तब तो
अपने ह्रदय में
अँधेरे का एक टुकड़ा
सदा साथ लिए चलती हूँ
और सहज रूप से उसे ही
पलट कर अपना प्रकाश भी
बना लेती हूँ .

30 comments:

  1. सच कहा आपने
    वो अन्धेरा भी मेरा है
    और वो उजाला भी मेरा ही है....
    एक के बिना दूसरा अस्तित्वहीन है.. अतुलनीय रचना

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  2. साकार होकर मेरा अन्धेरा
    थोड़ा सा मेरा प्रकाश बन जाता है
    और सम्भव होकर
    मुझसे उघड़ता हुआ मेरा अन्धेरा
    मुझे ही ऐसे उघाड़ देता है कि
    तत्क्षण ही खुद को ढ़कने का
    मेरा छोटा सा ही प्रयास ही
    अपना छोटा सा ही प्रकाश का
    बड़ा आड़ देता है.....
    ....बहुत गहन अभिव्यक्ति...सच में कभी अपने मन के किसी कोने का अँधेरा ही बन जाता है मार्गदर्शक जीवन का...बहुत उत्कृष्ट...

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  3. खूबसूरत कथ्य...

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  4. बहुत ही सुन्दर कविता |आभार अमृता जी |

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  5. सही कहा आपने हमारे ही भीतर है अँधेरे उजाले का खेल और अपनी ही मन:स्थिति से हम इन्हें तय करते हैं

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  6. बहुत सही कहा आपने अपने मन के अँधेरे उजाले हम अपनी ही मन:स्थिति से तय करते हैं

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  7. अँधेरा कुछ और नहीं प्रकाश का अभाव ही तो है...यानि सिक्के का दूसरा पहलू...बस पलटने की देर है और प्रकाश हाजिर...और एक दिन ऐसा भी आता है जब प्रकाश स्वभाव ही बन जाता है तब भी कभी कभी स्वाद बदलने क लिए अँधेरे से मुलाकात कर सकते हैं ...गर इच्छा हो तो..

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  8. प्रभावी ...... यह उधेड़बुन सबके मन का हिस्सा है ....

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  9. चाहा-अनचाहा बहुत कुछ स्‍मृत करने के चक्‍कर में सम्‍पूर्ण स्‍मृति-विस्‍मृति किसी की नहीं हो पाती। तब अंतस्‍थल में अन्‍धेरा उपजना स्‍वाभाविक है, और इसी अन्‍ध्‍ोरे में से प्रकाश की किरणें भी दिखाई देने लगती हैं।

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  10. उसी एक टुकड़े अँधेरे में रोशनी भी ..... मन को झकझोरती रचना बहुत सुंदर....!

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  11. यदि अँधेरे का टुकड़ा साथ न होता तो पता नहीं जीवन को उतना समझ न पाते।

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  12. गहन-गंभीर अभिव्यक्ति.....सभी अंदर एक अँधेरा होता है पर उसे उजाले में बदलना अपने स्वयं पर है......

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  13. यह मन के अंदर का अंधेरा कोना ही तो इंसान के जीवन की परिधि है जो उसे जीवन को समझने पाने में सक्षम बनाती है। नहीं ? बहुत ही सुंदर गहन भाव अभिव्यक्ति।

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  14. गहन-गंभीर अभिव्यक्ति.....

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  15. उसी ह्रदय में छिपे अँधेरे के टुकड़े से जीवन के यथार्थ का सौंदर्य चमकता है.. दरअसल दुःख, वेदना और कचोटती स्मृतियों की लकीरें कभी मिटती भी नहीं... वे तो आत्मिक प्रकाश पुंज को लम्बी लकीर खींचने के लिए सम्बल देती है.... साहस देती है... ये स्वतः स्फूर्त होता है....

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  16. दुख में ही कहीं होती ज़रूर है उससे उबरने की विधि ......गहन अंधकार के बाद की प्रकाश आता है ...!!
    गहन रचना ....!!

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  17. जीवन की सम्पूर्णता भी तो इसी अँधेरे से हैं. प्रकाश ही प्रकाश हो तब भी कई व्याधियाँ जन्म लेने लगती है. कहीं न कहीं, इसी अँधेरे और प्रकाश के अनुभवों से परिमार्जित जीवनधारा शायद जीवन का सही स्वाद दे पाती है. बहुत पसंद आई रचना.

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  18. अँधेरा और उजाला दोनों मैं ही तो हूँ दोनों एक दुसरे के पर्याय |

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  19. बहुत सुंदर भाव। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं

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  20. bahut gahan sundar rachna hardik badhai

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  21. कविता में गहन चिंतन प्रतिबिम्बित है।
    अंधेरे के अनुभव के पश्चात ही हम उजाले का महत्व समझ पाते हैं।

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  22. रहस्यवाद से ओतप्रोत रचना ।

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  23. आपके जीवन-दर्शन का आधार काफ़ी ठोस है - अँधेरा और उजाला इतने घुले मिले हैं कि अलगाना बहुत कठिन है !

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  24. वो अन्धेरा भी मेरा है
    और वो उजाला भी मेरा ही है....
    तब तो
    अपने ह्रदय में
    अँधेरे का एक टुकड़ा
    सदा साथ लिए चलती हूँ gahan chintan ke sath behad sarthakta se ot prot rachana padhane ko mili .....bahut bahut aabhar Amrita ji .

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  25. गहरे भावों से युक्त सुंदर प्रस्तुति...

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  26. @ तब मुझे अहसास होता है कि
    वो दीया या ज्योति
    वास्तविक नहीं बल्कि आभासी है
    और सुनी-सुनाई या रटी-रटाई
    आप्त-ज्ञान की बातें
    एकदम से विपर्यासी(झूठा ज्ञान) है ....
    ज्ञान झूठा नहीं हो सकता लेकिन हमारा अपना अनुभव नहीं है किसी और का है, उधार का है इसलिए दूसरों की सुनी सुनाई बाते, प्राप्त ज्ञान केवल जानकारी है हमारा अपना अनुभव नहीं है, कागज के दिये को यदि घर में रखे तो घर प्रकाशित होगा क्या ?? नहीं न , बस अँधेरा प्रकाश और कुछ नहीं दोनों हमारे मन की ही अवस्थाएं है, अपना अनुभव अल्प प्रकाश ही सही इस प्रकाश का उपयोग जितना हो सके अँधेरे को उघाड़ने में करना होगा !

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  27. माया है ये .. प्रकाश शाश्वत है या अंधेरा ... कौन किसको लीलता है ...
    शायद खुद से होते हैं ये दोनों ... इक दूजे की आड़ लिए ... अपने अपने साम्राज्य में ...

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  28. वो अन्धेरा भी मेरा है
    और वो उजाला भी मेरा ही है....
    तब तो
    अपने ह्रदय में
    अँधेरे का एक टुकड़ा
    सदा साथ लिए चलती हूँ
    और सहज रूप से उसे ही
    पलट कर अपना प्रकाश भी
    बना लेती हूँ .

    मन की रचना का एक अद्भुत नमूना जहाँ अंधेरा भी प्रकाश रूप हो जाता है. बहुत खूब.

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