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Monday, October 7, 2013

उठाओ कुदाल !

क्या बना रखा है
तुमने अपना ये हाल ?
ऐसे परती धरती न निहारो
उठाओ कुदाल !

माना कि सिर पर सजी धूप है
पल-पल बदलता
पसीने का छद्म-रूप है
तनिक सुस्ताने के लिए कहीं
कोई ठौर नहीं है
पर चकफेरी के सिवा चारा भी तो
कोई और नहीं है......

बदलो अपने हिसाब से
सूरज की चाल !
ऐसे परती धरती न निहारो
उठाओ कुदाल !

अबतक कितना पटका
तुमने पत्थरों पर सिर ?
तुम्हीं से पूछ रहा तेरा आँसू
बरबस नीचे गिर
कबतक अपने भाग्य को कहीं
गिरवी रख आओगे
और पसारे हुए हाथ पर
दो-चार मिश्रीदाना पाओगे ?

अपने आस्था के जोत को
अपने कर्म-दीप में सँभाल !
ऐसे परती धरती न निहारो
उठाओ कुदाल !

देखो ! कब से उदास बीज
मेड़ पर है खड़ा
प्राण से तुम छू दो उसे
तो हो जाए वह हरा-भरा
बीज को बिथरा कर जब
परती धरती टूटती है
तब अक्षत अंकुरी भी अनवरत
अगुआकर तुम्हीं से फूटती है......

चाहे कितना भी उलट कर
रुत हो जाए विकराल !
ऐसे परती धरती न निहारो
उठाओ कुदाल !

बादलों को चीर कर बिजली
क्या कहती है सुन
उठ ! तू भी परती की छाती पर
कुदाल से अपनी हरियाली बुन
तुम ही अपने बीज हो
और तुम ही तो हो किसान
अपने भूले-भटके भाग्य के
बस तुम ही हो भगवान.......

भ्रमवश किसी विषपात्र में
अपना अमृत न डाल !
ऐसे परती धरती न निहारो
उठाओ कुदाल !



34 comments:

  1. प्रेरणा देती अत्‍यन्‍त सुन्‍दर कविता।

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  2. कर्म दीप के अंतर मे जो आस्था का लौ जल उठे तो अँधेरा कहॉं बचेगा ।

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  3. वैसे तो हर किसी को एक कविता का अर्थ अलग समझ में आता है लेकिन इस कविता का एक भाव सभी को संप्रेषित हो जाएगा कि यह कवयित्री का वामपंथ है जो स्पष्टतः उसकी कविता के अनुरूप काफी इमानदार है.

    भ्रमवश किसी विषपात्र में
    अपना अमृत न डाल !
    ऐसे परती धरती न निहारो
    उठाओ कुदाल !

    द्वंद्वयुक्त मानसिकता को स्पष्ट दिशा देती पंक्तियाँ !!!

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  4. सुन्दर प्रस्तुति
    आभार आदरणीया-

    करती आवाह्न दिखे, करती तन्मय कर्म |
    जीवन यात्रा क्यूँ रुके, प्रेषित गीता मर्म |
    प्रेषित गीता मर्म, धर्म अपना अपनाओ |
    खिले धूप से चर्म, हाथ फावड़ा उठाओ |
    हल से हल हो प्रश्न, छोड़ मत धरती परती |
    मनें रोज ही जश्न, जाति जब कोशिश करती ||

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  5. बहुत सुन्दर और ऊर्जा भरती रचना....

    अनु

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  6. इस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :-08/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -20 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

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  7. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ८ /१०/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।

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  8. बहुत ही प्रेरणास्पद रचना.

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  9. बहुत सुन्दर एवं सार्थक

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  10. भ्रमवश किसी विषपात्र में
    अपना अमृत न डाल !
    ऐसे परती धरती न निहारो
    उठाओ कुदाल !
    ..बहुत सुन्दर प्रेरक रचना ...

