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Saturday, August 3, 2013

हाय! हाय!



हाय! हाय!
सूरज की छाती पर
दिनदहाड़े ये कैसी फड़-फड़ ?

जो चमगादड़ों में मची है चूँ-चपड़
घुग्घूओ में भी हो रही धर-पकड़...
झींगुरों का मनमाना शोर
मेंढकों में भी मीठा रोर...
सियारों में गुप्त मुलाक़ात
श्वानों का घुन्ना उत्पात...
सांप-चील का षड्यंत्र
छुछुंदर-नेवला सा ये तंत्र...
गिरगिटों का घुमड़ी परेड
मकड़ियों पर पड़ता रेड...

मधुमक्खियों में जो पड़ी फूट
मक्खियों को मिल गयी बम्पर छूट...
खच्चर-टट्टूओं में खटास
बन्दर-रीछों का लुभावना नाच...
चींटियों की ताबड़तोड़ तालियाँ
मच्छरों से छुपती नहीं गालियाँ...
चूहों में प्लेग विलायती
बिल्लियाँ बनी फिरती हिमायती...

हाईब्रिड हाथियों का मेला
शेर के हिस्से में कच्चा केला...
मगरमच्छों का आँसू-दर्शन
गोरिल्लाओं का अंग-प्रदर्शन...
ऊँटों का अनुभव ज्ञान
घोड़ों का बिना रुके सलाम...
अन्धेरा से होती फरमाइश
काले झंडों की चलती रहे नुमाइश...

हाय! हाय!
सूरज की छाती पर ही लट्ठम-लट्ठ
गड़बड़झाला भी है गड्डम-मड्ड...
देखो! बेल्ट में फँसाकर अपना पतलून
कितना मज़े में है सब नियम-क़ानून .

32 comments:

  1. वाह अमृता क्‍या दर्पण दिखया है देश की छोर से छोर तक की लोकतान्त्रिक व्‍यवस्‍था को! बेल्‍ट में फँसाकर अपनी पतलून वाकई मजे में है नियम-कानून।

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  2. बहुत खूब...अमृता जी आपने तो एक साथ ही सबका कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया..

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  3. देख कुदरती करिश्मा, मर्यादित अनुनाद |
    आय हाय क्या बात है, चिड़ियाघर आबाद |
    चिड़ियाघर आबाद, जगह पाए ना मानव |
    पंक्ति पंक्ति पर दाद, बड़ा बढ़िया यह अनुभव |
    साधुवाद हे देवि, मस्त जो कविता करती |
    बढ़िया है सन्देश, करिश्मा देख कुदरती ||

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  4. वाह! अभूतपूर्व!!!

    काश यह हाय हाय सुनकर कुछ तो परिवर्तन की नींव पड़े... गड्डम-मड्ड कुछ व्यवस्थित हो!

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  5. हाय हाय.......
    पोल खोल डाली......

    वाह वाह!!!

    अनु

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  6. आनंद आगया, कितनी सहजता से आपने बिंब प्रयोग करते हुये सब कुछ कह डाला, बहुत ही सशक्त.

    रामराम.

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  7. कितना ही सुन्दर हो कि कोई जादू की छड़ी
    इन साँप- बिच्छुओं को चहचहाते पक्षियों, तितलियों और मुस्कराते फूलों में बदल दे ।

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  8. हाय! हाय!
    सूरज की छाती पर ही लट्ठम-लट्ठ
    गड़बड़झाला भी है गड्डम-मड्ड...
    देखो! बेल्ट में फँसाकर अपना पतलून
    कितना मज़े में है सब नियम-क़ानून .

    प्रकृति की सनसनाहट का सफल चित्रण

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  9. उफ़ ...कैसे इतने बिम्ब का प्रयोग कर लेती हैं आप ...कमाल है

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  10. दौरे ज़माना यही हो रहा है
    जिसे आपने बख़ूबी कहा है

    बहुत बढ़िया.

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  11. सांप-चील का षड्यंत्र
    छुछुंदर-नेवला सा ये तंत्र...
    गिरगिटों का घुमड़ी परेड
    मकड़ियों पर पड़ता रेड...

    यही है परिदृश्य का राजनीतिक समारोह।

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  12. बिलकुल..... यही हो रहा है....

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  13. शब्दों भाव व्यक्त कर रहे थे, पूर्णतया।

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  14. क्या बात है, बहुत सुंदर रचना
    ऐसी रचनाएं कभी कभी ही पढ़ने को मिलती है।

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  15. देश के ऐसे हालात एक रचना के माध्यम से नाजा आ गए ...
    प्रभावी लेखन ...

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  16. बहुत बढ़िया

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  17. बहुत सुंदर रचना

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  18. उत्कृष्ट प्रस्तुति

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  19. देखिये न - हाय-हाय पर भी वाह-वाह निल रही है मुख से !

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  20. देखो! बेल्ट में फँसाकर अपना पतलून
    कितना मज़े में है सब नियम-क़ानून ।

    देश के जनतंत्र का सही वर्णन ।

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  21. हाय - हाय…
    जी खोलकर सब कह डाला
    जितना भी था गड़बड़ झाला…
    बहुत बढ़िया अमृता जी

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  22. सही वर्णन अमृता जी .............

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  23. सूरज की छाती पर ही लट्ठम-लट्ठ
    गड़बड़झाला भी है गड्डम-मड्ड...
    देखो! बेल्ट में फँसाकर अपना पतलून
    कितना मज़े में है सब नियम-क़ानून

    सही है ...

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  24. सब अपनी अपनी में लगे हैं …… शानदार

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  25. जंगल राज की उम्दा तस्वीर .

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  26. इन दिनों एक ही बात है प्रकृति की समझो या इंसानों की !

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  27. अमृत के लोभ में सब लोमड़ी और सियार
    दौड़े आगे-पीछे ....गोलम-गोलम गोल
    अमृत-घट में किसने विष दिया घोल
    हाय री अमृता !!! अब तेरा क्या होगा बोल
    क्यूँ तूने जंगल-राज की रख दी खोल के पोल
    (पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ...और क्या सुहाना हुआ)
    तीखा व्यंग

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  28. तंत्र की चालबाजी पर आपका यह प्रहार बहुत मन भाया.

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  29. उचक्कों की पूरी बिरादरी को आपने शब्दों से हांक दिया.. हाय..हाय.. आपने ये कैसा जुल्म किया ?…

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  30. सशक्त प्रस्तुतीकरण ....बहुत खूब ...!!

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  31. कितना मज़े में है सब नियम-क़ानून

    वाकई

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