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  11. कोई सूनीत ह्रदय ही ऐसा कह सकता है...
    साधो आ.अमृता जी ....

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  12. प्रेरक रचना |

    मेरी नई रचना :- सन्नाटा

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  13. सकारात्मक विचार लिए प्रेरणादायक रचना ...

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  14. वाह ! बहुत सुंदर प्रेरक प्रस्तुति.!
    नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-

    RECENT POST : पाँच दोहे,

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  15. ..और नहीं उठाया कुदाल तो हो जाओगे बदहाल... सन्देश साफ़ है .

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  16. देखो ! कब से उदास बीज
    मेड़ पर है खड़ा
    प्राण से तुम छू दो उसे
    तो हो जाए वह हरा-भरा
    बीज को बिथरा कर जब
    परती धरती टूटती है
    तब अक्षत अंकुरी भी अनवरत
    अगुआकर तुम्हीं से फूटती है......

    निष्काम कर्म की शक्ति में बड़ा फल है जो आपसे आप मिलता है। एक कथा है तकरीबन सूखा पड़ने को था फिर भी किसान के बेटों ने हल चलाया ,मोर भ्रमित हुआ बिन बदरा के हल जोत रहें हैं किसान पुत्र चल तू भी नांच बिन बदरा ,बादल बोला अब तू भी बरस कर्म कर प्रेरणा ले किसान पुत्रों से।

    बेहतरीन रचना। सार्थक सन्देश देती हुई -नर हो न निराश करो मन को कुछ काम करो कुछ काम करो। एक निखार सा निखरा है अमृता की रचनाओं में शब्दों में कैसे व्यक्त करें इस उठान को उत्कर्ष को ऊर्ध्व गमन को ?

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  17. bahut khoobsurat , sundar geet , badhai

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  18. बहुत बढ़िया ...... प्रेरणादायी भाव

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  19. अपने भूले-भटके भाग्य के
    बस तुम ही हो भगवान.......

    सच कहा है ... न सिर्फ उठना होगा बल्कि सावधान भी रहना होगा ...
    प्रेरणा ओर स्फूर्ति देती रचना ...

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  20. नया जोश भरती हैं आपकी ये पंक्तियाँ..... शानदार

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  21. बदलो अपने हिसाब से ..सूरज की चाल! बहुत सुन्दर !
    दुर्गा-पूजा की शुभकामनायें!

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  22. बहुत सुंदर - प्रेरक प्रस्तुति

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  23. भ्रमवश किसी विषपात्र में
    अपना अमृत न डाल !
    ऐसे परती धरती न निहारो
    उठाओ कुदाल !

    बहुत सुंदर और प्रेरक पंक्तियाँ...मुर्दे में भी जान भर दें कुछ ऐसी...

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  24. कर्म दीप जलाओ, बाकी सब कुछ भूल जाओ.....

    अति सुन्दर ..

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  25. कर्मनिरत हो, समय आयेगा, कर्म की ही पुकार होगी।

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  26. कबतक अपने भाग्य को कहीं
    गिरवी रख आओगे
    और पसारे हुए हाथ पर
    दो-चार मिश्रीदाना पाओगे

    बहुत सुन्दर सन्देश अमृता जी !!!

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  27. कर्मशील बनने को प्रेरित करती सुंदर रचना

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  28. जनता का आवाहन करती कविता। नवनिर्मिति और कर्तव्यों को उकसाने का काम प्रस्तुत कविता ने किया है। बादल, पानी, बीज, पसीना, मेहनत... आदि के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को कविता आत्मा की आवाज सुनने को मजबूर करती है।

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  29. सार्थक रचनाएँ
    http://sowaty.blogspot.in/2013/10/5-choka.html

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  30. आप सब आजाइये । चलते हैं हमारे गाँव में। कुदाल बहुत हैं।। हा हा हा ।।जय हिन्द

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